भारत वंदना कविता का भावार्थ Hindi PDF
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मातृ वंदना” कविता हिंदी के महान कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी’ द्वारा रचित की एक देशभक्ति कविता है। निराला जी ने इस कविता के माध्यम से हर भारतवासी को अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित किया है। कवि कहते हैं कि अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करना और उसके सम्मान के लिए अपना सर्वस्तव अर्पण कर देना ही हर देशवासी का कर्तव्य है।
निराला जी ने अपनी कविता मातृ वंदना के माध्यम से मातृभूमि भारत के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति भाव प्रदर्शित किया है। निराला जी ने अपने जीवन में स्वार्थ भाव तथा जीवन भर के परिश्रम से प्राप्त सारे फल मां भारती के चरणों में अर्पित करते है।
भारत वंदना कविता का भावार्थ
भारत वंदना की व्याख्या करें तो सुनो भारत वंदना कविता का केंद्रीय भाव निराला जी ने इस कविता के माध्यम से हर भारतवासी को अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित किया है कभी कहते हैं कि अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करना और उसके सामान के लिए अपना सर्वस्व अस्त्र अपन कर देना ही हर देशवासी का कर्तव्य है।
महाकवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी’ द्वारा रचित ‘मातृ वंदना’ कविता देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कविता है। उन्होंने अपनी कविता ‘मातृ वंदना’ के माध्यम से मातृभूमि भारत के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति भाव प्रदर्शित किया है। अपने जीवन में स्वार्थ भाव तथा जीवन भर के परिश्रम से प्राप्त फल को निराला जी ने माँ भारती के चरणों में अर्पित करते हैं।
उन्होंने ने इस कविता के जरिये से हर भारतवासी को अपने देश के प्रति कर्तव्य तथा फर्ज को निभाने के लिए प्रेरित किया है। निराला जी कहते हैकि अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र रखना और उसके सम्मान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देना ही हर देशवासी का कर्तव्य है।
भारत वंदना कविता का संपूर्ण भावार्थ
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता कवि निराला के जीवन-दर्शन पर प्रकाश डालती है। कवि इस रचना द्वारा संदेश देना चाहता है कि मनुष्य को आत्मविश्वास और उत्साह के साथ जीवन बिताना चाहिए। युवावस्था जीवन का सर्वोत्तम सुअवसर होता है। मृत्यु की चिन्ता न करते हुए व्यक्ति को युवावस्था में जीवन का आनन्द लेना चाहिए। अपने आनन्द और उत्साह से समाज के सोए हुए लोगों को लाभान्वित करना चाहिए। कवि अंत की उपेक्षा करते हुए जीवन के आरम्भ को महत्व देना चाहता है। उसे विश्वास है कि उसकी जीवन-लीला शीघ्र समाप्त नहीं होने वाली। उसे सक्रियता से सार्थक जीवन बिताना चाहिए और अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।
‘मातृ-वन्दना’ कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
निराला जी की कविता ‘मातृ-वन्दना’ मातृभूमि भारत के प्रति असीम भक्ति भाव पर केन्द्रित है। ‘निराला’ अपने सारे स्वार्थभाव तथा जीवनभर के श्रम से प्राप्त सारे फल माँ भारती के चरणों में अर्पित करने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं। चाहे उनके जीवन में कितनी भी बाधाएँ और कष्ट क्यों न आएँ, वह सभी को सहन करते हुए पराधीन जन्मभूमि को स्वतन्त्र कराने के लिए कृत संकल्प है। कवि ने हर देशवासी के सामने देश के प्रति उसके पवित्रतम् कर्तव्य को प्रस्तुत किया है। मातृभूमि को स्वतन्त्र और सुखी बनाने के लिए सर्वस्व समर्पण कर देना, कवि के अनुसार सबसे महान कर्तव्य है।
कवि निराला को अभी न होगा मेरा अंत’ यह विश्वास किस कारण है?
उत्तर:
कवि निराला को पूरा विश्वास है कि उनके भौतिक और कवि जीवन का अंत शीघ्र नहीं होने वाला है। इसका कारण कवि बताता है कि उसके जीवन में वसंत ऋतु जैसा उल्लास, उत्साह और आनंदमय समय अर्थात् युवावस्था अभी-अभी ही आई है। अत: अभी उसका बहुत जीवन बाकी है।
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में निराला अपने जीवन में और जन-जीवन में क्या-क्या परिवर्तन लाना चाहते हैं?
