इंद्रमणि बडोनी पर निबंध Hindi

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इंद्रमणि बडोनी पर निबंध Hindi

इंद्रमणि बड़ोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे।

इंद्रमणि बडोनी जब नेता के तौर पर उभर गए थे। वर्ष 1992 में मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर के प्रसिद्ध उत्तरायणी कौतिक से उन्होंने उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि आज तक गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं बन सका। पहाड़ के लोग पहाड़ में ही राजधानी बनाने के लिए संषर्घरत हैं।

इंद्रमणि बडोनी पर निबंध

देवभूमि उत्तराखंड को रत्नगर्भा कहा जाता है। यहां पर सदियों से ऐसे सन्त और महापुरुषों ने जन्म लिया जिन्हें हर समाज और देश की चिन्ता रही है। वे मनसा वचना, कर्मणा समाज के लिए समर्पित रहे हैं। इसलिए इनकी मृत्यु के बाद भी लोग इन्हें बड़े आदर के साथ याद करते हैं। ऐसी ही एक महान विभूति उत्तराखंड आंदोलन के महानायक श्री इन्द्रमणि बडोनी थे जिन्होंने पृथक राज्य की स्थापना के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

उत्तराखंड के लोकगायक एवं उत्तराखंड के गांधी के नाम से प्रसिद्ध पंडित इन्द्रमणि बडोनी का जन्म टेहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में श्री सुरेशानन्द बडोनी के यहां पर 24 दिसम्बर, 1925 को हुआ था।

मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे बडोनी जी का जीवन अत्यधिक अभावों के मध्य गुजरा, किन्तु वे बचपन से ही प्रकृति प्रेमी थे। बचपन से ही उन्हें झरने, नदियाँ, पशु-पत्ती व ऊंचे पर्वत लुभाते थे। उन्होंने प्रकृति से संगीत सीखा और नृत्य कला सीखी। वे बाद में लोक कला मर्मज्ञ भी बन गये।

बडोनी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव अखोड़ी में व उच्च प्राथमिक रोउधार खास पट्टी टिहरी स्कूल से करके ये टेहरी के प्रताप इंटर कॉलेज से हाईस्कूल व इंटरमिडियेट उत्तीर्ण हुए थे। उन दिनों टिहरी राज्य की ओर से शिक्षा के प्रति ध्यान नहीं दिया। अतः उच्च शिक्षा के लिए लोग नैनीताल या देहरादून जाया करते थे। बडोनी जी ने डी०ए०वी कॉलेज देहरादून से स्नातक परीक्षा पास की थी।

बडोनी जी बचपन से ही विद्रोही एवं अल्हड प्रकृति के थे। वे स्वतंत्रता प्रेमी थे। एक बार वे टिहरी राज्य में अपने मित्रों के साथ आये उन दिनों टिहरी रियासत में प्रवेश कर चवन्नी में देना पड़ता था। में माल गुजार टैक्स वसूलता था। बडोनी जी व उनके मित्रों ने टैक्स देने से मना कर दिया, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, परन्तु मालगुजार ने टैक्स जमा कर उन्हें छुड़वा दिया।

आप स्नातक परीक्षा पास कर मुम्बई आजीविका हेतु आये। परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। प्रायः वे ग्रामीण विकास, राष्ट्रीय उत्थान पर लोगों से चर्चा करते रहते थे। वे पुन 1953 में उत्तराखंड आ गये और अपने गांव अखोड़ी तथा विकास खंड जखोली में स्थानीय संसाधनों की सहायता से विकास कार्य में जुड़ गये।

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