Saraswati Mata Katha Hindi

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Saraswati Mata Katha Hindi

मां सरस्‍वती के अवतरण के उपलक्ष्‍य में बसंत पंचमी मनाई जाती है। पुराणों में बताया गया है कि जगत रचियता ब्रह्माजी एक बार भ्रमण पर निकले तो उन्‍हें सारा ब्रह्मांड मूक नजर आया। चारों ओर अजीब सी खामोशी थी। यह देखकर उन्‍हें सृष्टि की रचना में कुछ कमी सी महसूस हुई। वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाति है।

वसंत पंचमी के अवसर पर विशेषकर स्कूलों में ज्ञान, वाणी एवं कला की देवी मां सरस्वती की विधिपूर्वक पूजा (Saraswati Puja) की जाती है। सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana), मंत्र (Mantra) जाप एवं आरती (Aarti) से मां शारदा को प्रसन्न किया जाता है। सरस्वती पूजा के समय इस कथा का श्रवण करने से मां शारदा प्रसन्न होती हैं, ज्ञान, बुद्धि में वृद्धि के साथ मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

Saraswati Mata Katha – सरस्वती माता कथा हिन्दी में

पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना और भगवान विष्णु को पालनहार की जिम्मेदारी मिली हुई है। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को मनुष्स योनी बनाने का सुझाव दिया। ब्रह्मा जी ने मनुष्य योनी भी बना दी, इस प्रकार से सृष्टि की निर्माण कार्य हो रहा था।

एक दिन ब्रह्मा जी पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे, उन्होंने सभी जीवों को देखा और अपनी रचना पर प्रसन्न हुए। हालांकि कुछ समय बाद उनको इस बात का एहसास हुआ कि पृथ्वी पर हर ओर शांति एवं सन्नाटा पसरा हुआ है।

तब उनको वाणी, ज्ञान एवं क​ला की देवी का विचार आया। उन्होंने अपने कमंडल से जल निकाला और देवी का आह्वान करते हुए पृथ्वी पर छिड़क दिया। उसके प्रभाव से माता सरस्वती कमल आसन पर विराजमन होकर प्रकट हुईं। उनकी चार भुजाएं थीं, वे हाथों में पुस्तक, वीणा, माला धारण किए हुए आशीर्वाद दे रही थीं। ब्रह्मा जी ने उनको देव सरस्वती के नाम से पुकारा। इस प्रकार से उनका नाम देवी सरस्वती हुआ।

ब्रह्मा ने बताया कि इस सृष्टि में उनका प्रकाट्य जीवों को वाणी एवं ज्ञान देने के लिए हुआ है। तब माता सरस्वती ने अपने वीणा के तार से मधुर ध्वनि उत्पन्न की, फिर उससे जीवों को वाणी मिली। सभी जीव अपने स्वर में बोलने लगे। मां सरस्वती की कृपा से सृष्टि में अलग अलग प्रकार की मधुर ध्वनियां सुनाई देने लगीं। समय के साथ साथ वाणी से गीत और संगीत निकले।

सरस्वती पूजा मंत्र | Saraswati Puja Mantra in Hindi

पण्डित मुरली झा बताते हैं कि सरस्वती माता की पूजा करने वाले को सबसे पहले माँ सरस्वती की प्रतिमा अथवा छायाचित्र को सामने रखकर उनके सामने धूप-दीप आदि प्रज्वलित करनी चाहिए। इसके बाद पूजन आरंभ करनी चाहिए। सबसे पहले अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्घ करें-

“ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥”

  • इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –

ॐ केशवाय नम:

ॐ माधवाय नम:,

ॐ नारायणाय नम:,

फिर हाथ धोएं,

  • पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।

त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

  • शुद्धि और आचमन के बाद चन्दन लगाना चाहिए।
  • अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें

‘चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,

आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।’

  • बिना संकल्प के की गयी पूजा सफल नहीं होती है इसलिए संकल्प करें।
  • हाथ में तिल, फूल, अक्षत मिठाई और फल लेकर

‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये|’

  • इस मंत्र को बोलते हुए हाथ में रखी हुई सामग्री माँ सरस्वती के सामने रख दें।
  • इसके बाद गणपति जी की पूजा करें।

आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके सरस्वती व्रत कथा PDF में डाउनलोड कर सकते हैं।

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