श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram Hindi

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श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram Hindi

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम ( Kashi Vishwanath Mangal Stotram PDF ) संस्कृत भाषा में रचित एक दिव्य स्तोत्र है, जो कि भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप को समर्पित है। इस स्तोत्र में भगवान् भोलेनाथ को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा गया है।

सम्पूर्ण भक्ति-भाव से शिवलिंग के समक्ष इस स्त्रोत का गायन करने से भगवान् बाबा विश्वनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र पाठ विधि | Shri Vishwanath Mangal Stotram Path Vidhi :

  • यदि आप विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम का दिव्य पाठ प्रतिदिन करते हैं, तो आप स्वयं ही इसके प्रभाव की अनुभूति कर सकते हैं। किन्तु यदि
  • आप प्रतिदिन पाठ नहीं कर सकते तो प्रति सोमवार आपको पूर्ण विधि-विधान से यह पाठ करना चाहिये।
  • यदि सम्भव हो तो किसी शिवालय अथार्त शिव मन्दिर में जाकर शिवलिंग के समक्ष ही इस दिव्य स्तोत्र का पाठ करें किन्हीं विशेष कारणों से ऐसा न हो तो आप घर के मन्दिर में ही भगवान शिव का आवाहन करके पाठ कर सकते हैं।
  • सर्वप्रथम एक आसन (सम्भव हो तो कुश का) बिछायें और उस पर पद्मासन में बैठ जायें।
  • अब “ॐ नमः शिवाय:” मन्त्र का उच्चारण करते हुये शुद्ध जल अथवा गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
  • अभिषेक करने के पश्चात शिवलिंग पर गुड़हल, सफेद आक (आंकड़े) अथवा धतूरे के पुष्प उपलब्धता अनुसार अर्पित करें।
  • अब भोलेनाथ को सुगन्ध, अक्षत, धूप, दीप व नैवेद्य आदि अर्पित करें।
  • तत्पश्चात महादेव को धतूरे का फल, भाँग व गन्ने के रस का भोग लगायें।
  • उपरोक्त पूजन करने के पश्चात शिवलिंग के समक्ष श्री विश्वनाथ मंगल स्तोत्र का पाठ करें।
  • पाठ सम्पूर्ण होने के उपरान्त देशी घी के दीपक से भगवान शिव की आरती करें तथा मंगल प्रार्थना करते हुये उनका आशीर्वाद ग्रहण करें।

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram Lyrics

।। अथ श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् ।।

गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी- रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम् ।

भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या- दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये ॥ १॥

अर्थ :- गंगा एवं बाल चन्द्र को धारण करने वाले, त्रिलोक की रक्षा करने वाले,मस्तक पर चन्द्रमा एवं त्रिधार (गंगा) -को धारण करने वाले, भस्म का उद्धूलन करने वाले तथा पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखने वाले, वरदाता भगवान शंकरकी मैं शरण में हूँ ॥ १॥

काशीश्वरं सकलभक्तजनातिहारं विश्वेश्वरं प्रणतपालनभव्यभारम् ।

रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमामः ॥ २॥

अर्थ :- काशी के ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजनको पीडाको दूर करने वाले, विश्वेश्वर, प्रणतजनों को रक्षाका भव्य भार धारण करने वाले, भगवान राम के ईश्वर, विजय प्रदान के विधान में धीर एवं वरद मुद्रा धारण करने वाले, भगवान गौरीशवर को हम प्रणाम करते हैं ॥ २॥

गङ्घोत्तमाङ्ककलितं ललितं विशालं तं मङ्गलं गरलनीलगलं ललामम् ।

श्रीमुण्डमाल्यवलयोज्ज्वलमञ्जुलीलं लक्ष्मीशवरार्चितपदाम्बुजमाभजामः ॥ ३॥

अर्थ :- जिनके उत्तमांग में गंगाजी सुशोभित हो रही हैं, जो सुन्दर तथा विशाल हैं, जो मंगल स्वरूप हैं, जिनका कण्ठ हालाहल विषसे

नीलवर्ण का होनेसे सुन्दर है, जो मुण्ड की माला धारण करने वाले, कंकण से उज्ज्वल तथा मधुर लीला करने वाले हैं, विष्णु के द्वारा पूजित

चरण कमल वाले भगवान शंकर को हम भजते हैं ॥ ३॥

दारिव्र्यदुःखदहनं कमनं सुराणां दीनार्तिदावदहनं दमनं रिपूणाम् ।

दानं श्रियां प्रणमनं भुवनाधिपानां मानं सतां वृषभवाहनमानमामः ॥ ४॥

अर्थ :- दारिद्र्य एवं दुःख का विनाश करने वाले, देवताओं में सुन्दर,दौनों को पीडा को विनष्ट करने के लिये दावानल स्वरूप, शत्रुओं का

विनाश करने वाले, समस्त ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, भुवनाधिपों के प्रणम्य और सत्पुरुषों के मान्य वृषभवाहन भगवान शंकरको