उत्तर:
कवि के जीवन में वसंत ऋतु जैसी युवावस्था अभी-अभी आई है। वसंत के आगमन पर जैसे प्रकृति में हरियाली छा जाती है और डालों पर कलियाँ दिखाई देने लगती हैं, उसी प्रकार कवि के जीवन में प्रसन्नता की हरियाली छा गई है। उसकी अनेक मनोकामनाएँ कलियों की तरह खिलने की प्रतीक्षा कर रही हैं। कवि अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के साथ जन-जीवन में भी सवेरा लाना चाहता है ताकि औरों की कामनाएँ रूपी कलियाँ भी खिलकंर फूल बन जाएँ। कवि ने निश्चय किया है कि वह जन-जन को सक्रियता और जागरण का संदेश देगा। अपने जीवन में जागे उत्साह और आनन्द से, औरों के जीवन को भी आनंदमय बनाएगा।
है जीवन ही जीक्न अभी’ कवि निराला ने इस विश्वास का आधार क्या बताया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में निराला जी ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास और जीवंत उत्साह का परिचय कराया है। वह मृत्यु के भय को अपने मन में नहीं आने देना चाहते। इसी मनोभाव को कविता के अन्तिम चरण में उन्होंने तार्किक रूप से पुष्ट किया है। वह कहते हैं कि अभी तो उनके जीवन को प्रथम चरण ही आरम्भ हुआ है। अभी मृत्यु का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अभी तो उनके सामने जीवन ही जीवन पड़ा हुआ है। पूरी युवावस्था आगे है। अतः अभी जीवन के अंत के बारे में सोचने की कोई आवश्यकता नहीं।
नर जीवन के स्वार्थ सकल, बलि हों तेरे चरणों पर इस काव्य पंक्ति में निहित कवि निराला के मनोभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा कवि ने मातृभूमि के प्रति अपने भक्तिभाव और सर्वस्व समर्पण का भाव व्यक्त किया है। मनुष्य अपने जीवन को सब प्रकार से सुखी बनाना चाहता है। इसके लिए वह अनेक स्वार्थों को सफल बनाने की इच्छा किया करता है। धन, कीर्ति, पद, प्रभाव आदि प्राप्त करना मनुष्य के स्वाभाविक स्वार्थ हुआ करते हैं। कवि इन सभी स्वार्थों को मातृभूमि के हित में त्यागने को तत्पर है। इतना ही नहीं वह अपने परिश्रम से अर्जित समस्त फलों को भी माँ के चरणों में अर्पित कर देने की भावना भी व्यक्त कर रहा है।
‘मुझे तू कर दृढ़तर’ कवि मातृभूमि से दृढ़ता का वरदान किसलिए चाहता है? ‘मातृ-वन्दना’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कंवि चाहता है कि वह निर्भीकता से मृत्यु के पथ अर्थात् जीवन में आगे बढ़ता जाय। जीव मात्र को अपना ग्रास बनाने वाला काल या मृत्यु चाहे उस पर कितने भी विघ्न, बाधा और कष्टरूपी तीखे बाण चलाए। वह सभी का सामना करते हुए मातृभूमि की सेवा करता रहे। इसीलिए वह मातृभूमि से दृढ़ता का वरदान चाहता है। उसका मन बाधाओं और घोर कष्टों में भी अडिग बना रहे, यही कामना इस पंक्ति में व्यक्त हुई है।
कवि अपने हृदय में माँ भारती की कैसी मूर्ति जगाना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि भारत माता की आँसुओं से धुली निर्मल मूर्ति अपने हृदय में जगाना चाहता है। इसका कारण यह है कि जब मनुष्य अपने प्रिय या श्रद्धेय व्यक्ति को कष्ट में देखता है तो उसके हृदय में उसकी सेवा और सहायता का भाव उमड़ उठता है। भारत माता परतन्त्रता से या अभावों और कष्टों से पीड़ित हैं। अतः उनकी आँखों से बहते आँसू देखकर कवि बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जाएगा। माँ की आँखों से आँसू उसे अपना जीवन और श्रमजनित सारा फल माँ के चरणों में न्योछावर कर देने की प्रेरणा और बल प्रदान करेंगे।
भारत माता को मुक्त करने के लिए कवि की तीव्र अभिलाषा किन शब्दों में व्यक्त हुई है? लिखिए।
उत्तर:
