पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF Hindi

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF Download

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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF

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श्रावण पुत्रदा एकादशी, जिसे पवित्रोपना एकादशी और पवित्रा एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, एक हिंदू पवित्र दिन है, जो श्रावण के हिंदू महीने में वैक्सिंग चंद्रमा के पखवाड़े के 11 वें चंद्र दिवस पर पड़ता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में जुलाई या अगस्त में पड़ता है।

इस श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन उपवास करने वाले सभी लोगों के लिए अनाज, दाल, चावल, प्याज और मांसाहारी भोजन करना सख्त वर्जित है। व्रत ‘दशमी’ से शुरू होता है और पर्यवेक्षक को दोपहर से पहले केवल ‘सात्विक’ भोजन करना चाहिए। दशमी की रात को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।

पुत्रदा एकादशी व्रत पूजा विधि | Putrada Ekadashi Vrat Puja Vidhi

  • प्रातः काल पनित पत्नी संयुक्त रूप से श्री कृण की उपासना करें।
  • उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अविपCत करें।
  • इसके बाद संतान गोपाल मन्त्र का जाप करें।
  • मंत्र जाप के बाद पनित पत्नी संयुक्त रूप से प्रसाद ग्रहण करें।
  • अगर इस हिदन उपवास रखकर प्रकिhयाओं का पालन किकया जाय तो ज्यादा अच्छा होगा।
  • एकादशी के हिदन भगवान् विष्णु जी को पंचामृत का भोग लगायें।
  • साथ में एक तुलसी की माला भी चढ़ाएं।
  • निनम्न मंत्र का 108 बार जाप करें- “ॐ क्लीं कृणाय नमः”
  • पंचामृत का प्रसाद ग्रहण करें।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Kath Hindi

भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी मैं एक कथा कहता हूँ सो तुम ध्यानपूर्वक सुनो।

भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था।

वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।

इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?

राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।

यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।

श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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