सूर्य षष्ठी व्रत कथा (Surya Shashti Vrat Katha) - Summary
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह से शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है। इस षष्ठी को सूर्य षष्ठी और लोलार्क षष्ठी भी कहा जाता है। आज के दिन महिलाएं व्रत करती हैं, जिसका उन्हें विशेष फल मिलता है। यह व्रत भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता है। ऐसे में आज व्रत के साथ 16 दिनों तक काशी के लोलार्क कुंड में स्नान करने का भी विशेष महत्व होता है।
जिस तरह सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है ठीक ऐसे ही रविवार सूर्य देव को समर्पित है। ऐसे में रविवार को उगते सूरज को जल अर्पित कर सूर्यदेव की आराधना करने से हर मनोकामना पूरी होती है, रुके हुए कार्य पूरे होते हैं। इसके साथ ही व्यक्ति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। कहा जाता है कि यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की खुशी के लिए किया जाता है।
Surya Shashti Vrat Katha Puja Vidhi
- सूर्य षष्ठी/लोलार्क षष्ठी पर नदी या साफ तालाब में स्नान कर लें और अगर आप कहीं दूर नदी या तालाब में स्नान करने जा सकते हैं तो आप अपने घर में ही साफ पानी से स्नान कर लें।
- इसके बाद सूर्यदेव का स्मरण करते हुए चंदन, चावल, तिल और चंदन मिले हुए जल से उगते सूरज को अर्घ्य दें।
- इसके बाद सूर्य देव घी का दीपक या धूप जलाकर सूर्यदेव के मंत्र का यथा शक्ति जप करते हुए सूर्य देव की पूजा करें।
- आदित्यहृदयस्त्रोत्र का पाठ करें।
- आज के दिन ब्राह्मणों को दान देने का भी खास महत्व होता है।
सूर्य षष्ठी व्रत कथा (Surya Shashti Vrat Katha)
कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।
नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि -विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।