करवा चौथ व्रत कथा (कहानी) – Karwa Chauth Vrat Katha Book & Pooja Vidhi - Summary
करवा चौथ हिन्दू धर्म का एक प्रमुख व्रत है, जिसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। करवा चौथ का विशेष महत्व उत्तर भारत में देखा जाता है, जहाँ महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और संध्या के समय साज-सज्जा कर विधिवत पूजा करती हैं।
इस दिन महिलाएं दिनभर बिना भोजन और पानी के उपवास रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर तथा अपने पति का मुख देखकर व्रत का पारण करती हैं। करवा चौथ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण का भी प्रतीक माना जाता है। इस व्रत की परंपरा से पारिवारिक संबंधों में मजबूती और सौहार्द भी बढ़ता है।
Karwa Chauth Vrat Katha (करवाचौथ व्रत की कहानी) Book
एक साहूकार के एक पुत्री और सात पुत्र थे। करवा चौथ के दिन साहूकार की पत्नी, बेटी और बहुओं ने व्रत रखा। रात्रि को साहूकार के पुत्र भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी वहन से भोजन करने के लिए कहा। बहन वोली- “भाई! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है, उसके निकलने पर मैं अर्घ्य देकर भोजन करूँगी।” इस पर भाइयों ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए बहन से कहा- “वहन! चन्द्रमा निकल आया है, अर्घ्य देकर भोजन कर लो।”
बहन अपनी भाभियों को भी बुला लाई कि तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे लो, किन्तु वे अपने पतियों की करतूत जानती थीं। उन्होंने कहा- “वाईजी! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है। तुम्हारे भाई चालाकी करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।” किन्तु बहन ने भाभियों की बात पर ध्यान नहीं दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग होने से गणेश जी उससे रुष्ट हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था, उसकी बीमारी में लग गया। साहूकार की पुत्री को जब अपने दोष का पता लगा तो वह पश्चातप से भर उठी।
गणेश जी से क्षमा-प्रार्थना करने के बाद उसने पुनः विधि-विधान से चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सवका आदर सत्कार करते हुए, सबसे आशीर्वाद लेने में ही उसने मन को लगा दिया।
इस प्रकार उसके श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देख गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसके पति को जीवनदान दे उसे बीमारी से मुक्त करने के पश्चात् धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट से रहित श्रद्धाभक्तिपूर्वक चतुर्थी का व्रत करेगा, वह सव प्रकार से सुखी होते हुए कष्ट-कंटकों से मुक्त हो जाएगा।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान का पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।
ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।
करवा चौथ 2025 का शुभ मुहूर्त
- पंचांग के मुताबिक, कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 09 अक्टूबर की रात 10:54 पर होगी और इसका समापन 10 अक्टूबर को रात 7:38 बजे होगा।
- इस कारण से करवा चौथ का व्रत इस साल 10 अक्टूबर 2025 को किया जाएगा।
- इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:16 बजे से शाम 6:29 बजे तक रहेगा।
करवा चौथ पूजा विधि (Karva Chauth Puja Vidhi)
- करवा चौथ पूजा करने के लिए घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करलें और लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर शिवजी, मां गौरी और गणेश जी की तस्वीर या चित्र रखें. साथ ही, उत्तर दिशा में एक जल से भरा कलश स्थापित कर उसमें थोड़े-से अक्षत डालें।
- इसके बाद कलश पर रोली, अक्षत का टीका लगाएं और गर्दन पर मौली बांधें।
- तीन जगह चार पूड़ी और 4 लड्डू लें, अब एक हिस्से को कलश के ऊपर, दूसरे को मिट्टी या चीनी के करवे पर और तीसरे हिस्से को पूजा के समय महिलाएं अपने साड़ी या चुनरी के पल्ले में बांध कर रख लें। अब करवाचौथ माता के सामने घी का दीपक जलाकर कथा पढ़ें।
- पूजा करने के बाद साड़ी के पल्ले और करवे पर रखे प्रसाद को बेटे या अपने पति को खिला दें. वहीं, कलश पर रखे प्रसाद को गाय को खिला दें।
- पानी से भरे हुए कलश को पूजा स्थल पर ही रहने दें. चन्द्रोदय के समय इसी कलश के जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और घर में जो कुछ भी बना हो, उसका भोग चंद्रमा को लगाएं. इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
करवा चौथ का उजमन
- एक थाल में चार-चार पूड़ियाँ तेरह जगह रखकर उनके ऊपर थोड़ा-थोड़ा हलवा रख दें।
- थाल में एक साड़ी, ब्लाउज और सामर्थ्यानुसार रुपये भी रखें।
- फिर उसके चारों ओर रोली-चावल से हाथ फेरकर अपनी सासूजी के चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें।
- तदुपरांत तेरह ब्राह्मण/ब्राह्मणियों को आदर सहित भोजन कराएं, दक्षिणा दें तथा रोली की विन्दी/तिलक लगाकर उन्हें विदा करें।
Karwa Chauth Aarti Download
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।। ओम जय करवा मैया।
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी।।
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती।।
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।
होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे।
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे।।
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।
करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे।
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे।।
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।
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