सत्यनारायणाची कथा | Satyanarayan Vrat Katha Marathi PDF
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सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ करने से घर के ढुक दूर हो जाते है और इस कथा को एकादशी या पूर्णिमा के दिन किया जाता है। सत्यनारायण कथा हिंदू धर्मों के बीच सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की जाती है।
श्री सत्यनारायण कथा के दिन लोग व्रत रख कर सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान सत्यनारायण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेते है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पाँच अध्यायों में बँटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान।
Satyanarayan Vrat Katha Marathi PDF
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियाँ आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दंड (दण्ड) स्वरूप संपत्ति (सम्पत्ति) और बंधु (बन्धु) बांधवों (बान्धवों) के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।[1]
इनकी पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद (पसन्द) है। इन्हें प्रसाद के तौर पर फल, मिष्टान्न के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू ( पंजीरी ) कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।
श्री सत्यनारायणजी की आरती
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा॥ जय लक्ष्मी… ॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे।
नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे॥ जय लक्ष्मी… ॥
प्रकट भए कलि कारण, द्विज को दरस दियो।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो॥ जय लक्ष्मी… ॥
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी।
चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी॥ जय लक्ष्मी…॥
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्हीं॥ जय लक्ष्मी…॥
भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धर्यो।
श्रद्धा धारण किन्ही, तिनको काज सरो॥ जय लक्ष्मी…॥
ग्वाल-बाल संग राजा, बन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों, दीन दयालु हरि॥ जय लक्ष्मी…॥
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा।
धूप-दीप-तुलसी से, राजी सत्यदेवा॥ जय लक्ष्मी..॥
सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे।
तन-मन-सुख-संपति मनवांछित फल पावै॥ जय लक्ष्मी…॥
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