Dasbodh Marathi

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Dasbodh Marathi

दासबोध की रचना समर्थ रामदास ने की थी। इसे उनके शिष्य कल्याण स्वामी ने लिखा था। यह लेखन शिवथार्ची घाल में हुआ, जो रायगढ़ जिले के घने जंगल में स्थित है। दासबोध ग्रंथ को कुल 20 दशकों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक दशक में 10 साम हैं। समर्थ ने एक समय में एक ही विषय को लेकर सभी जातियों, पंथों, पंथों, धर्मों, जातियों, पंथों आदि के पुरुषों और महिलाओं के मानव मन को उपदेश दिया है। इस ग्रंथ का पाठ भी किया जाता है।

महाराष्ट्र सरकार के अधीन राज्य मराठी विकास संस्था ने 7,800 ओवासों की यह पुस्तक ऑडियो प्रारूप में उपलब्ध कराई है। शास्त्रीय गायक संजय अभ्यंकर की आवाज़ में दासबोध के इस ऑडियो संस्करण में राहुल रानाडे द्वारा रचित संगीत है। देहतु डा निम्रय मरी पमाचानाचा क्षय । चुके खमाचान- समय । देवताओं ॥३३॥ हाये में थोरपण । तेंचि देहबुद्धी लक्षण । मिथ्या जाणून विलक्षण । निंदिया देह ॥३४॥ देह पावे अंधवरी सरण । चचरी घरी देहाभिमान । पुन्हा दाखवी पुनरागमन] गाइड मागुती ॥३५॥ देहचेनि थोरपणें समाधानासि आाणिे उ । देह पडेल कोण्या गुणे हेंदि कजेना ।३॥ ॥

Dasbodh

दासबोध, मराठी में शिथिल अर्थ “शिष्य को सलाह”, 17 वीं शताब्दी का अद्वैत वेदांत आध्यात्मिक पाठ है। इसे संत समर्थ रामदास ने अपने शिष्य कल्याण स्वामी को मौखिक रूप से सुनाया था। दासबोध पाठकों को भक्ति और ज्ञान प्राप्त करने जैसे मामलों पर आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

महाराष्ट्रांत, महाराष्ट्रधर्माचा उदय होऊन मोंगलांच्या जाचांतून त्याची सुटका होण्यापूर्वी जें संतमंडळ उद्भूत झालें व कै. न्या. रानडे यांच्या मताप्रमाणे ज्या संतमंडळीनें राष्ट्रीय स्वातंत्र्याचे बीजारोपण करण्याकरितां जमीन तयार केली, त्यांत श्रीसमर्थ रामदास हे अग्रेसर होत. सदर न्याय मूर्तीनीं आपल्या ‘मराठ्यांच्या इतिहासां’त वर्णिलेल्या संतमालिकेत श्रीसमर्थां चा उल्लेख जरी प्रमुखत्वानें करण्यांत आलेला आहे, तरी त्या वेळी त्यांच्यासंबंधानें सध्यां उपलब्ध असलेली माहिती अप्रसिद्ध असल्यामुळे न्यायमूर्तींना समर्थां च्या कृतीचे व योग्यतेचें यथास्थित शब्दचित्र रेखाटतां आलेलें नाहीं.

तथापि महाराष्ट्रांत महाराष्ट्रधर्माचा प्रसार करून मराठ्यांना राष्ट्रीय वैभव प्राप्त करून देण्याचा उद्योग करणाऱ्यांत समर्थ रामदास हे प्रमुख होते, असे त्यांनी नमूद करून ठेवले आहे; मात्र त्यांनी ह्या उद्योगाचें सर्वच श्रेय सम त्याचा कांहीं वाटा इतर संतांच्या पदरींहि घातलेला आहे.

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