कवि कहता है कि भले ही उसका शरीर बाधाओं से ग्रस्त हो जाय किन्तु उसकी माँ पर से ध्यान नहीं हटेगा। जब माँ उसको अपने हृदय-कमल पर आँसू भरी एकटक आँखों से देखेगी तो वह अपना परिश्रम के पसीने से भीगा शरीर उसके कष्ट दूर करने के लिए समर्पित कर देगा। उसे परतन्त्रता और अभावों से मुक्त करेगा। अपने सारे श्रेष्ठ कर्मों से एकत्र हुए फल को वह माँ के चरणों में समर्पित कर देगा।
पाठ परिचय
पाठ में कवि निराला की दो रचनाएँ संकलित हैं-‘अभी न होगा मेरा अंत’ तथा ‘मातृ-वन्दना’। ‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में कवि ने आत्मविश्वास का परिचय देते हुए कहा है कि उनके कवि जीवन का अभी अंत होने वाला नहीं। यद्यपि काल में उनके प्रियजनों को छीनकर उन्हें बार-बार आघात पहुँचाया है, किन्तु उनकी जीवंतता को वह नहीं छीन पाया है। अभी तो उनके जीवन में वसंत का आगमन हुआ है। वह अपनी रचनाओं से सोते हुओं को जगाएँगे। निराश जीवनों में आशा और उत्साह भरेंगे। उनकी रचनाओं में निरन्तर प्रौढ़ता और प्रेरणा आती जाएगी। उनके पास समय की कोई कमी नहीं है।
दूसरी रचना ‘मातृ-वंदना’ में कवि ने भारत माता की वंदना की है। वह अपने जीवन की सारी सफलताएँ मातृभूमि के चरणों में अर्पित करने को प्रस्तुत है। वह समय के सारे प्रहारों को सहते हुए देशप्रेम के पथ पर बढ़ता रहेगा। चाहे कितनी भी बाधाएँ क्यों न आएँ वह मातृभूमि को मुक्त करने के लिए अपना सारा श्रम संचित फल अर्पित कर देगा।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ अभी न होगा मेरा अंत
(1)
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है।
मेरे जीवन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अन्त।
हरे-हरे ये पति।
डालियाँ कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेसँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
शब्दार्थ-मृदुल = कोमल। वसंत = युवावस्था, उत्साहमय समय। पात = पत्ते। गात = शरीर। कर = हाथ। निद्रित = सोई हुई। प्रत्यूष = प्रात:काले। मनोहर = मन को वश में करने वाला, आनन्ददायक।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की रचना ‘अभी न होगा मेरा अन्त’ से लिया गया है। यहाँ कवि पूर्ण रूप से आश्वस्त है कि अभी उसकी काव्य-रचना का उत्साह भरा प्रथम चरण प्रारम्भ हुआ है। अभी अंत बहुत दूर है।
व्याख्या-कवि घोषित कर रहा है कि अभी उसका साहित्य-सृजन थमने वाला नहीं है। अभी तो उसके कवि जीवन का आरम्भ ही हुआ है। जैसे वसंत ऋतु आने पर प्रकृति में उल्लास और उत्साह भरा वातावरण दिखाई देने लगता है, उसी प्रकार उसके जीवन का यह युवाकाल है। वह उत्साह से भरा हुआ है। अभी अंत के बारे में तो सोचना भी व्यर्थ है। कवि के मन और जीवन में हरियाली छाई हुई है। वह हरे-हरे कोमल शरीर वाले वृक्षों और पौधों को देखकर हर्षित हो रहा है। अपनी सपने जैसी कोमल कल्पनाओं द्वारा रचित काव्यरूपी हाथ को फेरकर वह आलस्य में पड़े जीवनों को जगाएगा। जैसे वसंत कलियों को खिलाता है, वह भी अपनी कविताओं से एक मनमोहक सवेरा लाएगा और अपने आस-पास स्थित अलसाये जीवनों में उत्साह जगाएगा।
विशेष-
(1) यद्यपि कवि का जीवन प्रियजनों के विछोह से व्यथित है किन्तु वह हार मानने को तैयार नहीं है।
(2) कवि को विश्वास है कि उसकी सोतों को जगाने और हँसाने वाली काव्य रचना की यात्रा दूर तक जाएगी।
(3) भाषा भावों के अनुरूप तथा शैली भावुकता से पूर्ण है।
(4) काव्यांश में ‘डालियाँ, कलियाँ कोमल गात’ में अनुप्रास अलंकार, ‘स्वप्न-मृदुल-कर’ में उपमा तथा ‘निद्रित कलियों में मानवीकरण अलंकार है।
(5) काव्यांश सकारात्मक सोच और जीवन्त बने रहने का संदेश देता है।
2. पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लँगा मैं
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त
