तुलसीदास का जीवन परिचय Tulsidas ka Jivan Parichay - Summary
तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas ka Jivan Parichay) भारतीय साहित्य में एक खास जगह रखता है। वे एक महान कवि और संत थे, जिनका जीवन और रचनाएँ आज भी सबके लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इस लेख में आप 2025 के अनुसार तुलसीदास के जीवन का विस्तृत परिचय पीडीऍफ़ के रूप में डाउनलोड कर सकते हैं, जिसमें उनके जीवन, शिक्षा और काव्य रचनाओं के बारे में जानकारी है।
तुलसीदास का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
तुलसीदास का जन्म सन् 1589 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी देवी था। बचपन से ही तुलसीदास को वेद, पुराण और उपनिषदों में गहरी रुचि थी। उन्होंने वाराणसी में संस्कृत व्याकरण के साथ-साथ चार वेदों और छह वेदांगों का भी अध्ययन किया। लगभग 16-17 वर्षों की मेहनती पढ़ाई के बाद वे विद्या में निपुण हुए। उनकी शिक्षित और आध्यात्मिक यात्रा ने उन्हें एक महान कवि और संत के रूप में बनाया।
तुलसीदास का विवाह और जीवन का महत्वपूर्ण मोड़
तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली से हुआ, जो एक सुंदर और समझदार महिला थीं। विवाह के बाद जब रत्नावली मायके गईं, तो तुलसीदास जी गहरे अंधकार और उफनती नदी पार कर ससुराल लौटे। जब वे सीधे रत्नावली के कमरे में पहुंचे, तो वह गुस्से में आ गईं और तुलसीदास को कड़े शब्दों में समझाया। इस घटना ने तुलसीदास के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया और इसके बाद उन्होंने आध्यात्मिक जगत में अपना योगदान बढ़ाया।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं और उनका महत्त्व
1631 में रामनवमी के दिन, तुलसीदास ने अयोध्या में रामचरितमानस की रचना शुरू की। यह महाकाव्य 2 साल, 7 महीने और 26 दिनों की मेहनत के बाद, मार्गशीर्ष महीने की विवाह पंचमी के मौके पर 1633 में पूरा हुआ। रामचरितमानस पूरा करने के बाद तुलसीदास वाराणसी लौटे और काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव एवं माता पार्वती को यह कृति सुनाई।
तुलसीदास की अन्य रचनाएँ
- रामललानहछू
- वैराग्य-संदीपनी
- बरवै रामायण
- कलिधर्माधर्म निरुपण
- कवित्त रामायण
- छप्पय रामायण
- कुंडलिया रामायण
- रोला रामायण
- राम शलाका
- कवितावली
- दोहावली
- रामाज्ञाप्रश्न
- गीतावली
- विनयपत्रिका
- संकट मोचन
- छंदावली रामायण
- सतसई
- जानकी-मंगल
- पार्वती-मंगल
- श्रीकृष्ण-गीतावली
- झूलना
इन रचनाओं में तुलसीदास जी की आध्यात्मिकता और भक्ति की भावना दिखती है, जो आज भी भक्तों और साहित्य प्रेमियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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