बृहस्पतिवार व्रत कथा और पूजा विधि - Summary
बृहस्पतिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत से धन संपत्ति की प्राप्ति होती है। जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, उनका जल्दी ही विवाह हो जाता है। ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। बुद्धि और शक्ति का वरदान प्राप्त होता है और दोष दूर होता है।
बृहस्पति व्रत विधि
- बृहस्पतिवार को सुबह-सुबह उठकर स्नान करें. नहाने के बाद ही पीले रंग के वस्त्र पहन लें और पूजा के दौरान भी इन्ही वस्त्रों को पहन कर पूजा करें।
- भगवान सूर्य व मां तुलसी और शालिग्राम भगवान को जल चढ़ाएं।
- मंदिर में भगवान विष्णु की विधिवत पूजन करें और पूजन के लिए पीली वस्तुओं का प्रयोग करें. पीले फूल, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल, और हल्दी का प्रयोग करें।
- इसके बाद केले के पेड़ के तने पर चने की दाल के साथ पूजा की जाती है. केले के पेड़ में हल्दी युक्त जल चढ़ाएं।
- केले के पेड़ की जड़ो में चने की दाल के साथ ही मुन्नके भी चढ़ाएं।
- इसके बाद घी का दीपक जलाकर उस पेड़ की आरती करें।
- केले के पेड़ के पास ही बैठकर व्रत कथा का भी पाठ करें।
व्रत के दौरान पुरे दिन उपवास रखा जाता है। दिन में एक बार सूर्य ढलने के बाद भोजन किया जा सकता है। भोजन में पीली वस्तुएं खाएं तो बेहतर लेकिन गलती से भी नमक का इस्तेमाल ना करें। प्रसाद के रूप में केला को अत्यंत शुभ माना जाता है। लेकिन व्रत रखने वाले को इस दिन केला नहीं खाना चाहिए. केला को दान में दे दें. पूजा के बाद बृहस्पति देव की कथा सुनना आवश्यक है। कहते हैं बिना कथा सुने व्रत सम्पूर्ण नहीं माना जाता और उसका पूर्ण फल नहीं मिलता।
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