भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ Hindi
हिंदी साहित्य के इतिहास में सन 1400-1700 इसापूर्व के समय को भक्ति काल और इस काल में रचित साहित्य को भक्ति काव्य कहा जाता है। क्योंकि इस काल का केंद्रीय विषय और प्रमुख प्रवृत्ति ‘भक्ति’ ही है और उसी को आधार बनाकर साहित्य की रचना हुई है। अतः इसे भक्ति काल कहना ही उचित है। वैसे भक्तिकाल का दायरा काफी विस्तृत है| इस काल में रचित भक्ति साहित्य की विविध प्रवृत्तियां देखने को मिलती हैं। वैसे इस काल की प्रमुख प्रवृत्ति भक्ति के अलावा जो अन्य प्रवृतियां हैं- उनमें वीर काव्य, प्रबंधकाव्य, श्रृंगार, रीति-निरूपण आदि भी है। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर रहे हैं और आपको इसको पीडीएफ़ प्रारूप में भी डाउनलोड कर सकते हैं नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके।
भक्ति काल का केंद्रीय तत्व ईश्वर भक्ति है। भक्ति काल के सभी कवि पहले भक्त हैं और बाद में कवि। उन्होंने कविता करने के लिए रचनाएं नहीं की बल्कि ईश्वर भक्ति के रूप में उनके हृदय के उद्गार की कविता के रूप में हमारे सामने हैं। ईश्वर के प्रति आस्था और सच्चे सरल से आराध्य का गुणगान ही काव्य के रूप में प्रचलित हुआ| महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी भक्त संतो ने ईश्वर की भक्ति भावना से प्रेरित होकर अपनी रचनाएं की है, परंतु उनकी भक्ति की प्रकृति में अंतर है। इनमें से कई अपने ईश्वर को निर्गुण रूप में देखते हैं तो कई सगुण रूप में। लेकिन भक्ति ही दोनों धाराओं का सर्वसमावेशी तत्व है, भक्ति इस काल की मूल प्रवृत्ति और केंद्रीय चेतना भी है।
भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ – भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताएँ
- गुरु महिमा
- भक्ति की प्रधानता
- बहुजन हिताय
- लोकभाषाओं की प्रधानता
- समन्वयात्मकता
- वीर काव्यों की रचना
- प्रबन्धात्मक चरित काव्य
- नीतिकाव्य
आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ PDF में डाउनलोड कर सकते हैं।
helpful