निबन्ध माला (Nibandh Mala) - Summary
एक निबंध माला (Nibandh Mala) एक विशेष संग्रह है जिसमें विभिन्न विषयों पर लिखे गए निबंध शामिल होते हैं। यह संग्रह खासकर विद्यालय और महाविद्यालय के छात्रों के लिए तैयार किया गया है, ताकि वे विभिन्न प्रकार के निबंधों को आसानी से समझ सकें और उन्हें अच्छे से लिख सकें। आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके (निबंध माला) PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
निबन्ध माला – Nibandh Mala
विषय सूची:
- भूमिका
- लेखक परिचय
- भाव या मनोविकार – रामचन्द्र शुक्ण
- श्रद्धा-भक्ति – रामचन्द्र शुक्ल
- कविता क्या है – रामचन्द्र शुक्ल
- काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था – रामचन्द्र शुक्ल
- साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद – रामचन्द्र शुक्ल
- देवदारू – हजारीप्रसाद द्विवेदी
- भारतीय संस्कृति की देन – हजारीप्रसाद द्विवेदी
- साधारणीकरण – डा. नगेन्द्र
- निपाद बांसुरी – कुबेरनाथ राय
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एक बार प्लेटो ने कहा था ‘I am no writer of history’, लेकिन डायोजेनीस (Diogenes) ने उत्तर दिया था: “Every great writer is a writer of history, let him treat on almost what subject he may.” वह अपने साथ हजारों सालों तक अपने समय का एक अंश लेकर चलता है। इसी ‘अंश’ को खोजने का प्रयास प्राचीन और आधुनिक साहित्य के अध्ययन में बना रहता है। साहित्य के पृष्ठों में खुद को ढूंढने के लिए आज का मनुष्य जितना सचेत है, उतना पहले कभी नहीं था। मानव के सुख-दुख की परिधि में वह साहित्यिक क्रम तो शाश्वत है, पर उसकी गति अक्सर हमारी सामान्य दृष्टि से ओझल रहती है।
साहित्य का निर्माता कोई महापुरुष हमारे बीच भले ही उपस्थित हो, लेकिन वर्तमान के छोटे से काल में जो साहित्य उत्पन्न होता है, वह हमें हमेशा सामने नहीं दिखता। फिर भी हमारा दृष्टिकोण साहित्य की गतिविधि के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा रहता है। अतीत और भविष्य के साथ संबंध स्थापित करके ही साहित्य अपने अस्तित्व के सत्य का उद्घाटन करता है। विश्व मानव बेहद उत्सुकता से साहित्य के झरोखे से अतीत की गुफ़ा में प्रवाहित अपनी जीवनधारा को देखता है और विभिन्न प्रकार की साधनाओं, भूलों और संशोधनों द्वारा अपने भविष्य को सिंचित होते हुए देखने की आकांक्षा रखता है। अतीत की प्रेरणा और भविष्य की चेतना में ही साहित्य की आत्मा है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य की कड़ियों की अनगिनत श्रृंखला में भावों की एक निरंतरता होती है, जो मनुष्य की प्रगति के नियमों और सिद्धांतों को एक साथ जोड़े रखती है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा है कि विश्व मानव का जीवित जीवन साहित्य द्वारा आत्म-प्रकाशित होता आया है। साहित्य की गतिविधियों के अध्ययन में कवियों औऱ लेखकों की जीवनी, भाषा, और विभिन्न साहित्यिक रूपों का अध्ययन करना शामिल नहीं है, बल्कि यह संस्कृति के इतिहास से भी जुड़ा है।
हम मथुरा के मंदिरों की तुलना मदुरा के मंदिरों से करें, परंतु यह समझना चाहिए कि ये भव्य मंदिर सचेत मानवी अनुभव की अव्यक्त नदी के प्रतीक हैं। साहित्य केवल शिक्षकों द्वारा पढ़ाई जाने वाली चीज नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन में आनंद और अमृत का प्रतीक है। हम छोटे-बड़े ग्रंथों, पत्र-पत्रिकाओं, जीवनी और युग की प्रवृत्तियों का अध्ययन करके मनुष्य की रचनात्मक शक्ति की व्याख्या करते हैं और उसे व्यापकता प्रदान करते हैं। साहित्य जीवन का अनुकरण करता है, पर उस दृष्टि से नहीं जिस तरह अर्थशास्त्र या इतिहास जीवन का अनुकरण करता है।
इसलिए, एक विशेष युग के साहित्य की गतिविधि का अध्ययन मानव मस्तिष्क की लंबी यात्रा की एक मंजिल का अध्ययन करना है, और मानव सभ्यता के इतिहास में इस प्रकार के अध्ययन अत्यंत मूल्यवान हैं।
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