नाट्य शास्त्र (Natya Shastra) Hindi

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Natya Shastra - नाट्य शास्त्र Hindi

नाट्य शास्त्रम् पुस्तक के मूल लेखक भरत मुनि है। नाट्य शास्त्र प्रदर्शन कलाओं पर एक संस्कृत ग्रंथ है। पाठ का श्रेय ऋषि भरत मुनि को दिया जाता है, और इसका पहला पूर्ण संकलन 200 ईसा पूर्व और 200 सीई के बीच का है, लेकिन अनुमान 500 ईसा पूर्व और 500 सीई के बीच भिन्न होते हैं।

नाट्य शास्त्र पाठ में प्रदर्शन कलाओं का वर्णन करने वाले कुल 6000 काव्य छंदों के साथ 36 अध्याय हैं। ग्रंथ में शामिल विषयों में नाटकीय रचना, एक नाटक की संरचना और इसे होस्ट करने के लिए एक मंच का निर्माण, अभिनय की शैलियों, शरीर की गतिविधियों, मेकअप और वेशभूषा, एक कला निर्देशक की भूमिका और लक्ष्य, संगीत तराजू, संगीत वाद्ययंत्र शामिल हैं। और कला प्रदर्शन के साथ संगीत का एकीकरण।

नाट्यशास्त्र, पूर्ण भरत नाट्यशास्त्र में, जिसे नाट्यशास्त्र भी कहा जाता है, नाटकीय कला पर विस्तृत ग्रंथ और पुस्तिका जो शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच के सभी पहलुओं से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि इसे पौराणिक ब्राह्मण ऋषि और पुजारी भरत (पहली शताब्दी ईसा पूर्व- तीसरी शताब्दी सीई) द्वारा लिखा गया था। इसके कई अध्यायों में नृत्य, संगीत, काव्य और सामान्य सौंदर्यशास्त्र सहित नाटक की शास्त्रीय भारतीय अवधारणा में सन्निहित सभी विविध कलाओं का विस्तृत उपचार शामिल है। इसका प्राथमिक महत्व धार्मिक ज्ञान के वाहन के रूप में भारतीय नाटक के औचित्य में निहित है।

Natya Shastra Summary in Hindi

नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्यशास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता भरत मुनि थे। भरत मुनि का जीवनकाल ४०० ईसापूर्व से १०० ई के मध्य किसी समय माना जाता है।

संगीत, नाटक और अभिनय के सम्पूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता, रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। ३७ अध्यायों में भरतमुनि ने रंगमंच, अभिनेता, अभिनय, नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से सम्बन्धित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है।

भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के विषय में ऐसी दंत कथा है कि त्रेता युग में लोग दु:ख, आपत्ति से पीड़ित हो रहे थे। इन्द्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा ने चारों वर्णों और विशेष रूप से शूद्रों के मनोरंजन और अलौकिक आनंद के लिए ‘नाट्यवेद’ नामक पांचवें वेद का निर्माण किया। इस वेद का निर्माण ऋग्वेद में से पाठ्य वस्तु, सामवेद से गान, यजुर्वेद में से अभिनय और अथर्ववेद में से रस लेकर किया गया। भरतमुनि को उसका प्रयोग करने का कार्य सौंपा गया। भरतमुनि ने ‘नाट्य शास्त्र’ की रचना की और अपने पुत्रों को पढ़ाया। इस दंत कथा से इतना तो अवश्य फलित होता है कि भरतमुनि संस्कृत नाट्यशास्त्र के आद्य प्रवर्तक हैं।

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नाट्य शास्त्र (Natya Shastra)

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