पापांकुशा एकादशी व्रत कथा – Papankusha Ekadashi Vrat Katha & Pooja Vidhi - Summary
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और यह हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है क्योंकि ये भगवान विष्णु को समर्पित है। एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं- शुक्ल और कृष्ण पक्ष के दौरान एक महीने में दो एकादशी होती हैं. हालांकि, हिंदू चंद्र कैलेंडर में अधिक मास (लीप मास) को जोड़ने पर एकादशियों की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
इस दिन, भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना करते है और एक दिन का उपवास रखते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने पर भक्तों की समस्त मनोकामनाएं स्वत: ही पूर्ण हो जाती हैं। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु का पूरे तन मन से ध्यान करें ताकि आपके जीवन का भाग्योदय ही हो।
पापंकुशा एकादशी महत्व
हिंदू ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने पांडव राजा युधिष्ठिर को पापंकुशा एकादशी का महत्व बताया था. महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद, राजा युधिष्ठिर अपने रिश्तेदारों को मारकर युद्ध के दौरान किए गए पापों से छुटकारा पाना चाहते थे. तो भगवान कृष्ण ने उसे सलाह दी और राजा से भगवान पद्मनाभ की पूजा करने को कहा.
पापंकुशा एकादशी पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठें, नहाएं और साफ कपड़े पहनें।
- भगवान पद्मनाभ की पूजा करें, पहले तिलक करें और फिर फूल, अगरबत्ती, प्रसाद आदि चढ़ाएं।
- मंत्रों का जाप करें, विष्णु पुराण और कथा का पाठ करें।
- भगवान विष्णु जी की आरती कर पूजा का समापन करें।
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा पीडीएफ़ – Papankusha Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? अब आप कृपा करके इसकी विधि तथा फल कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। हे राजन! इस दिन मनुष्य को विधिपूर्वक भगवान पद्मनाभ की पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी मनुष्य को मनवांछित फल देकर स्वर्ग को प्राप्त कराने वाली है।
मनुष्य को बहुत दिनों तक कठोर तपस्या से जो फल मिलता है, वह फल भगवान गरुड़ध्वज को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य अज्ञानवश अनेक पाप करते हैं परंतु हरि को नमस्कार करते हैं, वे नरक में नहीं जाते। विष्णु के नाम के कीर्तन मात्र से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है। जो मनुष्य शार्ङ्ग धनुषधारी भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं, उन्हें कभी भी यम यातना भोगनी नहीं पड़ती।
जो मनुष्य वैष्णव होकर शिव की और शैव होकर विष्णु की निंदा करते हैं, वे अवश्य नरकवासी होते हैं। सहस्रों वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों से जो फल प्राप्त होता है, वह
एकादशी के व्रत के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होता है। संसार में एकादशी के बराबर कोई पुण्य नहीं। इसके बराबर पवित्र तीनों लोकों में कुछ भी नहीं। इस एकादशी के बराबर कोई व्रत नहीं। जब तक मनुष्य पद्मनाभ की एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, तब तक उनकी देह में पाप वास कर सकते हैं।
हे राजेन्द्र! यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन की देने वाली है। एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। हरिवासर तथा एकादशी का व्रत करने और जागरण करने से सहज ही में मनुष्य विष्णु पद को प्राप्त होता है। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं। वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं।
हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद्गति को प्राप्त होता है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की इस पापांकुशा एकादशी का व्रत जो मनुष्य करते हैं, वे अंत समय में हरिलोक को प्राप्त होते हैं तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूती दान करने से मनुष्य यमराज को नहीं देखता।
जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन के दिन व्यतीत करता है, वह लोहार की भट्टी की तरह साँस लेता हुआ निर्जीव के समान ही है। निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए तथा धनवालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवाकर दान करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता तथा संसार में दीर्घायु होकर धनाढ्य, कुलीन और रोगरहित रहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे राजन! जो आपने मुझसे मुझसे पूछा वह सब मैंने आपको बतलाया। अब आपकी और क्या सुनने की इच्छा है?
विष्णु भगवान जी की आरती
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