पितृ तर्पण (श्राद्ध विधि) मंत्र (Pitru Tarpan Mantra) Hindi PDF

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पितृ तर्पण (श्राद्ध विधि) मंत्र (Pitru Tarpan Mantra) - Summary

17 सितंबर 2024 को स्नानदान पूर्णिमा के साथ पितृ तर्पण (श्राद्ध विधि) की शुरुआत होगी। यह विशेष समय पितृ पक्ष का माने जाने वाला है, जो 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा। पितृ पक्ष का ये समय हमारे पूर्वजों की याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। श्राद्ध और तर्पण का अर्थ यह है कि सत्य और श्रद्धा से जो कर्म किए जाएं, उन्हें श्राद्ध कहा जाता है, और जिसे माता, पिता और आचार्य की तृप्ति के लिए किया जाता है, उसे तर्पण कहते हैं। वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा जाता है।

पितृ तर्पण की महत्ता

यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता, पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का एक बहुत ही जरूरी भाव है। ऐसा माना जाता है कि इस श्रद्धांजलि से ही पितरों को तृप्ति होती है। तर्पण करने का अधिकार किसी भी पुत्र, पौत्र, भतीजे या भांजे को होता है। यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं हैं लेकिन पुत्री के वंश में हैं, तो दामाद और धेवता भी श्राद्ध कर सकते हैं।

पितृ पक्ष तर्पण मंत्र (Pitru Tarpan Mantra in Sanskrit)

अगर आप घर पर पितृ तर्पण करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:

पितृ तर्पण विधि

  1. अपने गोत्र का उच्चारण करें एवं पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
  2. अपने गोत्र का उच्चारण करें, दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
  3. अपने गोत्र का उच्चारण करें, पिताजी के दादाजी (प्रपितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
  4. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नाना का नाम लेकर उन्हें तीन बार तर्पण दें।
  5. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नाना के पिताजी (पर नाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
  6. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नाना के दादा (वृद्ध पर नाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
  7. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नानी का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
  8. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नानाजी की मां (पर नानी) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
  9. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नानाजी की दादी (वृद्ध पर नानी) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।
  10. अपने गोत्र का उच्चारण करें और अपनी दिवंगत (जो स्वर्गवासी हो) पत्नी और अन्य दिवंगत सदस्यों का नाम लेकर तीन-तीन बार तर्पण दें। परिवार के सभी दिवंगत सदस्यों, जैसे बुआ, मामा, मौसी, मित्र एवं गुरु को भी तर्पण दें।

पिता तर्पण मन्त्र

अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें:
गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंग जलं व तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मन्त्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें। जल देते समय ध्यान रखें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। इसके बाद पितामह को भी जल दें।

पितामह तर्पण मन्त्र

अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें:
गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।

माता तर्पण मन्त्र

अगर आपकी माता इस संसार से विदा हो चुकी हैं, तो उन्हें जल देना भी महत्वपूर्ण है। माता को जल देने का मन्त्र पिता और पितामह से अलग होता है। माता का ऋण सबसे बड़ा माना गया है, इसलिए उन्हें जल ज्ञान से अधिक बार दिया जाता है। माता को जल देने का मन्त्र है:
(गोत्र का नाम लें) गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मन्त्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।

दादी तर्पण मन्त्र

(गोत्र का नाम लें) गोत्रे पितामां (दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मन्त्र में जितनी बार माता को जल दिया है, दादी को भी जल दें। श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे अधिक है, इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव अवश्य रखें। श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न-जल ही पितर ग्रहण करते हैं। यदि श्रद्धा का भाव न हो, तो पितर उसे ग्रहण नहीं करते हैं।

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