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Annapurna Vrat Katha 2020 in Gujarati
मान्यता है कि जगत शिव और शक्ति का स्वरूप है जहां शिव विश्वेश्वर हैं और उनकी शक्ति मां पार्वती हैं। सृष्टि की रचना काल में पार्वती को ‘माया’ कहा जाता है और पालन के समय वही ‘अन्नपूर्णा’ नाम के नाम से जानी हैं, जबकि संहार काल में वे ‘कालरात्रि’ बन जाती हैं। पं. विजय त्रिपाठी ‘विजय’ के अनुसार पालन करने वाली अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैहिक, दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है। अतः अन्न-धन, ऐश्वर्य, आरोग्य एवं संतान की कामना करने वाले स्त्री-पुरूषों को अन्नपूर्णा माँ का व्रत-पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए।
पूजन सामग्री, महूर्त और पूजन विधि
अन्नपूर्णा षष्ठी की पूजा के लिए धूप, दीप, लाल फूल, रोली, हरे धान के चावल, अन्नपूर्णा देवी का चित्र या मूर्ती, रेशमी या साधारण सूत का डोरा, पीपल का पत्ता, सुपारी या ग्वारपाठा, तुलसी का पौधा, धान की बाल का कल्पवृक्ष, अन्न से भरा हुआ पात्र, करछुल, 17 पात्रों में बिना नमक के पकवान और गुड़हल या गुलाब जैसे पुष्पों की आवश्यकता होती है। यह पूजा शाम सूर्यास्त के बाद होती है, इस वर्ष यह शाम को पांच बजकर आठ मिनट से प्रारम्भ होगी। सारी सामग्री एकत्रित करके सफेद वस्त्र धारण कर पूजागृह में धान की बाली का कल्पवृक्ष बनायें और उसके नीचे भगवती अन्नपूर्णा की मूर्ति सिंहासन या चौकी पर स्थापित करे। उस मूर्ति के बायीं ओर अन्न से भरा हुआ पात्र तथा दाहिने हाथ में करछुल रखें। धूप दीप, नैवेद्य, सिन्दूर, फूल आदि भगवती अन्नपूर्णा को समर्पित करे। अपने हाथ के डोरे को निकालकर भगवती के चरणों में रख प्रार्थना करे। उसके बाद अन्नपूर्णा व्रत की कथा सुनें। गुरू को दक्षिणा प्रदान करें। 17 प्रकार के पकवानों का भोग लगाएँ। सुपात्र को भोजन करायें, उसके बाद रात में स्वयं भी बिना नमक का भोजन करें।
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