राम चालीसा (Ram Chalisa) Hindi

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Ram Chalisa - राम चालीसा Hindi

श्री राम चालीसा PDF हिन्दी अनुवाद सहित – हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आदर्श पुरुष थे। प्रभु श्रीराम विष्णु के दशावतारों में से 7वें अवतार हैं। जीवन के भवसागर से पार पाने के लिए हर मनुष्य को प्रतिदिन राम चालीसा और हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

राम चालीसा पढ़ने से मन्न की इच्छा पूरी होती है। अगर आप नियमित रूप से सच्चे मन्न से श्री राम चालीसा पढ़ते हैं तो निश्चित रूप से आपके मन्न की इच्छा पूरी होती है । आप राम चालीसा किसी भी समय पढ़ सकते हैं।  सुबह का समय राम चालीसा पढ़ने के लिए उचित रहता है।जो कोई भी श्री राम चालीसा पढ़ता है उसे सत्य का ज्ञान होता है। वह यह जान लेता है की जीवन का असली सत्य क्या है। इससे उस इंसान को कोई भी दुःख नहीं रहता। इसके साथ साथ अगर उस इंसान के मन्न में कोई इच्छा है तो उसे इच्छानुसार फल मिलता है।

Ram Chalisa – श्री राम चालीसा हिन्दी अनुवाद सहित

दोहा

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं

चौपाई

श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥

अर्थ :- हे रघुबीर, भक्तों का कल्याण करने वाले हे भगवान श्री राम हमारी प्रार्थना सुन लिजिये। हे प्रभु जो दिन रात केवल आपका ध्यान धरता है अर्थात हर समय आपका स्मरण करता है, उसके समान दूसरा भक्त कोई नहीं है।

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना॥

अर्थ :- भगवान शिव भी मन ही मन आपका ध्यान करते हैं, ब्रह्मा, इंद्र आदि भी आपकी लीला को पूरी तरह नहीं जान सके। आपके दूत वीर हनुमान हैं तीनों लोकों में जिनके प्रभाव को सब जानते हैं।

जय जय जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो सन्तन प्रतिपाला॥
तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥

अर्थ :- हे कृपालु रघुनाथ सदा संतो का प्रतिपालक श्री राम आपकी जय हो, जय हो, जय हो। हे प्रभु आपकी भुजाओं में अपार शक्ति है लेकिन इनसे हमेशा कल्याण हुआ है, अर्थात आपने हमेशा अपनी कृपा बरसाई है। हे देवताओं के प्रतिपालक भगवान श्री राम आपने ही रावण जैसे दुष्ट को मारा।

तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥

अर्थ :- हे प्रभु हे स्वामी जिसका कोई नहीं हैं उसका दामन आप ही थामते हैं, अर्थात आप ही उसके स्वामी हैं, आपने हमेशा दीन-दुखियों का कल्याण किया है। ब्रह्मा आदि भी आपका पार नहीं पा सके, स्वयं ईश्वर भी आपकी कीर्ति का गुणगान करते हैं।

चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥

अर्थ :- आपने हमेशा अपने भक्तों का मान रखा है प्रभु, चारों वेद भी इसके साक्षी हैं। हे प्रभु शारदे मां भी मन ही मन आपका स्मरण करती हैं। देवराज इंद्र भी आपकी महिमा का पार न पा सके।

नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥

अर्थ :- जो भी आपका नाम लेता है, उसके समान धन्य और कोई भी नहीं है। हे श्री राम आपका नाम अपरम्पार है, चारों वेदों ने पुकार-पुकार कर इसका ही बखान किया है। अर्थात चारों वेद आपकी महिमा को अपम्पार मानते हैं।

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥

अर्थ :- भगवान श्री गणेश ने भी आपके नाम का स्मरण किया, सबसे पहले उन्हें पूजनीय आपने ही बनाया। शेषनाग भी हमेशा आपके नाम का जाप करते हैं जिससे वे पृथ्वी के भार को अपने सिर पर धारण करने में सक्षम हुए हैं।

फूल समान रहत सो भारा। पावत कोउ न तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुँ न रण में हारो॥

