सावन शिवरात्रि – Sawan Shivratri Vrat Katha Hindi

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Sawan Shivratri Vrat Katha (सावन शिवरात्रि) Hindi

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष कुल 12 शिवरात्रि तिथि पड़ती हैं। यह शिवरात्रि तिथि प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर मनाई जाती हैं। इन शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि तथा श्रवण शिवरात्रि अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इस वर्ष सावन शिवरात्रि 16 जुलाई के दिन पड़ने वाली है।

मान्यताओं के अनुसार, सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा करना मंगलमय है। सावन शिवरात्रि पर व्रत रखने वाले भक्तों को कथा श्रवण जरूर करना चाहिए। कहा जाता है कि कथा का पाठ करने से सावन शिवरात्रि व्रत का पूर्ण फल मिलता है।

सावन शिवरात्रि व्रत कथा

बहुत समय पहले वाराणसी के जंगल में गुरुद्रुह नाम का भील रहता था। वह शिकार के जरिए अपने परिवार का पेट भरता था। शिवरात्रि के दिन उसे कोई शिकार नहीं मिला जिसकी वजह से उसे चिंता होने लगी। जंगल में भटकते-भटकते वह झील के पास आ गया। झील के पास बिल्ववृक्ष था, वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया और शिकार का इंतजार करने लगा। तब एक हिरनी वहां आई, उसे मारने के लिए वह अपना धनुष और तीर चढ़ाने लगा तभी बिल्ववृक्ष का पत्ता और जल पेड़ के नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर गया। ऐसे में शिवरात्रि के प्रथम प्रहर पर अनजाने में उसने पूजा कर ली।

हिरनी ने देख कर उससे पूछा की वह क्या करना चाहता है। तब गुरुद्रुह ने कहा कि वह उसे मारना चाहता है। फिर हिरनी ने कहा कि वह अपने बच्चों को अपनी बहन के पास छोड़ कर आ जाएगी। हिरनी की बात मानकर उसने हिरनी को छोड़ दिया। इसके बाद हिरनी की बहन वहां आई। फिर से गुरुद्रुह ने अपना धनुष और तीर चढ़ाया। तब बिल्वपत्र और जल शिवलिंग पर जा गिरे। ऐसे दूसरे प्रहर की पूजा हो गई। हिरनी की बहन ने कहा की वह अपने बच्चों को सुरक्षित जगह पर रख कर वापस आएगी। तब गुरुद्रुह ने उसे भी जाने दिया।

कुछ देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी की तलाश में आया। इस बार भी वैसा ही हुआ और तीसरे प्रहर में शिवलिंग की पूजा हो गई। हिरन ने उससे वापस आने का वादा किया जिसके बाद गुरुद्रुह ने उसे भी जाने दिया। अपना वादा निभाने के लिए दोनों हिरनी और हिरन गुरुद्रुह के पास आ गए। जब गुरुद्रुह ने सबको देखा तो उसे खुशी हुई। उसने अपना धनुष-बाण निकाला तभी बिल्वपत्र और जल शिवलिंग पर गिर गया। ऐसे चौथे प्रहर की पूजा भी समाप्त हुई।

अनजाने में  गुरुद्रुह ने अपना शिवरात्रि का व्रत पूर्ण कर लिया था। व्रत के प्रभाव से उसे पापों से मुक्ति मिली। जब सुबह होने लगी तब उसने दोनों हिरनी और हिरन को छोड़ दिया। उससे प्रसन्न हो कर शिवजी ने उसे आशीर्वाद दिया। वरदान देते हुए शिवजी ने उसे कहा कि त्रेतायुग में वह श्री राम से मिलेगा। इसके साथ उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होगी।

सावन शिवरात्रि व्रत विधि:

  • इस दिन सुबह सूर्य उदय से पहले उठकर स्नान कर लें।
  • फिर घर पर या पास के किसी शिव मंदिर में जाकर शिव परिवार की पूजा करें।
  • शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, घी, दूध, चीनी, शहद, दही आदि से करें।
  • शिवलिंग पर बेलपत्र, इत्र, गंध, भांग, बेर और धतूरा चढ़ाएं। माता पार्वती को श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।
  • भगवान शिव की धुप, दीप से पूजा अर्चना करें और उन्हें फल और फूल अर्पित करें।
  • शिवरात्रि के दिन शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का पाठ करना चाहिए।
  • इस व्रत में शाम के समय फलहार कर सकते हैं। व्रत रखने वालों को इस दिन अन्न ग्रहण नही करना चाहिए।
  • अगले दिन भगवान शिव की विधि विधान पूजा करके और दान आदि करके उपवास खोलें।

पूजन सामग्री:

पुष्प, पंच फल, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, पंच रस, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, धतूरा, भांग, बेर, गाय का कच्चा दूध, धूप, दीप, रुई, ईख का रस, कपूर, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, मलयागिरी, चंदन आदि।

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