अपरा एकादशी – Apara Ekadashi Vrat Katha - Summary
अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी के व्रत का पुण्य अपार होता है और व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी (Ekadashi) का व्रत करने से मुनष्य भवसागर तर जाता है और उसे प्रेत योनि के कष्ट नहीं भुगतने पड़ते।
कहते हैं जो विधि पूर्वक अपरा एकादशी का व्रत (Apara Ekadashi Vrat) करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से न सिर्फ भगवान विष्णु बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और भक्त का घर धन-धान्य से भर देती हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक अपरा एकादशी हर साल मई या जून महीने में आती है।
अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।
जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।
यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।
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अपरा एकादशी की पूजन विधि
– एकादशी से एक दिन पूर्व ही व्रत के नियमों का पालन करें।
– अपरा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें।
– इसके बाद स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें व्रत का संकल्प लें।
– अब घर के मंदिर में भगवान विष्णु और बलराम की प्रतिमा, फोटो या कैलेंडर के सामने दीपक जलाएं।
– इसके बाद विष्णु की प्रतिमा को अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं।
– विष्णु की पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें।
– इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्णु की आरती उतारें।
– अब सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
– एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं।
– व्रत के दिन निर्जला व्रत करें।
– शाम के समय तुलसी के पास गाय के घी का एक दीपक जलाएं।
– रात के समय सोना नहीं चाहिए. भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए।
– अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें।
– इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करे।
इस Apara Ekadashi Vrat Katha PDF में निम्न्लिखित जानकारी उपलब्ध है:
1) अपरा एकादशी का महत्व
2) अपरा एकादशी व्रत कथा
3) अपरा एकादशी क्या है
अपरा एकादशी – Apara Ekadashi Vrat Katha
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