भए प्रगट कृपाला दीनदयाला जसुमति हितकारी - Summary
प्रगट कृपाला दीनदयाला जसुमति हितकारी का भजन एक विशेष भक्ति गीत है जो भगवान श्री कृष्ण की महिमा का गुंजन करता है। जसुमति हितकारी, एक प्रसिद्ध हिंदी कवि, ने इस भजन को लिखा है और उनका कविता संग्रह ‘नवरस’ उनके अद्भुत काव्य का उदाहरण है, जिसमें उन्होंने नारी के विचारों और भावनाओं को सुंदरता से प्रस्तुत किया है।
यह भजन, “भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,” भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर पाठ किया जाता है। यदि आप भगवान श्री कृष्ण जी को प्रसन्न करने के लिए कोई सरल उपाय खोज रहे हैं, तो यह स्तुति आपके लिए एक अद्भुत साधन हो सकती है। इस स्तुति के पाठ से व्यक्ति को इच्छित वर की प्राप्ति होती है।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला जसुमति हितकारी
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला, यशुमति के हितकारी।
हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी ॥ १॥
कंसासुर जाना अति भय माना, पुतना बेगि पठाई।
सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहाँ जदुराई ॥ २॥
तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें।
तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें ॥ ३॥
जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी।
गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी ॥ ४॥
कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे।
बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे ॥ ५॥
अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका।
ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुये गये शोका ॥ ६॥
यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै।
तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन माँहीं, मन-वांछित फल पावै ॥ ७॥
दोहा – नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय।
तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।
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