गोवर्धन पूजा विधि और कथा | Govardhan Puja Vidhi and Katha PDF Hindi

गोवर्धन पूजा विधि और कथा | Govardhan Puja Vidhi and Katha Hindi PDF Download

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गोवर्धन पूजा विधि और कथा | Govardhan Puja Vidhi and Katha Hindi PDF

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गोवर्धन का पर्व दिवाली के दूसरे दिन आता है इस दिन लोग अपने घरों में भगवान गोवर्धन पर्वत की चित्र बना के उसकी पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा या अन्न कूट का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व की खास रौनक मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव में देखने को मिलती है।

धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था। इस पर्व पर गौ माता की पूजा का भी विशेष महत्व है। गोवर्धन पूजा विधि और कथा पीडीएफ़ में डाउनलोड करके गोवर्धन पर्वत की पूजा कर सकते हैं। मान्यता है जो गोवर्धन पूजा करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है। गोवर्धन पूजा प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित पर्व है। इस दिन कई मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानी भंडारे होते हैं। पूजन के बाद लोगों में प्रसाद बांटा जाता है।

गोवर्धन पूजा विधि | Govardhan Puja Vidhi

  • सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं।
  • इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें।
  • कहा जाता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे दिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से सालभर भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है।
  • भगवान श्री कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • इस दिन भगवान को 56 या 108 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने की परंपरा भी है।
  • भगवान श्री कृष्ण की आरती करें।

गोवर्धन पूजा 2021 मुहूर्त

गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – 06:36 AM से 08:47 AM
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त – 03:22 PM से 05:33 PM
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 05, 2021 को 02:44 AM बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – नवम्बर 05, 2021 को 11:14 PM बजे

गोवर्धन पूजा कथा | Govardhan Puja Katha

धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था। इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने लीला रची। एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे। यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?

यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि, भगवान इंद्र देव की कृपा हो तो अच्छी बारिश होती है जिससे हमारे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारे पशुओं को चारा मिलता है। माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, अगर हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वहीं चारा चरती हैं और वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से ही बारिश होती है।

भगवान कृष्ण की बात मानकर गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और ब्रज के लोगों से बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासी घबरा गए। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाया और सभी लोग इसके नीचे आकर खड़े हो गए।

भगवान इंद्र ने 7 दिनों तक लगातार बारिश की और 7 दिनों तक भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को उठाए रखा। भगवान कृष्ण ने एक भी गोकुल वासी और जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचने दिया, ना ही बारिश में भीगने दिया। तब भगवान इंद्र को अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला कोई साधारण मनुष्य तो नहीं कर सकता है। जब उन्हें यह बात पता चली कि मुकाबला करने वाले स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं तो उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना मांगी और मुरलीधर की पूजा करके उन्हें स्वयं भोग लगाया और माना जाता है तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।

गोवर्धन आरती

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े, तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा, और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ, ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ, तेरी झांकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण। करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

भगवान श्री कृष्णजी की आरती

आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजन्तीमाला बजावैं मुरलि मधुर बाला॥
श्रवण में कुंडल झलकाता नंद के आनंद नन्दलाला की। आरती…।
गगन सम अंगकान्ति काली राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर-सी अलक कस्तूरी तिलक।
चंद्र-सी झलक ललित छबि श्यामा प्यारी की। आरती…।
कनकमय मोर मुकुट बिलसैं देवता दरसन को तरसैं।
गगन से सुमन राशि बरसैं बजै मुरचंग मधुर मृदंग।
ग्वालिनी संग-अतुल रति गोपकुमारी की। आरती…।
जहां से प्रगट भई गंगा कलुष कलिहारिणी गंगा।
स्मरण से होत मोहभंगा बसी शिव शीश जटा के बीच।
हरै अघ-कीच चरण छवि श्री बनवारी की। आरती…।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू बज रही बृंदावन बेनू।
चहुं दिशि गोपी ग्वालधेनु हंसत मृदुमन्द चांदनी चंद।
कटत भवफन्द टेर सुनु दीन भिखारी की। आरती…।

Govardhan Puja Vidhi and Katha PDF

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गोवर्धन आरती पीडीएफ़

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