विश्वकर्मा प्रकाश - Summary
विश्वकर्मा प्रकाश PDF एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जो वास्तुशास्त्र के ज्ञान को सरल तरीके से समझाने में मदद करता है। इस ग्रन्थ में अन्त में दी गयी परम्परा के अनुसार, वास्तुशास्त्र का उपदेश गर्ग ने पराशर को, पराशर ने बृहद्रथ को, और बृहद्रथ ने विश्वकर्मा को दिया था। इसमें चौदह अध्यायों में वास्तुशास्त्र का सर्वांगीण वर्णन है। ग्रन्थ के मूल पाठ को सम्पादित और यथासम्भव शुद्ध करके उसकी सरल हिन्दी व्याख्या की गई है। आवश्यक स्थलों पर रेखाचित्र, चक्र और सारिणियाँ देकर विषय को और अधिक सरल और बोधगम्य बनाने की कोशिश की गई है। इस प्रकार, यह संस्करण ज्योतिष और वास्तुशास्त्र के विद्यार्थियों, स्थपतियों और वास्तुविदों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी अपेक्षा है। 😊
विश्वकर्मा प्रकाश की महत्वपूर्ण विशेषताएं
- ग्रंथ के मूल संस्कृत पाठ का मिलान वाराणसी से उपलब्ध हुई पांडुलिपि की फोटोकॉपी से किया गया है।
- ग्रंथ में विभिन्न संदर्भों में श्लोकों की व्याख्या ऋषि विश्वकर्मा शास्त्र में प्रतिपादित सिद्धांतों के आलोक में की गई है।
- विभिन्न श्लोकों में विश्वकर्मा द्वारा वास्तु अनुष्ठानों और देवों के लिए बलियों के लिए वेदों के मंत्रों को श्लोकों की व्याख्या में पूरे पते सहित प्रस्तुत किया गया है।
- आयादी गणनाओं को व्यावहारिक उदाहरण के साथ, आयादि सूत्रों में प्रयुक्त संख्याओं के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न शब्दों की तार्किक व्याख्या के साथ परिशिष्ट 2 में स्पष्ट किया गया है।
- ऋषि विश्वकर्मा द्वारा दी गई परिभाषा के आलोक में माप की इकाइयों ‘हस्त’ और ‘अंगुल’ की तार्किक व्याख्या परिशिष्ट 1 में की गई है।
- विश्वकर्माप्रकाश को शास्त्र में प्रतिपादित सिद्धान्तों के अनुसार ही समझा गया है।
- ज्योतिष, अन्य संदर्भों और सिद्धांतों के संबंध में, विभिन्न श्लोकों के व्याख्या में 150 से अधिक तालिका/सूचियाँ/स्पष्टीकरण, और 10 परिशिष्ट दिए गए हैं। जिससे इस ग्रंथ के पाठक को संस्कृत पाठ में प्रयुक्त शब्दावली के अर्थ जानने के लिए अन्य पुस्तकों को देखने की आवश्यकता नहीं होगी।
- “शिलान्यास” के लिए वास्तु अनुष्ठान पूर्ण विधि सहित और सम्पूर्ण वेद मंत्रों सहित परिशिष्ट 9 में दिया गया है।
- नवीनगृह एवं जीर्णोद्धार के पश्चात गृहप्रवेश के लिए वास्तु अनुष्ठान पूर्ण विधि सहित और सम्पूर्ण वेद मंत्रों सहित परिशिष्ट 10 में दिया गया है।
- स्वस्तिवाचन, शांतिकरण, पुरुषसुक्त, वरुण सुक्त, रुद्र सूक्त का सम्पूर्ण पाठ ग्रंथ के परिशिष्टों में दिया गया है।
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