श्री कृष्ण स्तुति श्लोक (Krishna Stuti) - Summary
भगवान् श्री कृष्ण जी की अनंत कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको भी श्री कृष्ण स्तुति श्लोक का पाठ अवश्य करना चाहिए। श्री कृष्ण स्तुति (Shri Krishna Stuti) को पढ़ने से आप भगवान् श्री कृष्ण जी के प्रेम और आशीर्वाद का अनुभव कर सकते हैं। भगवान् कृष्ण को प्रेम का संदेश देने वाला माना जाता है, और वह सभी के जीवन में प्रेम व प्रसन्नता का संचार कर देते हैं। भगवान् कृष्ण के चमत्कारों का अनुभव करने के लिए श्री कृष्ण स्तुति का पाठ करना बहुत लाभकारी होता है।
श्री कृष्ण स्तुति की महत्ता
श्री कृष्ण स्तुति भगवान् श्री कृष्ण जी को समर्पित एक दिव्य स्तोत्र है। इस स्तुति के माध्यम से आप भगवान् श्री कृष्ण जी को सरलता से प्रसन्न कर सकते हैं। भगवान् श्री कृष्ण जी को वृन्दावन, मथुरा सहित सम्पूर्ण बृज क्षेत्र में बड़े श्रद्धा भाव से पूजा जाता है।
श्री कृष्ण स्तुति के अलावा आप श्री कृष्ण भजन और श्री कृष्ण आरती, जिसे हम आरती कुंजबिहारी की कहते हैं, का पाठ भी अवश्य करें।
Krishna Stuti Lyrics in Hindi (श्री कृष्ण जन्म स्तुति श्लोक)
भये प्रगट गोपाला दीन दयाला यशुमति के हितकारी।
हर्षित महतारी सुर मुनि हारी मोहन मदन मुरारी।।
कंस असुर जाना मन अनुमाना पूतना वेगी पठाई।
तेहि हर्षित धाई मन मुस्काई गयी जहाँ यदुराई।।
तब जाय उठायो हृदय लगायो पयोधर मुख मे दीन्हा।
तब कृष्ण कन्हाई मन मुस्काई प्राण तासु हर लीन्हा।।
जब इन्द्र रिसायो मेघ पठायो बस ताहि मुरारी।
गौअन हितकारी सुर मुनि हारी नख पर गिरिवर धारी।।
कंस असुर मारो अति हँकारो बत्सासुर संघारो।
बक्कासुर आयो बहुत डरायो ताकर बदन बिडारो।।
तेहि अतिथि न जानी प्रभु चक्रपाणि ताहिं दियो निज शोका।
ब्रह्मा शिव आये अति सुख पाये मगन भये गये लोका।।
यह छन्द अनूपा है रस रूपा जो नर याको गावै।
तेहि सम नहि कोई त्रिभुवन सोयी मन वांछित फल पावै।।
नंद यशोदा तप कियो मोहन सो मन लाय।
देखन चाहत बाल सुख रहो कछुक दिन जाय।।
जेहि नक्षत्र मोहन भये सो नक्षत्र बड़िआय।
चार बधाई रीति सो करत यशोदा माय।।
श्री कृष्ण स्तुति संस्कृत
भजे व्रजै कमंडनं समस्त पाप खंडनं,
स्वभक्त चित्त रंजनं सदैव नंद नंदनम्।
सुपिच्छ गुच्छ मस्तकं सुनाद वेणु हस्तकं,
अनंग रंग सागरं नमामि कृष्ण नागरम्।।
मनो जगर्व मोचनं विशाल लोल लोचनं,
विधूत गोप शोचनं नमामि पद्म लोचनम्।
करार विन्द भूधरं स्मिताव लोक सुंदरं,
महेन्द्र मान दारणं नमामि कृष्ण वारणम्।।
कदंब सून कुण्डलं सुचारु गंड मण्डलं,
व्रजांगनैक वल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैक दायकं नमामि गोप नायकम्।।
सदैव पाद पंकजं मदीय मानसे निजं,
दधान मुक्त मालकं नमामि नंद बालकम्।
समस्त दोष शोषणं समस्त लोक पोषणं,
समस्त गोप मानसं नमामि नंद लालसम।।
भुवो भराव तारकं भवाब्धि कर्ण धारकं,
यशोमती किशोरकं नमामि चित्त चोरकम्।
दृगन्तकान्त भंगिनं सदा सदा लिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नंद संभवम्।।
गुणा करं सुखा करं कृपा करं कृपा परं,
सुर द्विषन्नि कन्दनं नमामि गोप नंदनं।
नवीन गोप नागरं नवीन केलि लम्पटं,
नमामि मेघ सुन्दरं तडित्प्रभाल सत्पटम्।।
समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,
नमामि कुंज मध्यगं प्रसन्न भानु शोभनम्।
निकाम काम दायकं दृगन्त चारु सायकं,
रसाल वेणु गायकं नमामि कुंज नायकम्।।
विदग्ध गोपि कामनो मनोज्ञतल्प शायिनं,
नमामि कुंज कानने प्रवृद्ध वह्निपायिनम्।
किशोर कान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्र मोक्ष कारिणं नमामि श्री विहारिणम्।।
Shri Krishna Stuti (श्री कृष्ण स्तुति)
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
अर्थ: हे श्री कृष्ण! आपके माथा कस्तूरी के पवित्र चिन्हों और छाती पर कौस्तुभ गहना से सुशोभित है, आपकी नाक को जिसे एक चमकता हुआ मोती से सजाया गया है, आपकी हाथों की उंगलिया एक बांसुरी पकड़े हुए हैं, आपकी कलाई को सुन्दर कंगन से खूबसूरती से सजाया गया है, आपका पूरा शरीर चंदन के लेप से महक रहा है, मानो खेल-खेल में आपका अभिषेक किया गया हो, और गर्दन को मोतियों के हार से सजाया गया हो, आप चरवाहों के लिए मुक्ति (मोक्ष) के दाता हैं जो आपके चारों ओर चक्कर लगाते हैं; हे भगवान, आपकी विजय – ग्वालों के आभूषणों का आभूषण।
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
अर्थ: श्री कृष्ण की कृपा से जो गूंगे होते हैं वो भी बोलने लगते हैं, जो लंगड़े होते हैं वो पहाड़ों को भी पार कर लेते हैं। उन परम आनंद स्वरूप माधव की मैं वंदना करती हूं।
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