उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा – Utpanna Ekadashi Vrat Katha Hindi

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उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा – Utpanna Ekadashi Vrat Katha in Hindi

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा | Utpnna Ekadshi Vrat katha

पुराणों में सभी व्रतों में एकादशी व्रत का बड़ा महत्व बताया गया है। पूरे साल में 24 एकादशी आती है इनमें देवशयनी, देवप्रबोधनी और मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का बड़ा महत्व है। इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। एकादशी के दिन पूजन करने से व्यक्ति पर श्री हरी विष्णु भगवान् की विशेष कृपा प्राप्त होती है। विष्णु भगवान् हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले सर्वाधिक लोक्रपिय देवों में से एक हैं। विष्णु भगवान् त्रिमूर्तियों में से एक हैं जो की संसार की समस्त व्यवस्थाओं का संचालन करते हैं। इन त्रिमूर्तियों को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के नाम से जाना जाता है।

क्योंकि सतयुग में इसी एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था। इस देवी ने भगवान विष्णु के प्राण बचाए जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें एकादशी नाम दिया। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के संग एकादशी देवी की पूजा करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान पाने का अधिकारी बन जाता है।

उत्पन्ना (उत्पत्ति) एकादशी व्रत कथा – Utpatti Ekadashi Vrat Katha

सूतजी कहने लगे- हे ऋषियों! इस व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति प्राचीनकाल में भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त युधिष्ठिर से कही थी। वही मैं तुमसे कहता हूँ। एक समय यु‍धिष्ठिर ने भगवान से पूछा था ‍कि एकादशी व्रत किस विधि से किया जाता है और उसका क्या फल प्राप्त होता है। उपवास के दिन जो क्रिया की जाती है आप कृपा करके मुझसे कहिए। यह वचन सुनकर श्रीकृष्ण कहने लगे- हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी के व्रत का माहात्म्य कहता हूँ। सुनो।

सर्वप्रथम हेमंत ऋ‍तु में मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में रह न जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें, न अधिक बोलें। एकादशी के दिन प्रात: 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। व्रत करने वाला चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात न करे।

स्नान के पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। धर्मात्मा पुरुषों को कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की एकादशियों को समान समझना चाहिए।

जो मनुष्य ऊपर लिखी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के भी समान नहीं है। व्यतिपात के दिन दान देने का लाख गुना फल होता है। संक्रांति से चार लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान से जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य एकादशी के दिन व्रत करने से मिलता है।

अश्वमेध यज्ञ करने से सौ गुना तथा एक लाख तपस्वियों को साठ वर्ष तक भोजन कराने से दस गुना, दस ब्राह्मणों अथवा सौ ब्रह्मचारियों को भोजन कराने से हजार गुना पुण्य भूमिदान करने से होता है। उससे हजार गुना पुण्य कन्यादान से प्राप्त होता है। इससे भी दस गुना पुण्य विद्यादान करने से होता है। विद्यादान से दस गुना पुण्य भूखे को भोजन कराने से होता है। अन्नदान के समान इस संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं जिससे देवता और पितर दोनों तृप्त होते हों परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य सबसे अधिक होता है।

पूरी कथा को हिन्दी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके पीडीएफ़ प्रारूप मे डाउनलोड करे।

उत्पत्ति एकादशी पूजा विधि – Utpanna Ekadashi Pooja Vidhi in Hindi

विष्णु भगवान की आरती – Vishnu Aarti Lyrics in Hindi

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का ।
स्वामी दुःख विनसे मन का ।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी ।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता ।
स्वामी तुम पालन-कर्ता ।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे ।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे ।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा ।
स्वमी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे ।
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।

अगर आप भी अपने जन्मों-जन्मों के पाप कर्म को मिटाना चाहते हैं तो उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा कर सकते हैं। उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा से संबंधित सभी जानकारी जैसे की:
1) उत्पन्ना एकादशी व्रत पूजा विधि (Ekadashi Vrat Vidhi)
2) उत्पन्ना एकादशी की कथा (Utpanna Ekadashi Ki Katha, Ekadashi Katha)
3) उत्पन्ना एकादशी व्रत की शुरुआत कैसे हुई

पूरी कथा को पढ़ने किए अप नीचे दिए लिंक का उपयोग करके उत्पत्ति एकादशी व्रत कथा | Utpatti Ekadashi Vrat Katha PDF में डाउनलोड कर सकते हैं।

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