Trayodashi Vrat Katha Hindi PDF

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Trayodashi Vrat Katha - Summary

त्रयोदशी तिथि के दिन शिव शंकर की आराधना का विशेष महत्व है। धार्मिक शास्त्रों में उल्लेख मिलता है जिस तरह एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। अतः इस दिन शिव जी की विधि वत पूजा आदि की जाती है। इसके अलावा इस दिन त्रयोदशी व्रत यानि प्रदोष व्रत से संबंधित कथा का वाचन भी जरूर करना चाहिए।

ऐसी मान्यता है कि चूंकि ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। कहा जाता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन ये व्रत करता है, उसके दिन फिर जाते हैं तथा भगवान शंकर की कृपा प्राप्त होती है।

Trayodashi Vrat Katha in Hindi (त्रयोदशी व्रत कथा)

पौराणिक व धार्मिक कथाओं के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी, जिसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसके उपरांत उसका कोई आश्रयदाता नहीं बचा था। जिस कारण वह प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती, इसी भिक्षाटन से वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती।

एक बार की बात है कि वह ब्राह्मणी भीख मांगकर घर लौट रही थी तब उसे रास्ते में एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। जिसे वह ब्राह्मणी दयावश अपने घर ले आई। ब्राह्माणी को इस बारे में जानकारी नहीं थी कि वह लड़का असल में विदर्भ का राजकुमार था। जिसके पिता को बंदी बनाकर शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था जिस कारण राजकुमार मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई, उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। जिसके कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए और उन्होंने वैसा ही किया।

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