अभी न होगा मेरा अंत।
शब्दार्थ-पुष्प = फूल। तन्द्रालस = शिथिलता और आलस्य। लालसा = तीव्र इच्छा। खींच लँगा = दूर कर दूंगा। नव = नया। अमृत = उत्साह, प्रेरणा। सींच दूंगा = भर दूंगा। अनन्त = जिसका अन्त न हो, परमात्मा।।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की कविता ‘अभी न होगा मेरा अन्त’ से लिया गया है। कवि हर शिथिल और आलस में पड़े जीवन में जागरूकता और उत्साह भरने का संकल्प कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि जैसे वसंत हर फूल को खिला देता है और प्रकृति में आनन्दमय वातावरण उत्पन्न कर देता है। उसी प्रकार वह भी शिथिलता और आलस में पड़े जीवनों को प्रसन्नता और जागरूकता प्रदान करेगा। अपने उत्साह भरे नवयौवन का आनन्द उनके हृदयों में भरकर उन सभी को निराशा से मुक्त कर देगा। अपनी रचनाओं से उनका मार्गदर्शन करते हुए अनन्त परमात्मा तक पहुँचने में उनकी सहायता करेगा। अभी कवि के सामने लम्बा जीवन पड़ा हुआ है क्योंकि अभी तो उसके जीवन का प्रथम चरण ही आरम्भ हुआ है।
विशेष-
(1) कवि की जीवन में आस्था और उसका सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
(2) कवि मृत्यु की चिंता से मुक्त है और जीवन का आनन्द लेने और देने में विश्वास करता है।
(3) ‘पुष्प-पुष्प’ में पुनरुक्ति प्रकाश ‘तन्द्रालस लालसा’, ‘सहर्ष सींच’ तथा ‘द्वार दिखा’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘नव जीवन का अमृत’ में रूपक का आभास है।
(4) काव्यांशों में लोकहित का संदेश निहित है।
(3) मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।
शब्दार्थ-प्रथम चरण = जीवन का आरम्भिक समय। स्वर्ण-किरण = सुनहली किरणें, काल का समय। कल्लोल = लहर। बालक-मन = भोला हृदय। अविकसित = अनुभवहीन, अपूर्ण। राग = संगीत, काव्य रचना। दिगन्त = सारा आकाश, क्षितिज।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की रचना ‘अभी न होगा मेरा अंत’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने मृत्यु के प्रहारों से सशंकित अपने मन को आश्वासन दे रहे हैं कि अभी उनका जीवन समाप्त नहीं होने वाला है। उन्हें अभी जीवन में बहुत कुछ सीखना और करना बाकी है।
व्याख्या-कवि इस अंश में स्वयं को ही सम्बोधित करता हुआ प्रतीत हो रहा है। अतीत में अपने अनेक प्रियजनों की अकाल मृत्यु ने उसके बालमन को सशंकित कर दिया है। अतः वह अपने मन को आश्वस्त करना चाहता है कि अभी वह बहुत समय तक जीवित रहेगा, सक्रिय रहेगा। वह कहता है कि जब यह उसके जीवन का प्रथम चरण है तो अभी उसकी मृत्यु कैसे हो सकती है। अभी तो दूर-दूर तक उसे जीवन ही जीवन दिखाई दे रहा है। वह मन को समझाता है कि अभी तो उसकी सारी युवावस्था पड़ी हुई है।
कवि कहता है कि अभी तो उसका मन बालकों जैसा भोला और कल्पनाशील है। वह सुनहली किरणों की लहरों पर बह रह्म है। अर्थात् वह उल्लासपूर्ण जीवन की उज्ज्वल कल्पनाओं में मग्न है। धीरे-धीरे उसकी रचनाओं में प्रौढ़ता आएगी। उसकी काव्य रचना दूर-दूर तक लोगों को आत्म-विश्वास और उत्साह से भरने लगेगी।
विशेष-
(1) कवि के अनुसार उसके जीवन में प्रथम बार वसंत जैसे उल्लास और उत्साहमय समय का आगमन हुआ। है। वह निरन्तर कर्मशील रहकर समाज के निराश और हताश लोगों में आत्मविश्वास का संचार करेगा।
(2) कवि ने अपने उत्साह और आत्मविश्वास से पूर्ण भावनाओं द्वारा निरन्तर सृजन में लगे रहने और मृत्यु के भय से मुक्त रहने का संदेश दिया है।
(3) ‘स्वर्ण-किरण कल्लोल’ में रूपक की झलक है।
मातृ-वदना-
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल।
जीवन के रथ पर चढ़ कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़कर
