राणी सती चालीसा (Rani Sati Dadi Chalisa) - Summary
राणी सती चालीसा (Rani Sati Dadi Chalisa) के माध्यम से व्यक्ति का मानसिक विकास तेजी से होता है, जिससे वह साहसी बनता है। यदि आपको किसी चीज़ का भय सताता है या कोई शंका मन में बनी रहती है, तो वह भी स्वतः ही दूर हो जाती है और आपको शांति का अनुभव होता है। ऐसे में श्री राणी सती दादी की चालीसा कई प्रकार के लाभ देने वाली होती है।
राणी सती दादी की चालीसा के लाभ
अब यदि आप रोजाना राणी सती दादी की चालीसा का पाठ करते हैं और उनका ध्यान करते हैं, तो इससे अनेक लाभ देखने को मिलते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि आपके अंदर अपने शत्रुओं से निपटने की शक्ति विकसित होती है। साथ ही, आपके जीवन में जो भी विपदाएं या संकट आ रहे थे, उन्हें सुलझाने का मार्ग प्रशस्त होता है। इस प्रकार, आप बेहतर ढंग से अपना कार्य कर पाते हैं और उसमें सफल होते हैं।
Rani Sati Dadi Chalisa (राणी सती चालीसा हिन्दी अनुवाद सहित)
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दूषित भाव सुधार।
राणी सती सुविमल यश, बरणौं मति अनुसार॥
कामक्रोध मदलोभ में, भरम रह्यो संसार।
शरण गहि करूणामयी, सुख सम्पत्ति संचार॥
हिन्दी अनुवाद :- मैं गुरुओं के चरणों में प्रणाम कर और अपने मन से दूषित विचारों को निकालकर, राणी सती की महिमा का अपनी बुद्धि के अनुसार वर्णन करता हूँ। इस संसार के प्राणी काम, क्रोध, अहंकार, लालसा इत्यादि से घिरे हुए हैं और जो कोई भी राणी सती की शरण में जाता है, माता सती उसे सुख व संपत्ति प्रदान करती हैं।
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मानी।
नमो नमो संकटकूँ हरनी, मन वांछित पूरन सब करनी।
नमो नमो जय जय जगदम्बा, भक्तन काज न होय विलम्बा।
नमो नमो जय-जय जग तारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी।
हिन्दी अनुवाद :- सती जो कि भवानी माता का रूप हैं, उन्हें हमारा नमन है। इनकी प्रसिद्धि इस जगत में हर जगह फैली हुई है। वे हमारे संकटों को दूर कर देती हैं और उनके मन की हरेक इच्छा को पूरा कर देती हैं। वे ही जगदंबा का रूप हैं और उनकी इस महिमा को हमारा नमन है। वे भक्तों के काम पूरे करने में निष्क وبين की भी देरी नहीं करती हैं। वे ही इस जगत के प्राणियों का उद्धार करती हैं और अपने सेवकों के बिगड़े हुए काम सुधार देती हैं।
दिव्य रूप सिर चूँदर सोहे, जगमगात कुण्डल मन मोहे।
माँग सिन्दूर सुकाजन टीकी, गज मुक्ता नथ सुन्दर नीकी।
गल बैजन्ती माल बिराजे, सोलहुँ साज बदन पे साजे。
धन्य भाग्य गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को।
हिन्दी अनुवाद :- उन्होंने अपने सिर पर चुनरी ओढ़ी हुई है, जिसमें उनका रूप दिव्य लग रहा है। उनके कानों में कुंडल जगमगा रहे हैं। उन्होंने अपनी माँग में सिन्दूर का तिलक लगाया हुआ है और नाक में नथ पहनी हुई है। गले में बैजयन्ती के पुष्पों की माला है और साथ ही सोलह श्रृंगार राणी सती ने किया हुआ है। गुरसामल जी के तो भाग खुल गए, जब उनके घर में राणी सती का जन्म हुआ। राणी सती का जन्मस्थान डोकवा गाँव था।
