Yogini Tantra (64 योगिनी तंत्र) - Summary
चौसठ योगिनी साधना, षोडश/चाँद/मधुमती योगिनी साधना, और योगिनी तंत्र साधना मंत्र विधि – ये सभी योगिनी तंत्र साधना की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं। योगिनी तंत्र साधना और मन्त्र विधि के विधिवत पालन से साधना को सिद्ध किया जा सकता है। इस साधना में माँ आदि शक्ति की कृपा पाने के लिए साधना की जाती है। माँ काली, अपने योगिनियों के माध्यम से, भक्तों का कल्याण करती हैं। यहाँ पर आप बड़ी आसानी से Yogini Tantra Sadhana Vidhya Hindi PDF (योगिनी तंत्र साधना विद्या पीडीएफ) हिंदी में डाउनलोड कर सकते हैं।
योगिनी साधना की विशेषताएँ
योगिनी साधना एक प्राचीन तंत्र विद्या की विधि है। इसमें सिद्ध योगिनी या सिद्धि दात्री योगिनी की आराधना की जाती है। यह विद्या कुछ लोगों द्वारा द्वतीय दर्जे की आराधना मानी जाती है, लेकिन यह पूरी तरह से एक भ्रांति है। जो साधक इस साधना को करते हैं, उन्हें बहुत ही आश्चर्यजनक लाभ होते हैं।
हर प्रकार के बिगड़े कामों को ठीक करने में इस साधना का असर दार्शनिक और प्रभावशाली होता है। माँ शक्ति के भक्तों को जल्दी और उत्साहवर्धक परिणाम मिलते हैं। अपनी साधना करते समय साधक की प्राण ऊर्जा में अद्भुत वृद्धि होती है। माँ की कृपा से भक्त के जीवन की सारी मुश्किलें हल हो जाती हैं और उसके घर में सुख एवं समृद्धि का आगमन होता है।
Yogini Tantra (64 योगिनी तंत्र)
एक अन्य पारम्परिक ग्रन्थ में इन्हें प्रमुख देवी की सहायिकाओं के रूप में बताया गया है। जैसे शिव के गण आश्चर्यजनक रूप से पशु-पक्षियों के सिर से युक्त किए गए हैं, उसी तरह देवी की सहायिकाओं का वर्णन किया गया है। इन सहायिकाओं का चित्रण केवल ग्रन्थों में नहीं, बल्कि मूर्तियों और चित्रकला में भी किया गया है। कला में इन्हें पशु-पक्षियों के सिर के साथ प्रदर्शित किया गया है, और इन्हें शिव के गणों से अधिक शक्तिशाली और दिव्य स्वरूप में भी दर्शाया गया है।
योगिनी शब्द का विवरण विभिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न तरीकों से किया गया है। इस साधना को रात के ग्यारह बजे के बाद करना चाहिए। कृष्ण पक्ष की अष्टमी का दिन इस साधना के लिए उचित होता है। इसके अलावा, कोई भी शुक्रवार या नवमी भी इस साधना के लिए उत्तम समय है।
इस साधना में लाल वस्त्र का विशेष महत्त्व है, इसलिए आसन और वस्त्र सभी लाल रंग के होने चाहिए। उत्तर की ओर मुख करके बैठें और सामने एक लाल रंग का वस्त्र बिछा दें। अब इस वस्त्र पर अक्षत को कुमकुम से रंजित करते हुए एक मैथुन चक्र बनाएं।
अब इस मैथुन चक्र के बीच ‘दिव्यकर्षण गोलक’ को सिंदूर से रंजित करें। यदि ‘दिव्यकर्षण गोलक’ नहीं है, तो सुपारी का उपयोग भी कर सकते हैं। इस तरह से ‘दिव्यकर्षण गोलक’ स्थापित करके अपने गुरुदेव या भगवान गणेश की आराधना करें। गोलक या सुपारी को योगिनी स्वरूप मानकर पूजन करें। पूजन के लिए लाल रंग के पुष्प, हल्दी, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करें और तिल्ली के तेल का दीपक जलाएं। फिर गुड़ का भोग लगाएं और अनार रस अर्पित करें।
एक रुद्राक्ष की माला लेकर “ओम रं रुद्राय सिद्धेस्वराय नमः” इस मंत्र का जप करें। इसके बाद, थोड़ा सा अक्षत लेकर उसमें कुमकुम मिलाकर नीचे दिए गए मंत्रों का उच्चारण करते हुए स्थापित गोलक या सुपारी पर अर्पित करें।
मन्त्र-
ओम ह्रीं सिद्धेस्वरी नम:
ओम ऐं ज्ञानेश्वरी नम:
ओम क्रीं योनि रूपाययै नम:
ओम ह्रीं क्रीं भ्रं भैरव रूपिणी नम:
ओम सिद्ध योगिनी शक्ति रूपाययै नम:
मंत्र जाप पूरा करने के बाद एक अन्य मंत्र – “ओम ह्रीं क्रीं सिद्धाययै सकल सिद्धि दात्री ह्रीं क्रीं नम:” का इक्कीस बार रुद्राक्ष की माला से जाप करें। जब आपका माला जप पूर्ण हो जाए, तो अनार के दानों में थोड़ा सा घी मिलाकर अग्नि में 108 बार अर्पित करें। आखिरी दिन एक अनार लेकर उसे जमीन पर जोर से पटके और उसका रस सीधे अग्नि को अर्पित करें। रस अर्पित करते हुए ‘सिद्ध योगिनी प्रसन्न हो’ यह जाप करते रहें। साधना संपन्न होने के अगले दिन पूजा सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दें। रोज पूजा में अर्पित अनार और गुड़ साधक ग्रहण कर सकते हैं। पूजा में रखी गई सुपारी या गोलक को पोंछ कर साधक अपने पास रख सकता है, लेकिन वस्त्र आदि को प्रवाहित कर देना चाहिए।
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