हम भलीभाँति प्रणाम करते हैं ॥ ४॥

श्रीकृष्णचन्द्रशरणं रमणं भवान्याः शशवत्प्रपन्नभरणं धरणं धरायाः ।

संसारभारहरणं करुणं वरेण्यं संतापतापकरणं करवै शरण्यम् ॥ ५॥

अर्थ :- श्री कृष्णचन्द्रजी के शरण, भवानी के पति, शरणागत का सदा भरण करने वाले, पृथ्वी को धारण करने वाले, संसार के भार को हरण

करने वाले, करुण, वरेण्य तथा संताप को नष्ट करने वाले भगवान शंकर की मैं शरण ग्रहण करता हूँ ॥ ५॥

चण्डीपिचण्डिलवितुण्डधृताभिषेकं श्रीकार्तिकेयकलनृत्यकलावलोकम् ।

नन्दीशवरास्यवरवाद्यमहोत्सवाढ्यं सोल्लासहासगिरिजं गिरिशं तमीडे ॥ ६॥

अर्थ :- चण्डी, पिचण्डिल तथा गणेश के शुण्ड द्वारा अभिषिक्त, कार्तिकेय के सुन्दर नृत्यकला का अवलोकन करने वाले, नन्दीशवर के मुखरूपी श्रेष्ठ वाद्य से प्रसन्न रहने वाले तथा सोल्लास गिरिजा को हँसाने वाले भगवान गिरीश की मैं स्तुति करता हूँ ॥ ६॥

श्रीमोहिनीनिविडरागभरोपगूढं योगेश्वरेशवरहदम्बुजवासरासम् ।

सम्मोहनं गिरिसुताञ्चितचन्द्रचूडं श्रीविश्वनाथमधिनाथमुपैमि नित्यम् ॥ ७॥

अर्थ :- श्री मोहिनी के द्वारा उत्कट एवं पूर्ण प्रीति से आलिंगित, योगेश्वरों के ईश्वर के हृत्कमल में रास के द्वारा नित्य निवास करने वाले, मोह

उत्पन्न करने वाले, पार्वती के द्वारा पूजित शशिशेखर, सर्वेश्वर श्री विश्वनाथ को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ॥ ७॥

आपद् विनश्यति समृध्यति सर्वसम्पद् विघ्नाः प्रयान्ति विलयं शुभमभ्युदेति ।

योग्याङ्गनाप्तिरतुलोत्तमपुत्रलाभो विश्वेश्वरस्तवमिमं पठतो जनस्य ॥ ८॥

अर्थ :- इस विश्वेश्वर के स्तोत्र का पाठ करने वाले मनुष्य की आपत्ति दूर हो जाती है, बह सभी सम्पत्तिसे परिपूर्ण हो जाता है, उसके विघ्न दूर हो

जाते हैं तथा वह सब प्रकार का कल्याण प्राप्त करता है, उसे उत्तम स्त्री रत्न तथा अनुपम उत्तम पुत्र का लाभ होता है ॥ ८॥

वन्दी विमुक्तिमधिगच्छति तूर्णमेति स्वास्थ्यं रुजार्दित उपैति गृहं प्रवासी ।

विद्यायशोविजय इष्टसमस्तलाभः सम्पद्यतेऽस्य पठनात् स्तवनस्य सर्वम् ॥ ९॥

अर्थ :- इस विश्वेश्वरस्तव का पाठ करने से बन्धन में पड़ा मनुष्य बन्धन से मुक्त हो जाता है, रोग से पीडित व्यक्ति शीघ्र स्वास्थ्य- लाभ प्राप्त

करता है, प्रवासी शीघ्र ही विदेश से घर आ जाता है तथा विद्या, यश, विजय और समस्त अभिलाषाओं की पूर्ति हो जाती है ॥ ९॥

कन्या वरं सुलभते पठनादमुष्य स्तोत्रस्य धान्यधनवृद्धिसुखं समिच्छन् ।

किं च प्रसीदति विभुः परमो दयालुः श्रीविश्वनाथ इह सम्भजतोऽस्य साम्बः ॥ १०॥

अर्थ :- इस स्तोत्रका पाठ करनेसे कन्या उत्तम वर प्राप्त करती है, धन-धान्यको वृद्धि तथा सुखकी अभिलाषा पूर्ण होती है एवं उसपर

व्यापक परम दयालु भगवान श्रीविश्वेशवर पार्वतीके सहित प्रसन्न हो जाते हैं ॥ १०॥

काशीपीठाधिनाथेन शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।

महेश्वरेण ग्रथिता स्तोत्रमाला शिवारपिता ॥ ११॥

काशीपीठके शंकराचार्यपदपर प्रतिष्ठित श्रीस्वामी महेश्वरानन्दजीने

अर्थ :- इस स्तोत्रमालाकी रचना कर भगवान विश्वनाथको समर्पित किया ॥ ११॥

॥ इति काशीपीठाधीश्वरशङ्कराचार्यश्रीस्वामिमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

अर्थ :-इस प्रकार काशीपीठाधीशवर शंकराचार्य श्री स्वामी महेश्वरानन्दसरस्वतीविरचित श्रीविशवनाथमंगलस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

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