जल प्रदूषण - Summary
जल प्रदूषण, जिसे जल की गुणवत्ता में कमी के कारण समझा जा सकता है, मुख्य रूप से मानव या जानवरों की जैविक गतिविधियों, या औद्योगिक कार्यों के जरिए उत्पन्न प्रदूषकों के सीधे जल धाराओं में बिना उपचार के डाले जाने से होता है। जब अधिक मात्रा में हानिकारक पदार्थ झीलों, नहरों, नदियों, और समुद्र जैसे जल निकायों में मिलते हैं, तो यह जल प्रदूषित हो जाता है और इससे जल की गुणवत्ता में गिरावट आती है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि प्रदूषक भूमि में रिसते हैं, तो यह भूमि के जल को भी प्रभावित करता है। 🌊
जल प्रदूषण – मुख्य स्रोत
- घरेलू सीवेज: जैसे घरों से छोड़ा गया अपशिष्ट जल तथा सफाई का जल।
- कृषि अपवाह: जैसे कृषि क्षेत्रों का भू-जल जहाँ रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग हुआ हो।
- औद्योगिक बहिष्करण: जैसे उद्योगों में रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट जल।
जल प्रदूषण के प्रभाव
- जल प्रदूषण केवल मनुष्यों को ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षियों और मछलियों को भी प्रभावित करता है। प्रदूषित जल पीने, कृषि और उद्योगों के लिए उपयुक्त नहीं होता है। यह झीलों और नदियों की सुन्दरता को घटाता है, jise जलीय जीवन को समाप्त करने और उनकी प्रजनन क्षमता को कम करने की समस्या उत्पन्न होती है।
- जलजनित रोग, जैसे कि हिपेटाइटिस, हैजा, पेचिश और टाइफाईड, मुख्यतः संदूषित जल से फैलते हैं और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बहुत से लोगों को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, प्रदूषित जल के संपर्क में आने से अतिसार, त्वचा संबंधी रोग, श्वास संबंधी समस्याएं और अन्य रोग भी हो सकते हैं। जब जल स्थिर और अनुपचारित रहता है, तो इससे मच्छरों और अन्य परजीवी कीटों का उत्पन्न होना संभव होता है, जो कई बीमारियों का कारक बनते हैं।
आप इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए यहाँ PDF डाउनलोड कर सकते हैं। सुनिश्चित करें कि हम सभी जल प्रदूषण के प्रभावों को समझें और इसे कम करने के लिए कदम उठाएं।