तनधन दास पतिवर पाये, आनन्द मंगल होत सवाए।
जालीराम पुत्र वधू होके, वंश पवित्र किया कुल दोके।
पति देव रण माँय झुझारे, सती रूप हो शत्रु संहारे।
पति संग ले सद् गति पाई, सुर मन हर्ष सुमन बरसाई।
हिन्दी अनुवाद :- राणी सती का विवाह धूमधाम से हुआ। जालीराम ने अपने पुत्र को साथ लेकर आकर आनंद के साथ उनके पुत्र टंडन के साथ राणी सती का विवाह किया। राणी सती ने जालीराम की पुत्र वधु बनकर उनके वंश का मान बढ़ाया। इसके बाद, राणी सती के पति की युद्धभूमि में मृत्यु हो गई, तो उन्होंने अपने पति के हत्यारे को मारकर उसका प्रतिशोध लिया। फिर राणी सती अपने पति की चिता पर बैठकर सती हो गईं। यह दृश्य देखकर देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की।
धन्य धन्य उस राणी जी को, सुफल हुवा कर दरस सती का।
विक्रम तेरा सौ बावनकूँ, मंगसिर बदी नौमी मंगलकूँ।
नगर झुँझुनु प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता।
दूर देश के यात्री आवे, धूप दीप नैवेद्य चढावे।
हिन्दी अनुवाद :- वह राणी सती बहुत ही धन्य हैं जिन्होंने अपने पति का प्रतिशोध लिया और फिर सती हो गईं। इसके बाद माता सती झुंझुनू नगरी में प्रकट हुईं और वहां उनके नाम का विशाल मंदिर बनवाया गया। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई है। उनके दर्शन के लिए भक्तगण दूर-दूर से आते हैं और उन्हें धूप, दीप व नैवेद्य चढाते हैं।
उछाड़-उछाड़ते हैं आनन्द से, पूजा तन मन धन श्री फल से।
जात जडूला रात जगावे, बाँसल गोती सभी मनावे।
पूजन पाठ पठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चरते।
नाना भाँति-भाँति पकवाना, विप्रजनों को न्यूत जिमाना।
हिन्दी अनुवाद :- सभी भक्तगण आनंद से उछल-उछल कर पूरे तन, मन व धन के साथ राणी सती दादी की पूजा करते हैं। वे जडूला जाति व बंसल गोत्र में बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके भक्त पूरे विधि-विधान के साथ राणी सती दादी चालीसा का पाठ करते हैं और वेदों का अध्ययन करते हैं। राणी सती को भोग लगाने के लिए उनके भक्त कई तरह के पकवान बनाते हैं और पंडितों को निमंत्रण देते हैं।
श्रद्धा भक्ति सहित हरषाते, सेवक मन वाँछित फल पाते।
जय जय कार करे नर नारी, श्री राणी सती की बलिहारी।
द्वार कोट नित नौबत बाजे, होत श्रृंगार साज अति साजे।
रत्न सिंहासन झलके नीको, पल-पल छिन-छिन ध्यान सती को。
हिन्दी अनुवाद :- राणी सती के भक्त श्रद्धा भाव के साथ खुश दिखाई देते हैं और उनके मन की हर इच्छा पूरी होती है। सभी राणी सती के नाम का जयकारा लगाते हैं। राणी सती के दरबार में ढोल-नगाड़े बजते हैं और उनका प्रतिदिन सुंदर श्रृंगार किया जाता है। वे रत्नों से जड़ित सिंहासन पर विराजती हैं और हम सभी हर पल उनका ध्यान करते हैं।
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला।
भक्त सुजन की सकड़ भीड़ है, दर्शन के हित नहीं छीड़ है।
