Dev Utthana Ekadashi Vrat Katha

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Dev Utthana Ekadashi Vrat Katha

कार्तिक माह की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय रूप से देवोत्थान एकादशी को देवउठनी ग्यारस तथा प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में देवोत्थान एकादशी का अत्यधिक महत्व है। इस दिन किये गए दान – पुण्य का फल व्यक्ति को कई गुना अधिक होकर प्राप्त होता है। देवउठनी एकादशी के दिन माता तुलसी के पूजन का भी विशेष महत्व है। यदि आप भी अपने जीवन में भगवान् श्री हरी विष्णु जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं , तो प्रबोधिनी एकादशी का व्रत अवश्य करें।

इस वर्ष देवउठनी एकादशी 23 नवंबर 2023, गुरुवार को है। मान्यता है इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निद्रा से जागते हैं। जब भगवान विष्णु नींद से जागते हैं तो उसे देबप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरूआत भी होती है। देवउठनी एकादशी पर तुलसी और भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालिग्राम के विवाह का परंपरा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।

देवउठनी एकादशी की व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha)

एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।

उस व्यक्ति ने उस समय ‘हाँ’ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊँगा। मुझे अन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुँचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।

पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।

पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।

यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा।

लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए।

यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

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देवउठनी एकादशी पूजन विधि (Devuthani Ekadashi Puja Vidhi in Hindi)

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