Surya Stotram PDF

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Surya Stotram - Summary

सूर्य स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन करने से सूर्यदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आप प्रतिदिन इसका पाठ करने में असमर्थ हैं, तो आप रविवार के दिन भी इसका पाठ कर सकते हैं। सूर्य देव की कृपा से व्यक्ति के मान – सम्मान में वृद्धि होती है। इसे सूर्य मंगल स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह सूर्य देव को समर्पित एक बहुत प्रभावशाली स्तोत्र है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रविवार के दिन सूर्य भगवान की पूजा- अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिष में सूर्य देव को सम्मान, सफलता, प्रगति, उच्च सेवा, ऊर्जा, आत्मा तथा पिता का कारक ग्रह माना जाता है। कुंडली में सूर्य के मजबूत होने पर व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। वहीं सूर्य के कमजोर होने पर व्यक्ति कई तरह की परेशानियों का सामना करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए रविवार के दिन Surya Stotram का पाठ करना चाहिए।

Surya Stotram Lyrics (सूर्य स्तोत्र)

॥ सङ्कल्प ॥

श्रीसूर्यनारायणदेवतामुद्दिश्य, प्रीत्यर्थम् ।
श्रीसूर्यस्तोत्रमहामन्त्रपठनं करिष्ये ॥

अस्य श्रीभगवदादित्यस्तोत्रमहामन्त्रस्य, अगस्त्यभगवान् ऋषिः,
अनुष्टुप्छन्दः, श्रीसूर्यनारायणो देवता ।
ह्रां बीजं, ह्रीं शक्तिः, ह्रूं कीलकं,
श्रीसूर्यनारायणदेवताप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

।। अथ सूर्यस्तोत्रप्रारम्भः ।।
अस्य श्रीभगवत्सूर्यस्तोत्रमहामन्त्रस्य अगस्त्य ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः ।
श्रीसूर्यनारायणो देवता । सूं बीजम् ।
रिं शक्तिः । यं कीलकम् । सूर्यप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

आदित्याय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । अर्काय तर्जनीभ्यां नमः ।
दिवाकराय मध्यमाभ्यां नमः । प्रभाकराय अनामिकाभ्यां नमः ।
सहस्रकिरणाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । मार्ताण्डाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

आदित्याय हृदयाय नमः । अर्काय शिरसे स्वाहा ।
दिवाकराय शिखायै वषट् । प्रभाकराय कवचाय हुम् ।
सहस्रकिरणाय नेत्रत्रयाय वौषट् । मार्ताण्डाय अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवः सुवरोमिति दिग्बन्धः ॥

।। ध्यानम् ।।
ध्यायेत् सूर्यमनन्तशक्तिकिरणं तेजोमयं भास्वरं
भक्तानामभयप्रदं दिनकरं ज्योतिर्मयं शङ्करम् ।
आदित्यं जगदीशमच्युतमजं त्रैलोक्यचूडामणिं
भक्ताभीष्टवरप्रदं दिनमणिं मार्ताण्डमाद्यं शुभम् ॥

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः ।
पञ्चब्रह्ममयाकाराः येन जाता नमामि तम् ॥ १॥

कालात्मा सर्वभूतात्मा वेदात्मा विश्वतोमुखः ।
जन्ममृत्युजराव्याधिसंसारभयनाशनः ॥ २॥

ब्रह्मस्वरूप उदये मध्याह्ने तु सदाशिवः ।
अस्तकाले स्वयं विष्णुस्त्रयीमूर्तिर्दिवाकरः ॥ ३॥

एकचक्रो रथो यस्य दिव्यः कनकभूषितः ।
सोऽयं भवतु नः प्रीतः पद्महस्तो दिवाकरः ॥ ४॥

पद्महस्तः परञ्ज्योतिः परेशाय नमो नमः ।
अण्डयोने कर्मसाक्षिन्नादित्याय नमो नमः ॥ ५॥

कमलासन देवेश कर्मसाक्षिन्नमो नमः ।
धर्ममूर्ते दयामूर्ते तत्त्वमूर्ते नमो नमः ॥ ६॥

सकलेशाय सूर्याय सर्वज्ञाय नमो नमः ।
क्षयापस्मारगुल्मादिव्याधिहन्त्रे नमो नमः ॥ ७॥

सर्वज्वरहरं चैव सर्वरोगनिवारणम् ।
स्तोत्रमेतच्छिवप्रोक्तं सर्वसिद्धिकरं परम् ॥ ८॥

सर्वसम्पत्करं चैव सर्वाभीष्टप्रदायकम् ॥

।। इति सूर्यस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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