सूर्य सिद्धांत – Surya Siddhanta Hindi PDF

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सूर्य सिद्धांत – Surya Siddhanta - Summary

सूर्य सिद्धांत – Surya Siddhanta

सूर्य सिद्धांत भारतीय खगोलशास्त्र का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है, जिसे आजकल के लोग खगोल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण और शिक्षाप्रद सामग्री मानते हैं। यह कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का हिस्सा है। वर्तमान में उपलब्ध सूर्य सिद्धांत का ग्रन्थ मध्ययुग में लिखा गया लगता है, लेकिन यह प्राचीन संस्क्रणों पर आधारित है, जो 6ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित माने जाते हैं।

सूर्य सिद्धांत का ऐतिहासिक दृश्य

सूर्य सिद्धांत नामक इस महत्वपूर्ण कार्य का कई बार पुनर्लेखन किया गया है। इसके प्राचीनतम उल्लेख बौद्ध काल (तीसरी शताब्दी, ई.पू) तक मिलते हैं। यह कार्य प्रकाशन एवं सम्पादन के माध्यम से मध्य काल को दर्शाता है। वाराहमिहिर की एक टीका, जो दसवीं शताब्दी में लिखी गई, ने सूर्य सिद्धांत से छः श्लोकों का उद्धरण किया है, जिनमें से कोई भी अब इस पाठ में नहीं मिलता है। इसलिए, वर्तमान सूर्य सिद्धांत को वाराहमिहिर के समय के उपलब्ध पाठ्य का सीधे वंशज माना जा सकता है।

सूर्य सिद्धांत का महत्व

सूर्य सिद्धांत भारतीय खगोल विज्ञान में चौथी शताब्दी के अंत या 5 वीं शताब्दी की शुरुआत में लिखा गया एक संस्कृत ग्रंथ है, जिसमें चौदह अध्याय शामिल हैं। यह खगोल विज्ञान और समय की गणना का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो वैदिक काल के ज्योतिष (वेदांग) के क्षेत्र में पहले से अवस्थित विचारों को दर्शाता है।

ज्योतिष का अध्ययन समय का पता लगाने से जुड़ा है, खासकर वैदिक अनुष्ठानों के लिए शुभ दिन और समय की भविष्यवाणी करने के लिए। प्राचीन वैदिक ग्रंथ समय के चार उपायों – सवाना, सौर, चंद्र और नाक्षत्र – का वर्णन करते हैं, और साथ ही तारों (तारों) का उपयोग करके सत्ताईस नक्षत्रों की जानकारी देते हैं। गणितज्ञ और क्लासिकिस्ट डेविड पिंगरी के अनुसार, हिंदू पाठ अथर्ववेद में अट्ठाईस नक्षत्रों और खगोलीय पिंडों की गति का भी उल्लेख है।

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