Kabir Granthawali - Summary
कबीर Granthawali
कबीर Granthawali एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा के काव्यधारा के प्रवर्तक कबीर के विचारों और भावनाओं को समाहित करता है। कबीर की रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन पर बड़ा असर डाला। वे हिन्दू धर्म और इस्लाम दोनों को नहीं मानते थे, जिससे वे धर्म निरपेक्षता के प्रतीक बने। कबीर ने समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड और अंधविश्वास की आलोचना की, और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।
Kabir Granthawali (कबीर ग्रंथावली) की विशेषताएँ
कबीर को अपने जीवनकाल में हिन्दू और मुसलमान दोनों के द्वारा आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उनकी रचनाओं का अध्ययन बड़े ध्यान से किया गया है। सभी ‘निश्चेष्ट’ और ‘सचेष्ट’ पाठ विकृतियों का विश्लेषण कर, कबीर वाणी के उन्हीं अंशों को संकलित किया गया है, जो दो या अधिक प्रतियों में समान रूप से मिलते हैं।
Kabir Granthawali का महत्व
कबीर ने पंडितों, मौलवियों और योगियों से टकराकर जन साधारण के स्वानुभूतिजन्य विचारों की मान्यता स्थापित की। कबीर की वाणी साधकों और अनुयायियों के बीच विभिन्न रूपों में प्रकट हुई है, इसलिए कबीर की वाणी के प्रामाणिक पाठ को सहेजना कठिन है। कबीर पंथ में बीजक की मान्यता है, जबकि विद्वानों ने ग्रंथावलियों को भी महत्व दिया है।
कबीर निर्गुण संत काव्यधारा के महत्वपूर्ण साधक हैं, जिन्होंने अपने समय की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का साहसपूर्वक सामना किया। उन्होंने सांस्कृतिक प्रवाह में मौजूद प्रदूषित तत्वों को हटा कर इसे न केवल मध्यकाल के लिए, बल्कि आज के समाज के लिए भी उपयोगी बनाया। भारतीय धार्मिक साधना में ऐसा निडर और अकुंठित व्यक्तित्व विरले होते हैं।
इस प्रकार, तीनों परंपराओं में से किसी को भी त्यागना उचित नहीं है। कबीर की रचनाओं का समग्र रूप इन तीनों का समाहार करके ही संभव है। प्रस्तुत ग्रंथावली का संपादन इसी दृष्टि से किया गया है। इसमें पाठकीय सोच को बेवजह सीमित करने का प्रयास नहीं किया गया है। कबीर वाणी के प्रामाणिक एवं समग्र पाठ को न केवल प्रस्तुत किया गया है, बल्कि इसमें निहित विचारों और अनुभूतियों को भी समझने का प्रयास किया गया है।
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