सूरदास का जीवन परिचय - Summary
सूरदास का जीवन परिचय PDF में खोज रहे हैं तो आप सही जगह आए हैं। यहाँ से आप कवि सूरदास की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दी साहित्य में सूरदास जी को भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त माना जाता है। वह ब्रजभाषा के सबसे श्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। सूरदास जी के जन्मांध होने के बारे में विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं।
सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीही नामक गाँव में हुआ था। हालांकि, वल्लभ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार, बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उसी संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसीलिए, सूरदास की जन्म तिथि वैशाख शुक्ल पंचमी, संवत 1535 वि० मानी जाती है।
सूरदास का जीवन परिचय – सम्पूर्ण जानकारी
- सूरदास का जन्म निर्धन सारस्वत ब्राह्मण पं. रामदास के यहाँ हुआ था। सूरदास के पिता एक गायक थे और उनकी माता का नाम जमुनादास था।
- बचपन से ही सूरदास की रुचि कृष्णभक्ति में थी। कृष्ण के भक्त होने के नाते उन्हें मदन-मोहन के नाम से भी जाना जाता है। सूरदास ने अपने कई दोहों में खुद को मदन-मोहन कहा है।
- सूरदास नदी किनारे बैठकर पद लिखते और उनका गायन करते थे। वो कृष्ण भक्ति के बारे में लोगों को बताते थे।
- इनके भक्ति के एक पद को सुनकर पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु बल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। बल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ नाम से कृष्ण भक्त कवियों के लिए एक संगठन बनाया, जिसमें सूरदास सबसे श्रेष्ठ कवि थे। इनकी मृत्यु 1583 ई. में परसौली नामक गाँव में हुई थी।
- सूरदास ने अपने जीवन काल में “सूरसागर, सूर-सारावली, साहित्य लहरी” जैसी रचनाएँ की हैं। हिन्दी साहित्य में सूरदास को सूर्य की उपाधि भी दी गई है।
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त सूरसागर सार, प्राणप्यारी, गोवर्धन लीला, दशमस्कंध टीका, भागवत्, सूरपचीसी, नागलीला, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। हालांकि, इनकी केवल तीन रचनाओं के प्रमाण हैं, बाकी का कोई प्रमाण नहीं है।
- सूरसागर : ‘सूरसागर’ में सवा लाख पद थे, लेकिन वर्तमान संस्करणों में लगभग सात हजार पद ही उपलब्ध हैं। इसमें श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, उद्धव-गोपी संवाद और गोपी-विरह का गहरा वर्णन है। ‘सूरसागर’ की सराहना डॉक्टर हजारी प्रसाद ने अपनी कई रचनाओं में की है। यह ग्रंथ सूरदास की कृति का स्तम्भ है।
- सूरसारावली : ‘सूरसारावली’ में 1107 छन्द हैं, जिसे ‘सूरसागर’ का सारभाग कहा जाता है। इसका रचना काल संवत् 1602 वि० मना गया है।
- साहित्य लहरी : इसमें 118 पद हैं। सूरदास का वंशवृक्ष इसमें दिया गया है, जिसके अनुसार उनका नाम ‘सूरजदास’ है। इसे 1607 विक्रमी संवत् में रचित माना जाता है।
क्या सूरदास जन्म से अंधे थे
सूरदास के जन्मांध होने के बारे में मतभेद है। सूरदास ने खुद को जन्मांध बताया है, लेकिन उन्होंने श्री कृष्ण की लीला और राधा-गोपियों का बहुत सुंदर वर्णन किया है। विद्वानों का मानना है कि वे जन्मांध नहीं थे, बल्कि उन्होंने आत्मग्लानीवश या अन्य कारणों से ऐसा कहा।
अंधे होने की कहानी
- सूरदास (मदन मोहन) एक बहुत सुंदर और तेज बुद्धि के नवयुवक थे। एक दिन, एक सुंदर युवती को देखकर उन्होंने अपनी कविता लिखने का ध्यान खो दिया।
- युवती ने मदन मोहन को पहचान लिया और कहा, “आप मदन मोहन हैं?” मदन मोहन ने कहा, “हाँ, मैं कविताएँ लिखता हूँ।” यह सिलसिला कई दिनों तक चला।
- एक दिन मंदिर में मदन मोहन ने देखा कि एक शादीशुदा स्त्री आई। मदन मोहन ने जलती हुई सिलियां अपनी आँखों में डाल दीं। इसी प्रकार वे महान कवि सूरदास बने।
सूरदास के १० प्रसिद्ध दोहे
१. ” चरण कमल बंदो हरी राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई॥
२. ” अतिशय चारु चपल अनियारे, पल पिंजरा न समाते॥
३. ” मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ, मोसं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ।
४. ” अरु हलधर सों भैया कहन लागे मोहन मैया मैया।
५. ” मैया मोहि मैं नहीं माखन खायौ।
६. ” मैया मोहि कबहुँ बढ़ेगी चोटी।
७. ” जसोदा हरि पालनै झुलावै।
८. ” बुझत स्याम कौन तू गोरी।
९. ” निरगुन कौन देस को वासी।
१०. ” जो तुम सुनहु जसोदा गोरी।
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