मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र - Summary
मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Desert Ecosystem) मरुस्थलीय वातावरण के जैविक और अजैविक दोनों घटकों के बीच परस्पर क्रिया का अध्ययन है। एक मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को जीवों, जिस जलवायु में वे रहते हैं, और निवास स्थान पर किसी भी अन्य निर्जिव प्रभावों के बीच परस्पर क्रिया द्वारा परिभाषित किया जाता है। ये पारिस्थितिक तंत्र उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वाष्पीकरण वर्षण (वर्षा, हिमपात आदि) से अधिक होता है। प्रति वर्ष 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है। हमारे विश्व के भूमि क्षेत्र का लगभग एक तिहाई भाग मरुस्थल से आच्छादित है। मरुस्थल में प्रजातियों की विविधता बहुत कम होती है और इसमें सूखा प्रतिरोधी या सूखे से बचने वाले पौधे होते हैं। वातावरण बहुत शुष्क है और इसलिए यह एक खराब विसंवाहक है। यही कारण है कि मरुस्थल में मिट्टी जल्दी ठंडी हो जाती है, जिससे रातें ठंडी हो जाती हैं।
रेगिस्तान के प्रकार
रेगिस्तान तापमान और मौसम की एक विस्तृत श्रृंखला का अनुभव करते हैं, और उन्हें चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: गर्म, अर्ध-शुष्क, तटीय और ठंडा। गर्म रेगिस्तान साल भर गर्म तापमान और कम वार्षिक वर्षा का अनुभव करते हैं। गर्म रेगिस्तानों में आर्द्रता का निम्न स्तर दिन के उच्च तापमान और रात के समय व्यापक गर्मी के नुकसान में योगदान देता है। गर्म रेगिस्तानों में औसत वार्षिक तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होता है, हालांकि, चरम मौसम की स्थिति में तापमान -18 से 49 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है।
मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र- निम्नलिखित तीन घटक होते हैं:
- अजैविक उपभोक्ता :- घटक (Abiotic Components)
- अकार्बनिक घटक – मृदा, जल (कम मात्रा में), वायु (तेज प्रवाह), प्रकाश(तीव्र), खनिज तत्व, गैसें जैसे- CO2, N2, K2 आदि।
- कार्बनिक घटक – कार्बोहईड्रेट्स, प्रोटीन्स, लिपिड्स, एमिनो, अम्ल आदि।
- जैविक घटक(Biotic Components)
- उत्पाद :- इसके अंतर्गत घनी झाड़ियाँ, कुछ प्रकार के घास तथा कुछ हरे पौधे जैसे- नागफनी, बाबुल, कंटीले पौधे आदि पाये जाते हैं।
- मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में भी तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जाते हैं।
- प्राथमिक उपभोक्ता(Primary Consumers) :- सभी उपभोक्ता जो शाकाहारी(Herbivorous) होते हैं, तथा अपने भोजन हेतु उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। उदाहरण – कीड़े- मकोड़े, गाय, बैल, भैंस, भेंड़, बकरियां, घोड़े, गधे, चूहे, हिरण आदि।
- द्वितीयक उपभोक्ता(Secondary Consumers):- इसके अंतर्गत घास के मैदान में उपस्थित वे सभी मांसाहारी जन्तु आते हैं जो शाकाहारी जन्तुओं का शिकार करते हैं। उदाहरण – साँप, भेड़िया, लकड़बग्घा, कौआ आदि।
- तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers) :- वो जन्तु जो अपना भोजन हेतु द्वितीयक उपभोक्ताओं पर आश्रित हैं, तथा उनका शिकार करके अपना भरण पोषण करते हैं, जिन्हें सर्वोच्च मांसाहारी (Top Carnivorous) जन्तु भी कहते हैं। उदाहरण – बाज, सिंह, शेर, चीता आदि।
- अपघटक :- चूँकि मरुस्थलों में वनस्पत्तियों की कमी होती है, अतः यहाँ पर अपघटकों की संख्या कम होती है। यहाँ पर ऐसे कवक और जीवाणु अपघटक के रूप में पाए जाते हैं, जिनमें उच्च ताप को सहने की क्षमता होती है।
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