BHDC 132 Book Hindi
मध्यकालीन हिंदी कविता के अंतर्गत यह खंड पूर्व मध्यकालीन साहित्य के कुछ प्रमुख कवियों कबीर, रविदास जायसी, तथा मीराबाई पर आधारित है। कबीर, रविदास तथा जायसी निर्गुण काव्यधारा के कवि हैं और मीराबाई सगुण काव्यधारा की मध्यकालीन कवि व्यापक लोक मंगल के संस्थापक और रक्षक है कर्मकांड, धर्मशास्त्र, पुराणवाद, कट्टर आचार-विचार, अंध विश्वास और आडंबर की रीति नीति के विरुद्ध मूलतः ज्ञान और प्रेम की शक्ति से मानव मुक्ति के पक्षधर हैं। ये सभी कवि जनभाषाओं में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। जनता की समस्याओं और चुनौतियों को जनता के सामने, जनता की भाषा में अभिव्यक्ति देना इन भक्त कवियों को इष्ट रहा है।
इस खंड में प्रथम दो इकाइयाँ मध्यकाल के दो प्रमुख काल भक्तिकाल और रीतिकाल के काव्यों के स्वरूप और विकास पर आधारित हैं। इकाई 1 ‘भक्तिकाव्य का स्वरूप और विकास’ है। इस इकाई में भक्ति का अर्थ, स्वरूप, भक्तिकाव्य की विशेषताएँ तथा भक्ति काव्य की प्रमुख चार शाखाओं पर विचार-विमर्श किया गया है। इकाई 2 ‘रीतिकाव्य का स्वरूप एवं विकास’ है। इस इकाई में रीति का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए रीतिकाव्य की विशेषताओं तथा मूल प्रवृत्तियों की जानकारी दी गई है। इकाई 3 ‘कबीर का काव्य’ है। इस इकाई में कबीर के काव्य की विशेषताएँ बताई गई हैं तथा उनकी भक्ति एवं दर्शन पर विचार किया गया है। इकाई 4 ‘रविदास का काव्य’ है। इस इकाई में रविदास की कविता की विशेषताओं एवं उनकी भक्ति के विशिष्ट पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इकाई 5 ‘जायसी का काव्य’ है। इस इकाई में सूफी कवि जायसी के साहित्य के विविध पक्षों पर विचार किया गया है। इकाई 6 ‘मीरा का काव्य’ है। इस इकाई में कृष्ण भक्त कवि मीरा की रचनाओं और उनके काव्य सौंदर्य का विवेचन किया गया है।
BHDC 132 Book
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