अर्थ :- आपके स्मरण से बड़े से बड़ा भार भी फूल के समान लगता है। हे प्रभु आपका पार कोई नहीं पा सकता अर्थात आपकी महिमा को कोई नहीं जान सकता।
भरत ने आपका नाम अपने हृद्य में धारण किया इसलिए उसे युद्ध में कोई हरा नहीं सका।

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लषन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥

अर्थ :- शत्रुहन के हृदय में भी आपके नाम का प्रकाश था इसलिए तो आपका स्मरण करते ही वे शत्रुओं का नाश कर देते थे। लक्ष्मण आपके आज्ञाकारी थे जिन्होंनें हमेशा संतों की रखवाली की सुरक्षा की।

ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूँ किन होई॥
महा लक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥

अर्थ :- उनसे भी कोई युद्ध नहीं जीत सकता था चाहे युद्ध में स्वयं यमराज क्यों न लड़ रहे हों। आपके सा -साथ मां महालक्ष्मी ने भी अवतार रुप लेकर हर विधि से पाप का नाश किया।

सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥

अर्थ :- इसीलिए सीता राम का पवित्र नाम गाया जाता है। मां भुवनेश्वरी अपना प्रभाव दिखाती हैं। माता सीता ने जब अवतार लिया तो वे घट यानि घड़े से प्रकट हुई इनका रुप इतना सुंदर था कि जिन्हें देखकर चंद्रमा भी शरमा जाए।

सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्धि चरणन में लोटत॥
सिद्धि अठारह मंगल कारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥

अर्थ :- हे प्रभु जो नित्य आपके चरणों को धोता है नौ निधियां उसके चरणों में लौट लगाती हैं। उसके लिए अठारह सिद्धियां (मार्कंडेय पुराण के अनुसार सिद्धियां आठ होती हैं जबकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में अठारह बताई गई हैं) मंगलकारी होती हैं जो आप पर न्यौछावर हैं।

औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥

अर्थ :- हे सीता पति भगवान श्री राम, अन्य जितने देवी-देवता हैं, सब आपने ही बनाए हैं। आपकी इच्छा हो तो आपको करोड़ों संसारों की रचना करने में भी पल भर की देरी न लगे।

जो तुम्हरे चरनन चित लावै। ताको मुक्ति अवसि हो जावै॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे॥

अर्थ :- जो आपके चरणों में ध्यान लगाता है उसकी मुक्ति अवश्य हो जाती है। हे श्री राम सुन लिजिये आप ही हमारे पिता हैं, आप ही भारतवर्ष में पूज्य हैं।

तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुमहीं राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥

अर्थ :- हे देव आप ही हमारे कुलदेव हैं, हे गुरु देव आप हमें प्राणों से प्यारे हैं। हे प्रभु श्री राम हमारे जो कुछ भी हैं, सब आप ही हैं, हमारी लाज रखिये, आपकी जय हो प्रभु।

रामा आत्मा पोषण हारे। जय जय जय दशरथ के प्यारे॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥

अर्थ :- हे हमारी आत्मा का पोषण करने वाले दशरथ प्यारे भगवान श्री राम, आपकी जय हो।हे ज्योति स्वरुप प्रभु, आपकी जय हो। आप ही निर्गुण ईश्वर हैं, जो अद्वितीय है, अखंडित है।

सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥

अर्थ :- हे सत्य रुप, सत्य के पालक आप ही सत्य हैं, आपकी जय हो। अनादिकाल से ही आप सत्य हैं, अंतर्यामी हैं। सच्चे हृदय से जो आपका भजन करता है, उसे चारों फल प्राप्त होते हैं।

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जापति भूपा॥

अर्थ :- इसी सत्य की शपथ भगवान शंकर ने की जिससे आपने उन्हें भक्ति के साथ-साथ सब सिद्धियां भी दी। हे ज्ञान स्वरुप, हमारे हृदय को भी ज्ञान दो, हे जगपति, हे ब्रह्माण्ड के राजा, आपकी जय हो, हम आपको नमन करते हैं।

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥

अर्थ :- आपका प्रताप धन्य है, आप भी धन्य हैं, प्रभु आपका नाम सारे संतापों अर्थात सारे कष्टों का हरण कर लेता है। आप ही शुद्ध सत्य हैं, जिसे देवताओं ने अपने मुख से गाया था, जिसके बाद शंख की दुंदुभी बजी थी।

