महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित (Mahishasura Mardini Stotram) PDF

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महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित (Mahishasura Mardini Stotram) - Summary

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी : महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसे देवी माँ के भक्तगण प्राचीन काल से उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ते आ रहे हैं। यह एक वैदिक स्तोत्र है जो सुनने में बहुत मधुर लगता है। यदि आप कई गंभीर रोगों से लंबे समय से पीड़ित हैं, तो इस स्तोत्र का पाठ आपको जल्दी ही उन समस्याओं से राहत दे सकता है।

भक्तों में यह मान्यता प्रचलित है कि मां भगवती के इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आ रही कठिनाइयों का समाधान होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति जीवन में शक्ति और साहस की कामना करता है, उसे महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के माध्यम से माँ भगवती की आराधना करनी चाहिए। इनकी आराधना करने से बड़े से बड़े संकट जल्द ही दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति दिन में एक बार भी मां महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन में कभी कोई परेशानी नहीं आती है।

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी (Mahishasura Mardini Stotram in Hindi)

अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१।।

अर्थ-हे हिमालय के राजा की कन्या, जो संसार को आनंद देती हैं, जिन्हें नंदी गण नमस्कार करते हैं, जो गिरिवर विन्ध्याचल की शिखाओं पर निवास करती हैं, भगवान विष्णु को प्रसन्न करती हैं, इन्द्रदेव द्वारा पूजी जाती हैं, भगवान नीलकंठ की पत्नी हैं और जो जगत को समृद्धि प्रदान करती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली भगवती! तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते ।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।२।।

अर्थ-देवों को वरदान देने वाली, दुर्धारण और दुर्मुख असुरों को पराजित करने वाली और सदा खुश रहने वाली, तीनों लोकों का पोषण करने वाली, भगवान शिव को संतुष्ट करने वाली, पापों को नष्ट करने वाली और शोर करने वाली, दानवों के प्रति क्रोधित होने वाली, अहंकारियों के घमंड को मिटाने वाली, समुद्र की पुत्री, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते ।
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।३।।

अर्थ-हे जगत की माता, मेरी माँ, जो कदम्ब के वन में निवास करती हैं और सदा हंसती हैं, हिमालय के पराक्रमी शिखर पर स्थित हैं, मधु की तरह मीठी, मधु-कैटभ का मद समाप्त करने वाली, महिष का संहार करने वाली, युद्ध में सदा तत्पर रहने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते ।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते ।।
निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।४।।

अर्थ-जो शत्रुओं के हाथियों की सूंड काटती हैं और उन्हें सौ टुकड़ों में फाड़ देती हैं, जिनका सिंह शत्रुओं के सिर को अलग करता है, अपनी भुजाओं से मारे गए शत्रुओं के सिरों को काटने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते ।
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रथमाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।५।।

अर्थ-जो युद्ध में मदोन्मत्त शत्रुओं का वध करती हैं, अजर और अविनाशी शक्तियों को धारण करने वाली, प्रमथनाथ (शिव) की चतुराई को जानकर उन्हें अपना दूत बनाने वाली, जिद्दी और बुरे विचार वाले दानव के प्रस्ताव को खत्म करने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे ।
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।६।।

अर्थ-जो शरणागत शत्रुओं से युद्ध करके उन्हें अभय दान देती हैं, तीनों लोकों को चोट पहुँचाने वाले दैत्यों पर प्रहार करने में सक्षम त्रिशूल धारण करती हैं, देवी दुन्दुभी की ध्वनि से चारों दिशाओं में प्रसारित होती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।७।।

अर्थ-जो मात्र अपनी हूंकार से धूम्रलोचन राक्षस को धूम्र की तरह भस्म कर देती हैं, युद्ध में रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न अन्य रक्तबीजों का रक्त पीने वाली, शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों को संतुष्ट करने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके ।
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।८।।

अर्थ-जो युद्ध भूमि में अपने हाथों के कंगन के साथ धनुष लेकर युद्ध करती हैं, जिनके सोने के तीर शत्रुओं को विदीर्ण करते हैं, और जिनकी आवाजें युद्ध में गूँजती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते ।
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।९।।

अर्थ-जो देवों के गीतों में मग्न रहती हैं, कु-कुथ अड्डी की मधुर ध्वनि में लिप्त रहती हैं, मृदंग के धुन में गाती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते ।
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१०।।

अर्थ-जो स्तुति करने वालों द्वारा नमस्कार की जाती हैं, जो अपने नूपुर के झंकार से भूतों को मोहित करती हैं, नटी-नटों के नायक की नृत्य में लिप्त रहती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते ।
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।११।।

अर्थ-जो अपनी सुंदरता से चंद्रमा को फीका कर देती हैं, जिनकी आँखें भंवरों के समान हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते ।
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१२।।

अर्थ-जो महायोद्धाओं के साथ युद्ध करती हैं, मृदंग की धुन पर नृत्य करती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते ।
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१३।।

अर्थ-जो अपनी सुंदरता से चंद्रमा की रोशनी को मौन कर देती हैं और जिनके अनुराग से पर्वतों में मोह उत्पन्न होता है, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते ।
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१४।।

अर्थ-जिनका मस्तक कमल के पंखुड़ियों के समान स्वच्छ और सुंदर है, जिनके बालों में भंवरे और कुमुदनी के फूल सुशोभित हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते।
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१५।।

अर्थ-जो मुरली की ध्वनि से कोयल को भी लज्जित कर देती हैं, जो पुलिंद जनजाति की स्त्रियों के साथ खेलती हैं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे।
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१६।।

अर्थ-जिनकी चमक से चंद्रमा की रोशनी धीमी पड़ जाती है, जिनके वस्त्र सुशोभित हैं, देवताओं और असुरों के सामने जिनका सम्मान बढ़ता है, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते।
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१७।।

अर्थ-जो हजारों दैत्यों के हजारों हाथों से अर्जित विजय को स्वीकार करती हैं और उनकी पूजा होती है, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१८।।

अर्थ-जो भी तुम्हारे दयालु पदकमल की सेवा करता है, हे कमला! (लक्ष्मी) वह व्यक्ति धन्य कैसे नहीं हो सकता? हे शिवे, तुम्हारे पदकमल ही सर्वोच्च है, उन्हें ध्यान करने पर भी सर्वोच्च पद कैसे नहीं प्राप्त होगा? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरअनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम् ।
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम् ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।१९।।

अर्थ-सोने के समान चमकते जल से जो तुम्हें रंग देता है, वह शची (इंद्राणी) के साथ सुख क्यों नहीं भोगेगा? हे वाणी, तुममें मांगल्य का निवास है, मैं तुम्हारे चरणों में शरण लूं, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते।
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।२०।।

अर्थ-तुम्हारा निर्मल चंद्र समान मुख आलंबन है, जो सभी अशुद्धियों को हटाता है। नहीं तो क्यों मेरा मन इंद्रपुरी की सुंदरियों से विमुख हो गया है? तुम्हारी कृपा के बिना शिव नाम का धन कैसे प्राप्त होगा? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे।
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२१।।

अर्थ-हे दीनों पर दया करने वाली उमा! मुझ पर भी दया करो, हे जगत जननी! जैसे तुम दया की वर्षा करती हो, वैसे ही इस समय जैसा उचित समझो, ऐसा करो, मेरे पाप और पापों को दूर करो, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।। इति श्री महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम सम्पूर्णम् ।।

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