Kartik (Sharad) Purnima Vrat Katha & Pooja Vidhi - Summary
कार्तिक पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है। यह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अवतार मत्स्य रूप की पूजा की जाती है और देवताओं का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस दिन स्नान, दान और दीपदान करने से व्यक्ति को अनंत पुण्य प्राप्त होता है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा भक्ति, धर्म और ज्ञान का संदेश देती है। इस दिन मंदिरों और घाटों पर दीप जलाने की परंपरा होती है, जिसे देव दीपावली भी कहा जाता है। भक्तजन इस अवसर पर गंगा स्नान, व्रत और भगवान की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और विष्णु दोनों की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
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कार्तिक पूर्णिमा कथा – Kartik Purnima Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था. उसके तीन पुत्र थे- तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए. तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो. तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
इसके बाद तीनों ने किसी दूसरे वरदान के बारे में सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा- जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हजार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए. ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया. इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए. इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनीं. चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बनें. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोंक बने अग्निदेव. इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव. भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि – Kartik Purnima Pooja Vidhi
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करें। संभव हो तो स्नान गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदियों में करें। सूर्य को जल देने के लिए तांबे के लोटे में जल ले कर उसमें लाल फूल, गुड़ और चावल मिला लें।
- इस दिन घर के मुख्य द्वार को आम के पत्तों से सजाएं और शाम को सरसों का तेल, काले तिल और काले वस्त्र किसी गरीब या जरुरतमंद को अवश्य दान करें।
- इस दिन तुलसी पूजा और दीपक जला कर तुलसी के स्तोत्र का पाठ करें।
- इसके बाद 1, 3, 5, 7 या 11 बार परिक्रमा जरूर करें। इसके बाद भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु के पूजा करें और व्रत पालन कर रहे हो तो नमक का त्याग करें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजन होने के बाद अंत में चन्द्रमा की छः कृतिकाओं का पूजन करना भी लाभदायी होता हैं।
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