बुद्ध पूर्णिमा व्रत कथा (Buddha Purnima Vrat Katha) Hindi PDF

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बुद्ध पूर्णिमा व्रत कथा (Buddha Purnima Vrat Katha) - Summary

वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान बुद्ध की जयंती मनाई जाती है, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरी भारत में भगवान बुद्ध को श्रीहरि भगवान विष्णु का नौवां स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करना चाहिए। तथा किसी पवित्र नदी में स्नान कर ब्राह्मण को दान करना चाहिए, इससे श्रीहरि का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है। कहा जाता है कि वैशाख पूर्णिमा के अवसर पर ही महात्मा बुद्ध ने सदियों तक कठोर तपस्या और वन में भटकने के बाद बुद्धत्व की प्राप्ति की थी। तथा पूरी दुनिया को सत्य, शांति और मानवता की सेवा करने का संदेश दिया था।

हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख पूर्णिमा कल यानी 5 मई 2023, शुक्रवार को है। ध्यान रहे इस दिन बिना चंद्र दर्शन के व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और परिनिर्वाण भी वैशाख महीने के पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। ऐसे में बौद्धों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। खास बात यह है कि सनातनी और बौद्ध दोनों धर्म के अनुयायी इसे मनाते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा व्रत कथा – Buddha Purnima Vrat Katha in Hindi

पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिका नामक नगरी में चंद्रहाश नामक राजा रहता था। उसी नगर में धनेश्वर नामक एक ब्राम्हण था, उसकी पत्नी अति सुशील और रूपवती थी। घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उन्हें संतान ना होने का दुख हमेशा सताता था। एक बार गांव में एक योगी आया और उसने ब्राम्हण का घर छोड़कर आसपास के सभी घरों से भिक्षा लिया और गंगा किनारे जाकर भोजन करने लगा। अपने भिक्षा के अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी के पास जा पहुंचा और इसका कारण पूछा।

योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीख पतितों के अन्न के समान होती है, जो पतितों के घर का अन्न खाता है वह भी पतित हो जाता है। पतित हो जाने के भय से वह उस ब्राह्मण के घर से भिक्षा नहीं लेता था। इसे सुन धनेश्वर बेहद दुखी हुआ और उसने योगी से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। योगी ने बताया कि तुम मां चण्डी की अराधना करो, इसे सुन वह देवी चण्डी की अराधना करने के लिए वन में चला गया। मां चण्डी ने ब्राह्मण के तप से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिया और पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।

उन्होंने कहा कि लगातार 32 पूर्णिमा का व्रत करने से तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी। ठीक उसी प्रकार उन्होंने लगातार 32 पूर्णिमा का व्रत किया और वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है।

बुद्ध पूर्णिमा पूजा विधि

  • सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि कर साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान का विशेष महत्व है, लेकिन यदि किसी कारणवश यह संभव नहीं हो पाता तो सादे पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें।
  • घर के मुख्य द्वार पर हल्दी या कुकुम से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं।
  • इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर श्रीहरि भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर धूप दीप करें।
  • बोधिवृक्ष या पीपल के वृक्ष पर अर्घ्य देकर धूप दीप जलाएं और परिक्रमा करें। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीपल के पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है।
  • साथ ही ध्यान रहे बिना चंद्र दर्शन के पूर्णिमा की पूजा संपूर्ण नहीं मानी जाती। ऐसे में शाम को धूप दीप करने के बाद चंद्र दर्शन अवश्य करें और चंद्र देव को अर्घ्य दें।
  • इस दिन किसी पात्र व्यक्ति या ब्राम्हण को भोजन कराने और दान देने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है।

Buddha Purnima Mantra

ओम श्रां श्रीं स: चन्द्रमसे नम: ।
ओम मणि पदमे हूम्
ओम नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।

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