अटल भुवन में ज्योति तिहारी, तेज पुंज जग माँय उजियारी।
आदि शक्ति में मिली ज्योति है, देश देश में भव भौति है।
हिन्दी अनुवाद :- भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन राणी सती की नगरी में मेले का आयोजन किया जाता है। उस समय राणी सती दादी के दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। उनकी ज्योति अटल है जिससे संपूर्ण विश्व में प्रकाश हो रहा है। उनकी ज्योति माता आदि शक्ति में मिल गई है और उसी से ही हर देश व भवन में प्रकाश व्याप्त है।
नाना विधि सो पूजा करते, निशदिन ध्यान तिहारा धरते।
कष्ट निवारिणी, दुःख नाशिनी, करूणामयी झुँझुनू वासिनी।
प्रथम सती नारायणी नामां, द्वादश और हुई इसि धामा।
तिहूँ लोक में कीर्ति छाई, श्री राणी सती की फिरी दुहाई।
हिन्दी अनुवाद :- हम कई तरह की विधियों से आपकी पूजा करते हैं और दिन-रात आपका ध्यान करते हैं। राणी सती कष्टों को दूर करने वाली, दुखों का नाश करने वाली, करुणा बरसाने वाली तथा झुंझुनू नगरी में वास करने वाली हैं। पहले उनका नाम नारायणी था, लेकिन सती हो जाने के पश्चात उनका नाम राणी सती दादी पड़ गया। इस कृत्य के कारण तीनों लोकों में उनका यश फैल गया और सभी ने उनके नाम की दुहाई दी।
सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घण्टा ध्वनि टँकारे।
राग छत्तिसों बाजा बजे, तेरहुँ मण्ड सुन्दर अति साजे।
त्राहि त्राहि मैं शरण आपकी, पूरो मन की आश दास की।
मुझको एक भरोसो तेरो, आन सुधारो कारज मेरो।
हिन्दी अनुवाद :- हम सभी सुबह-शाम आपके नाम की आरती करते हैं और ढोल-नगाड़े बजाते हैं। आपकी पूजा में तो छत्तीस तरह के बाजे बजते हैं और तेरह तरह के मण्डप सजते हैं। मैं त्राहिमाम करता हुआ आपकी शरण में आया हूँ। मुझे केवल आपका ही भरोसा है और अब आप मेरे बिगड़े हुए कामों को सुधार दीजिये।
पूजा जप तप नेम न जानूँ, निर्मल महिमा नित्य बखानूँ।
भक्तन की आपत्ति हर लेनी, पुत्र पौत्र वर सम्पत्ति देनी।
पढ़े यह चालीसा जो शतबारा, होय सिद्ध मन माँहि बिचारा।
गोपीराम (मैं) शरण ली थारी, क्षमा करो सब चूक हमारी।
हिन्दी अनुवाद :- मैं तो पूजा, जप, तपस्या इत्यादि नहीं जानता हूँ और निर्मल मन के साथ आपके नाम की महिमा गाता हूँ। आप अपने भक्तों की हर विपत्ति दूर कर देती हैं और उन्हें संतान, पौत्र, जीवनसाथी तथा संपत्ति देती हैं। जो कोई भी इस राणी सती दादी चालीसा को सौ बार पढ़ लेता है, उसके सभी काम सिद्ध हो जाते हैं। राणी सती चालीसा के लेखक श्री गोपीराम जी उनकी शरण में हैं और उनसे हुई किसी भी प्रकार की भूल के लिए राणी सती से क्षमा मांग रहे हैं।
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जग जीवन आधार।
बिगड़ी बात सुधारिये, सब अपराध बिसार॥
हिन्दी अनुवाद :- आप ही हमारे दुखों, पीड़ा, संकटों तथा कष्टों का हरण कर सकती हैं और आप ही हमारे जीवन का आधार हैं। अब आप हमारे अपराधों को क्षमा कर, हमारे सभी बिगड़े हुए काम, बातों तथा जीवन को सुधार दीजिये।
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