चौपाई साहिब पाठ (Chaupai Sahib Path) - Summary
चौपाई साहिब पाठ (Chaupai Sahib Path) एक महत्वपूर्ण पंजाबी प्रार्थना है, जिसे दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने लिखा है। यह सिख धर्म की एक भक्ति प्रार्थना है, जिसमें भक्त भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।
अगर आप हर सुबह चौपाई साहिब पाठ करते हैं, तो आपके सभी दुःख, परेशानियाँ और कष्टों का अंत हो जायेगा। चौपाई साहिब पाठ श्री दसम ग्रंथ साहिब जी के चारित्र 404 में बनी आठ पख्यान चेयरतार लेखाते में मौजूद है।
चौपाई साहिब पाठ – Chaupai Sahib Path Hindi
कबयो बाच बेनती ॥
चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रछा ॥
पूरन होइ चित की इच्छा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥ 377 ॥
हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥
आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥
सेवक सिखय सभै करतारा ॥ 378 ॥
मो रछा निजु कर दै करियै ॥
सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥
पूरन होइ हमारी आसा ॥
तोरि भजन की रहै पियासा ॥ 379 ॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥
जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥
सेवक सिखय हमारे तारियहि ॥
चुन चुन शत्रु हमारे मारियहि ॥ 380 ॥
आपु हाथ दै मुझै उबरियै ॥
मरन काल त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे पछा ॥
स्री असिधुज जू करियहु रछा ॥ 381 ॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥
साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीनबंधु दुशटन के हंता ॥
तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥ 382 ॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥
काल पाइ शिवजू अवतरा ॥
काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥
सकल काल का कीया तमाशा ॥ 383 ॥
जवन काल जोगी शिव कीयो ॥
बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥
नमशकार है ताहि हमारा ॥ 384 ॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत ज्छन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥ 385 ॥
नमशकार तिस ही को हमारी ॥
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥
शत्रुन को पल मो बध कीयो ॥ 386 ॥
घट घट के अंतर की जानत ॥
भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुंचर असथूला ॥
सभ पर क्रिपा दृष्टि करि फूला ॥ 387 ॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानै ॥
घट घट के पट पट की जानै ॥ 388 ॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥
तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥ 389 ॥
जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥
आपु आपुनी बूझि उचारै ॥
तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥
जानत बेद भेद अरु आलम ॥ 390 ॥
निरंकार न्रिबिकार न्र्लिमभ ॥
आदि अनील अनादि अस्मभ ॥
ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥
जाको भेव न पावत बेदा ॥ 391 ॥
ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥
महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥
महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥ 392 ॥
आपु आपुनी बुधि है जेती ॥
बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥
किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥ 393 ॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कहीं भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥
उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥ 394 ॥
कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥
कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥
सगरी स्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥
आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥ 395 ॥
अब रछा मेरी तुम करो ॥
सिखय उबारि असिखय स्घरो ॥
दुशट जिते उठवत उतपाता ॥
सकल मलेछ करो रण घाता ॥ 396 ॥
जे असिधुज तव शरनी परे ॥
तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥ 397 ॥
जो कलि कौ इक बार धिहै ॥
ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥
रछा होइ ताहि सभ काला ॥
दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥ 398 ॥
क्रिपा दृष्टि तन जाहि निहरिहो ॥
ताके ताप तनक महि हरिहो ॥
रिधि सिद्धि घर मों सभ होई ॥
दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥ 399 ॥
एक बार जिन तुमैं सम्हारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥
दारिद दुशट दोख ते रहा ॥ 400 ॥
खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥
दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥ 401 ॥
क्रिपा करी हम पर जगमाता ॥
ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥
किलबिख सकल देह को हरता ॥
दुशट दोखियन को छै करता ॥ 402 ॥
स्री असिधुज जब भए दयाला ॥
पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥
मन बांछत फल पावै सोई ॥
दूख न तिसै बिआपत कोई ॥ 403 ॥
अड़ि्ल ॥
सुनै गुंग जो याहि सु रसना पावई ॥
सुनै मूड़्ह चित लाइ चतुरता आवई ॥
दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥
हो जो याकी एक बार चौपई को कहै ॥ 404 ॥
चौपई ॥
स्मबत स्त्रह सहस भणि्जै ॥
अरध सहस फुनि तीनि कहि्जै ॥
भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा ॥
तीर सतु्द्रव ग्रंथ सुधारा ॥ 405 ॥
इति स्री चरित्र पख्याने त्रिया चरित्रे मंत्री भूप स्मबादे चार सौ चार चरित्र समापतम सतु सुभम सतु ॥ 403 ॥ 7134 ॥ अफजूं ॥
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