समास | Samas PDF Hindi

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समास | Samas Hindi

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समास का तात्पर्य है ‘छोटा – रूप’’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। हिंदी व्याकरण में समास का बहुत अधिक महत्व होता है तथा विभिन्न प्रकार की रचनाओं में भी समास अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

समास के निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र। समास-विग्रह सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है।  समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते हैं जैसे- विद्यालय → विद्या के लिए आलयमाता – पिता → माता और पिता

समास के प्रकार | Samas Bhed in Hindi

  1. अव्ययीभाव
  2. तत्पुरुष
  3. द्विगु
  4. द्वन्द्व
  5. बहुव्रीहि
  6. कर्मधारय

अव्ययीभाव 

जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे – यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं। जहाँ एक ही शब्द की बार बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है जैसे – दिनोंदिन, रातोंरात, घर घर, हाथों-हाथ आदि

कुछ अन्य उदाहरण –

  • आजीवन – जीवन-भर
  • यथासामर्थ्य – सामर्थ्य के अनुसार
  • यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
  • यथाविधि- विधि के अनुसार
  • यथाक्रम – क्रम के अनुसार
  • भरपेट- पेट भरकर
  • हररोज़ – रोज़-रोज़
  • हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में

तत्पुरुष समास

‘तत्पुरुष समास – जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे – तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत (रचित)

ज्ञातव्य– विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।

विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-

  1. कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट – गिरह को काटने वाला)
  2. करण तत्पुरुष (मनचाहा – मन से चाहा)
  3. संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर – रसोई के लिए घर)
  4. अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला – देश से निकाला)
  5. संबंध तत्पुरुष (गंगाजल – गंगा का जल)

द्वन्द्व समास

( i ) द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं ।

( ii ) दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते हैं , सदैव नहीं ।

(iii) इसका विग्रह करने पर ‘ और ‘ , अथवा ‘ या ‘ का प्रयोग होता है ।

माता – पिता → माता और पितादाल – रोटी → दाल और रोटीपाप – पुण्य → पाप या पुण्य / पाप और पुण्यअन्न – जल → अन्न और जलजलवायु → जल और वायुफल – फूल → फल और फूलभला – बुरा → भला या बुरारुपया – पैसा → रुपया और पैसाअपना – पराया → अपना या परायानीललोहित → नीला और लोहित ( लाल )

बहुब्रीहि समास

( i ) बहुव्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता ।

( ii ) इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है ।

( iii ) इसका विग्रह करने पर ‘ वाला , है , जो , जिसका , जिसकी , जिसके , वह आदि आते हैं ।

गजानन → गज का आनन है जिसका वह ( गणेश )त्रिनेत्र → तीन नेत्र हैं जिसके वह ( शिव )चतुर्भुज → चार भुजाएँ हैं जिसकी वह ( विष्णु )षडानन → षट् ( छः ) आनन हैं जिसके वह ( कार्तिकेय )दशानन → दश आनन हैं जिसके वह ( रावण )घनश्याम → घन जैसा श्याम है जो वह ( कृष्ण )पीताम्बर → पीत अम्बर हैं जिसके वह ( विष्णु )चन्द्रचूड़ → चन्द्र चूड़ पर है जिसके वहगिरिधर → गिरि को धारण करने वाला है जो वहमुरारि → मुर का अरि है जो वहआशुतोष → आशु ( शीघ्र ) प्रसन्न होता है जो वहनीललोहित → नीला है लहू जिसका वहवज्रपाणि → वज्र है पाणि में जिसके वहसुग्रीव → सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वहमधुसूदन → मधु को मारने वाला है जो वहआजानुबाहु → जानुओं ( घुटनों ) तक बाहुएँ हैं जिसकी वह

द्विगु समास

( i ) द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी – कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है ।

( ii ) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं , जैसा कि बहुव्रीहि समास में देखा है ।

( iii ) इसका विग्रह करने पर समूह ‘ या ‘ समाहार ‘ शब्द प्रयुक्त होता है ।

दोराहा → दो राहों का समाहारपक्षद्वय → दो पक्षों का समूहसम्पादक द्वय → दो सम्पादकों का समूहत्रिभुज → तीन भुजाओं का समाहारत्रिलोक या त्रिलोकी → तीन लोकों का समाहारत्रिरत्न → तीन रत्नों का समूहसंकलन – त्रय → तीन का समाहारभुवन – त्रय → तीन भुवनों का समाहारचौमासा / चतुर्मास → चार मासों का समाहारचतुर्भुज → चार भुजाओं का समाहार ( रेखीय आकृति )चतुर्वर्ण → चार वर्णों का समाहारपंचामृत → पाँच अमृतों का समाहारपंचपात्र → पाँच पात्रों का समाहार

कर्मधारय समास

( i ) कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा पद विशेष्य ।

( ii ) इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर ‘ रूपी ’ शब्द प्रयुक्त होता है –

पुरुषोत्तम → पुरुष जो उत्तमनीलकमल → नीला जो कमलमहापुरुष → महान् है जो पुरुषघनश्याम → घन जैसा श्यामपीताम्बर → पीत है जो अम्बरमहर्षि → महान् है जो ऋषिनराधम → अधम है जो नरअधमरा → आधा है जो मरारक्ताम्बर → रक्त के रंग का ( लाल ) जो अम्बरकुमति → कुत्सित जो मतिकुपुत्र → कुत्सित जो पुत्रदुष्कर्म → दूषित है जो कर्मचरम सीमा → चरम है जो सीमालाल मिर्च → लाल है जो मिर्चकृष्ण – पक्ष → कृष्ण ( काला ) है जो पक्षमन्द – बुद्धि → मन्द जो बुद्धिशुभागमन → शुभ है जो आगमननीलोत्पल → नीला है जो उत्पल

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