अरदास (Ardas) - Summary
अरदास (Ardas), सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह सिख समुदाय में प्रार्थना का एक विशेष रूप है और इसे आमतौर पर गुरुद्वारों में पठित किया जाता है। अरदास को सिखों की आवश्यकताओं, आशीर्वादों, और समाज के उत्थान के लिए प्रार्थना का माध्यम माना जाता है। यह एक समुदाय की एकता और धार्मिक भावना का प्रतीक भी है। इसके पास कई अन्य चरण होते हैं, जिनमें सिख समुदाय के इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाओं का स्मरण किया जाता है।
(अरदास) Ardas Lyrics in Hindi Download
तू ठाकुरु तुम पह अरदासि ॥ जीउ पिंडु सभु तेरी रासि ॥
तुम मात पिता हम बारिक तेरे ॥ तुमरी क्रिया मह सूख घनेरे ॥
कोइ न जाने तुमरा अंतु ॥ ऊंचे ते ऊचा भगवंत ॥
सगत समग्री तुमरे सूत्रि धारी ॥ तुम ते होइ सु आग्याकारी ॥
तुमरी गति मिति तुम ही जानी ॥ नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥४॥
१६ स्त्री वाहगुरू जी की फतह ॥
श्री भगउती जी सहाय ॥
वार स्त्री भगउती जी की ॥
पातिसाही १० ॥
प्रिथम भगौती सिमरि के गुर नानक लई ध्याइ ॥
फिर अंगद गुर ते अमरदासु रामदास होईं सहाय॥
अरजन हरगोबिन्द नो सिमरी स्त्री हरिराय॥
स्त्री हरिक्रिसन ध्याईऐ जिसु डिठे सभि दुखि जाय॥
तेग बहादर सिमरिऐ घरि नउ निधि आवै धाय ॥
सभ थाई होइ सहाय॥१॥
दसवें पातिशाह स्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहब जी सभ थाई होइ सहाय ॥
दसां पातिशाहियां दी जोति स्त्री गुरू ग्रंथ साहब जी दे पाठ दीदार दा ध्यान धर के बोलो जी वाहगुरू॥
पंजां प्यार्या, चौहां साहबज़ाद्यां, चाल्हियां मुकत्यां, हठियां, जपियां, तपियां, जिन्हां नाम जप्या, वंड छक्या, देग चलाई, तेग वाही, देख के अणडिट्ट कीता, तिन्हां प्याय, सच्याय दी कमायी दा ध्यान धर के खालसा जी बोलो जी वाहगुरू ॥
जिन्हां सिंघां सिंघणियां ने धरम हेत सीस दिते, बन्द बन्द कटाए, खोपरियां तुहाई, चरखड़ियां ते चड्हे, आर्यां नाल चिराए गए, गुरदुआर्यां दी सेवा लई कुरबानियां कीतियां, धरम नहीं हार्या, सिक्खी केसां सुआसां नाल निबाही, तिन्हां दी कमायी दा ध्यान धर के बोलो जी वाहगुरू ॥
पंजां तखतां, सरबत्त गुरदुआर्यां दा ध्यान धर के बोलो जी वाहगुरू ॥
प्रिथमे सरबत खालसा जी की अरदास है जी, सरबत खालसा जी को वाहगुरू, वाहगुरू, वाहगुरू चित्त आवे, चित्त आवन का सदका, सरब सुख होवे। जहां जहां खालसा जी साहब, तहां तहां रच्छ्या यइित, देग तेग फतह, बिरद की पेज, पंथ की जीत, स्त्री साहब जी सहाय, खालसे जी के बोल बाले, बोलो जी वाहगुरू ॥
सिक्खां नूं सिक्खी दान, केस दान, रहत दान, बिबेक दान, विसाह दान, भरोसा दान, दानां सिर दान नामदान, स्त्री अमृतसर जी दे दरशन इशनान, चौंकियां, झंडे, बुंगे, जुग जुग अटल्ल, धरम का जैकार, बोलो जी वाहगुरू ॥
सिक्खां दा मन नीवां, मत उच्ची, मत पत दा राखा आणि वाहगुरू॥
हे अकाल पुरख ! आपने पंथ दे सदा सहायी दातार जीयो ! समूह गुरदुआर्या दे खुल्हे दरशन दीदार ते सेवा संभाल दा दान खालसा जी नूं बख़शो ॥
हे निमाण्यां दे मान, निताण्यां दे तान, न्योट्या दी ओट, सच्चे पिता वाहगुरू! आप जी दे हजूर.. दी अरदास है जी, अक्खर वाधा घाटा भुल चुक्क माफ़ करनी, सरबत दे कारज रास करने ॥ सेयी प्यारे मेल, जिन्हां मिल्यां तेरा नाम चित्त आवे ॥
नानक नाम चड़हदी कला ॥
तेरे भाने सरबत्त दा भला ॥
वाहगुरु जी का खालसा ॥
वाहगुरू जी की फतह ॥
दोहरा ॥
आग्या भई अकाल की, तबी चलायो पंथ ॥
सभ सिक्खनि को हुकम है, गुरू मान्यो ग्रंथ ॥
गुरू गंरथ जी मान्यो, प्रगट गुरां की देह ॥
जो प्रभ को मिलबो चहै, खोज शब्द में तेह ॥
राज करेगा खातसा, आकी रहे न कोई ॥
ख्वार होइ सभि मिलेंगे, बचे शरन जो होइ ॥
वाहगुरू नाम जहाज़ है,
चड्हे सु उतरे पार ॥
जो सरधा कर सेंवदे, गुर पारि
उतारनहार ॥
बोले सो निहाल ॥ सति श्री अकाल ॥
वाहिगुरू जी का खालसा ॥ वाहिगुरू जी की फ़तह ॥
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