दशरथ स्तुति शनि देव (Dashrath Krit Shani Stotra) Sanskrit, Hindi PDF

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दशरथ स्तुति शनि देव (Dashrath Krit Shani Stotra) - Summary

दशरथ स्तुति शनि देव, एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्तुति है, जो शनि देव की कृपा पाने और सभी संकटों से मुक्त होने के लिए गाई जाती है। यह कहानी उस समय की है जब महाराज दशरथ रघुवंशी साम्राज्य के राजा थे। उस समय शनि देव ने चंद्रमा को दंड देने के लिए ग्रहों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया था। जैसे-जैसे शनि देव धरती पर आ रहे थे, ऋषि-मुनियों ने राजा दशरथ को चेताया कि यदि शनि देव ने पूरी तरह से ग्रहों को प्रभावित किया, तो धरती पर बहुत बड़ा सूखा पड़ जाएगा, जिससे अनेक जीवन संकट में पड़ जाएंगे।

शनि देव की कृपा के लिए दशरथ स्तुति

इस विनाश को रोकने के लिए शनि देव को रोकना अति आवश्यक था। इसलिए, राजा दशरथ ने शनि देव का सामना करने का निश्चय किया। उनके बीच युद्ध हुआ, लेकिन राजा दशरथ हार गए। इसलिए, शनि देव को रोकने और प्रसन्न करने के लिए उन्होंने एक स्तुति गाई। यह स्तुति सुनकर शनि देव प्रसन्न हुए और कहा कि जो भी व्यक्ति इस दशरथ स्तुति का पाठ करेगा, वह सभी कष्ट और संकटों से मुक्त हो जाएगा।

इसलिए, अगर आप भी किसी भी संकट से परेशान हैं, तो आप शनि देव की दशरथ स्तुति हर शनिवार को गा सकते हैं।

दशरथ स्तुति शनि देव अथवा दशरथ कृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।   
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।  

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।  
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।  

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।  
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।  

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।  
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।  

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।  
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।  

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।  
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।  

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।  
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।  

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।  
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।  

देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:।  
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।  

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।  
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।

दशरथ स्तुति शनि देव हिन्दी अनुवाद

हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले।    
कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले॥    
स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।    
सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे॥    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥    

हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।    
हे दीर्घ नेत्र वाले, शुष्कोदरा निराले॥    
भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥    

हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।    
कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले॥    
तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥    

हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा।    
हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ॥    
हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।    
हैं पूज्य चरण तेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥    

हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।    
हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी॥    
विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।    
स्वीकारो नमन मेरे। हे पूज्य देव मेरे॥    

अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।    
तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी॥    
संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥    

नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो।    
हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो॥    
हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥    

जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि।    
वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये॥    
उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥    

हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।    
मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता॥    
डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥    

हो मूलनाश उनका, दुर्बुद्धि होती जिन पर।    
हो देव असुर मानव, हो सिद्ध या विद्याधर॥    
देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।    
स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥    

होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।    
बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै॥    
सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।    
स्वीकारो नमन मेरे। हैं पूज्य चरण तेरे॥    

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