आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF
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हिन्दू धर्म शास्त्रों में आमलकी एकादशी का महत्व विस्तार से बताया गया है। हरिवंश पुराण में भगवान श्रीविष्णु जी ने आमलकी एकादशी का महत्व का वर्णन किया है। जिसके अनुसार जो भी प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उन्हें फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में पुष्य नक्षत्र में आने वाली आमलकी एकादशी का व्रत रखना चाहिए। अमालकी एकादशी व्रत पर आंवले की पूजा का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति के साथ ही सृष्टि का आरंभ मानते हुआ था। आंवले को आमलकी कहते हैं।
आमलकी एकादशी या आमलकी एकादशी एक हिंदू पवित्र दिन है, जो फाल्गुन के चंद्र महीने में शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है। यह आमलकी या आंवला के पेड़ का उत्सव है, जिसे भारतीय आंवले के रूप में जाना जाता है, भगवान विष्णु का है, जिनके लिए एकादशी पवित्र है, माना जाता है कि वे पेड़ में निवास करते हैं।
आमलकी एकादशी व्रत कथा PDF | Amalaki Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे। एक दिन ब्रह्मा जी ने खुद को जानने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी भक्तिमय तपस्या से प्रसन्न होकर परब्रह्म भगवान विष्णु उनके सामने प्रकट हो गए। जैसे ही ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को अपने समीप देखा वैसे ही वह रोने लगे।
कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिर रहे थे। यह आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरकर आंवले के पेड़ में तब्दील हो गए थे। यह देख कर भगवान विष्णु ने कहा कि यह वृक्ष और इस वृक्ष का फल मुझे अत्यंत प्रिय रहेगा और जो भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत तरीके से करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी तथा उसके सारे पाप मिट जाएंगे।
आमलकी एकादशी व्रत विधि | Amalaki Ekadashi Vrat Puja Vidhi
- सबसे पहले स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर आमलकी एकादशी व्रत का संकल्प करें।
- संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
- भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें।
- सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
- पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
- इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें।
- कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें।
- इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें।
- कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
- अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें।
- रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।
- द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें।
- इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।
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