Ekadashi Vrat Katha Gita Press - Summary
एकादशी व्रत एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो हर माह के ग्यारही तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और भक्तगण इसे भक्ति और पापमुक्ति के लिए करते हैं। यह व्रत विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि “कामिका एकादशी,” “मोहिनी एकादशी,” “अपरा एकादशी,” आदि, और इसका महत्व भागवत पुराण में उल्लिखित है।
एकादशी व्रत हर मास के ग्यारही तिथि को मनाया जाता है, जो उस माह के कृष्ण पक्ष की ग्यारही तिथि होती है। एकादशी की रात्रि को भक्त जागरण करते हैं, जिसमें भजन, कीर्तन, और भगवद गीता के पाठ की जाती है। एकादशी व्रत का पालन करने से मान्यता है कि भक्त अपने पापों का प्रायश्चित्त करते हैं और भगवान के कृपा से मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। यह व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और भक्त इसे विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
Ekadashi Vrat Katha Gita Press- एकादशी व्रत परिचय
कृष्णचन्द्र अर्जुन से बोले कि एक बार नैमिषारण्य में भगवान श्री शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि एकत्रित हुये, उन्होंने सूतजी से प्रार्थना की हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों का महात्म्य सुनाने की कृपा करें। सूतजी बोले- हे महर्षियों! एक वर्ष में बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं, सो एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुईं। जिस वर्ष में लौंद मास (अधिक मास) पड़ता है, उस वर्ष दो एकादशी और बढ़ जाती हैं। इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं।
एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन व आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ सुथरा कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें व पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें। प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि ‘आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूँगा और न ही किसी का मन दुखाऊँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा।’
एकादशी व्रत विधि
- ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मन्त्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाएँ। भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।
- यदि भूलवश किसी निन्दक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा माँग लेना चाहिए। एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए। न नही अधिक बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।
- इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
- फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। केला, आम, दाख (अंगूर), बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए। क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलने चाहिए।
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