महाकाल के खरतर शर सह
सहूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
दृग जल से पा बल बलि कर दें
जननि, जन्म श्रम संचित फल।
शब्दार्थ-नर जीवन = मनुष्य-रूप में प्राप्त वर्तमान जीवन। सकल = सारे। बलि = न्योछावर, बलिदान। श्रम = परिश्रम, मेहनत। सिंचित = सींचे हुए, परिश्रम से किए गए। मृत्युपथ = मृत्यु की ओर बढ़ता जीवन। महाकाल = समय, मृत्यु। खरतर = अधिक तीखे, पैने। शर = बाण, आघात। दृढ़तर = और अधिक दृढ़। उर = हृदय, मन। अश्रु = आँसू। धौत = धुली हुई। विमल = स्वच्छ। दृग जल = आँसू। जननि = माता। श्रम संचित = परिश्रम से प्राप्त।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की कविता ‘मातृ-वन्दना’ से लिया गया है। इस अंश में कवि मातृभूमि से अनुरोध कर रहा है कि वह उसके मन को इतना दृढ़ बना दे कि वह अपने स्वार्थ, परिश्रम से अर्जित फल, और अपने जीवन को भी उस पर न्योछावर कर दे।
व्याख्या-कवि कहता है, हे माँ! मुझे ऐसा आत्मबल दो कि मैं अपने मनुष्य जीवन के सारे स्वार्थों और अपने परिश्रम अर्जित सभी वस्तुओं को तुम्हारे चरणों पर न्योछावर कर दें।
मुझे इतना दृढ़ बना दो कि मैं जीवनरूपी रथ पर सवार होकर अर्थात् मृत्यु की चिंता किए बिना जीवन में आगे बढ़ते हुए, समय-समय पर आने वाले बाण की तरह कष्टदायक बाधा-विघ्नों को झेलते हुए तेरी सेवा करता रहूँ। मेरे हृदय में तेरा। आँसूओं से धुला स्वच्छ स्वरूप साकार हो जाए। मैं परतन्त्रता में दुखी और आँसू बहाते तेरे रूप को मन में बसा लूं। तेरे आँसू मुझे इतना बल प्रदान करें कि मैं अपने सारे जीवन में परिश्रम से अर्जित सभी वस्तुएँ और जीवन भी तुझ पर बलिदान कर सकें।
विशेष-
(1) भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधानता है। शब्द-चयन मनोभावों को व्यक्त करने में सफल है।
(2) शैली भावात्मक और समर्पणपरक है।
(3) ‘स्वार्थ सकल’, ‘खरतर शर’, ‘श्रम संचित’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘जीवन के रथ’ में रूपक अलंकार है।
(2)
बाधाएँ आएँ तन पर।
देखें तुझे नयन, मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन ढूँगा
मुक्त करूंगा, तुझे अटल
तेरे चरणों पर देकर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल।
शब्दार्थ-सजल दृगों से = आँसू भरे नेत्रों से। अपलक = बिना पलक झपकाए, एकटक। शतदल = कमल। क्लेद = पसीना, कष्ट। मुक्त = स्वतन्त्र। श्रेय = श्रेष्ठ, प्रशंसनीय।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘निराला’ की रचना ‘मातृ-वन्दना’ से लिया गया है। कवि मातृभूमि की परतन्त्रता से आहत होकर, उसे स्वतन्त्र कराने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देने का संकल्प व्यक्त कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है-हे मातृभूमि ! चाहे मेरे मार्ग में कितनी भी बाधाएँ आएँ पर मेरा ध्यान और मेरी दृष्टि सदा तुझ पर ही लगी रहे। हे माँ ! तू अपने आँसुओं भरे नेत्रों से एकटक देखती रहना। मुझे अपने हृदयरूपी कमल पर बैठाए रखना। मेरी याद मत भूलना। मैं परिश्रम के पसीने से भीगे अपने शरीर को तुझे समर्पित कर दूंगा। बड़े से बड़ा बलिदान देकर भी मैं संदा के लिए तुझे स्वतन्त्र करा दूंगा। मैं अपने सारे श्रेष्ठ आचरणों और परिश्रम से प्राप्त सफलताओं और कीर्ति को तुझ पर न्योछावर कर दूंगा।
विशेष-
(1) कवि के देशप्रेम की निस्वार्थ और उत्कट भावना पंक्ति-पंक्ति में झलक रही है।
(2) कवि अपने परिश्रम से अर्जित पवित्र फल को, मातृभूमि के चरणों में समर्पित करने का दृढ़ संकल्प ले रहा है।
(3) ‘उर के शतदल’ में रूपक तथा ‘ श्रेय श्रम संचित’ में अनुप्रास अलंकार है।
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