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुमहीं हो हमरे तन मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥

अर्थ :- अनादिकाल से आप ही सत्य हैं, हे प्रभु आप ही हमारा तन-मन-धन हैं। जो कोई भी इसका पाठ करता है, उसके हृदय में ज्ञान का प्रकाश होता है, अर्थात उसे सत्य का ज्ञान होता है।

आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिव मेरा ॥
और आस मन में जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥

अर्थ :- उसका आवागमन मिट जाता है, भगवान शिव भी मेरे इस वचन को सत्य मानते हैं। यदि और कोई इच्छा उसके मन में होती हैं तो इच्छानुसार फल प्राप्त होते हैं।

तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्धता पावै॥

अर्थ :- जो कोई भी तीनों काल प्रभु का ध्यान लगाता है। प्रभु को तुलसी दल व फूल अर्पण करता है। साग पत्र से भोग लगाता है, उसे सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

अन्त समय रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरि दास कहै अरु गावै। सो वैकुण्ठ धाम को पावै॥

अर्थ :- अंतिम समय में वह रघुबर पुर अर्थात स्वर्गलोक में गमन करता हैं, जहां पर जन्म लेने से ही जीव हरिभक्त कहलाता है। श्री हरिदास भी गाते हुए कहते हैं वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

दोहा

सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय॥

अर्थ :- यदि कोई भी सात दिनों तक नियम पूर्वक ध्यान लगाकर पाठ करता है, तो हरिदास जी कहते हैं कि भगवान विष्णु की कृपा से वह अवश्य ही भक्ति को पा लेता है।

राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

अर्थ :- राम के चरणों में ध्यान लगाकर जो कोई भी, इस राम चालीसा को पढ़ता है, वह जो भी मन में इच्छा करता है, वह पूरी होती है।

प्रभु श्रीराम की पूजन  विधि

  • प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर, स्नान कर लें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह को शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर आसन पर बैठ जाएं।
  • चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछायें। उस पर श्री राम जी की मूर्ति स्थापित करें। साथ में श्रीराम दरबार की तस्वीर सजाएं। श्रीराम जी का पूरा दरबार जिसमें चारों भाई के साथ हनुमान जी भी दिखाई दे।
  • हाथ में जल ले कर निम्न मंत्र पढ़ते हुए जल अपने ऊपर छिड़क कर अपने आप को पवित्र कर लें।

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा। यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

  • पृथ्वी पूजा:- मन ही मन पृथ्वी मां को प्रणाम करते हुए निम्न मंत्र पढ़ें

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥ पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

  • आचमन :- चम्मच से तीन बार एक- एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़ते हुए, दिए हुए मंत्र का उच्चारण कीजिए –

ॐ केशवाय नमः ॐ नारायणाय नमः ॐ वासुदेवाय नमः

  • फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछ लें। इसक बाद शुद्ध जल से हाथ धो लें।

राम चालीसा पाठ के लाभ – Shri Ram Chalisa Benefits

  • श्री राम चालीसा के पाठ से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • इस चालीसा का प्रतिदिन पूर्ण भक्तिभाव से गायन करने से जातक दीर्घायु होता है।
  • जो व्यक्ति कोर्ट – कचहरी के मामलों में लम्बे समय से फँसा हो, यदि वह नियमित रूप से श्री राम चालीसा एवं श्री राम रक्षास्तोत्र का पाठ करता है तो उसे शीघ्र ही कानूनी बाधाओं से मुक्ति मिल जाएगी।
  • इस दिव्य पाठ के प्रभाव से जातक के व्यक्तित्व का विकास होता है।
  • जिन बच्चों को रात्रि में भय लगता है उन्हें या तो स्वयं अथवा उनके माता पिता को श्री राम चालीसा पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके प्रभाव से बालकों व बड़ों को अज्ञात भय से मुक्ति प्राप्त होती है।

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Size: 0.64 | Pages: 2 | Source(s)/Credits: ia601704.us.archive.org | Language: English

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Added on 16 Aug, 2021 by Pradeep (13.233.164.178)

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