संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित - Summary
संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित
संत रविदास जी ने हमेशा अपने दोहों और रचनाओं के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को दूर किया है। संत रविदास जी ने सभी को भगवान की भक्ति करके सचाई की राह पर चलने की प्रेरणा दी है। इन्होंने सभी लोगों को एकता के सूत्र में चलने का भी विशेष प्रयास किया है।
रविदास जी अपनी काव्य-रचनाओं में खड़ी-बोली, राजस्थानी, अवधी और उर्दू-फारसी जैसी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करते हैं। जो भी संत रविदास जी के दोहे (Ravidas ke Dohe in Hindi) पढ़ता है, वह उन दोहों से बड़ी सीख लेता है। इनकी रचनाएं हास्यस्पर्शी होती हैं।
संत रविदास जी के दोहे के विशेष अर्थ
संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित
1- रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच
इसका अर्थ है कि सिर्फ जन्म लेने से कोई नीच नहीं बन जाता है, बल्कि इंसान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।
2- जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
इसका अर्थ है कि जिस प्रकार केले के तने को छिला जाए तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता, और अंत में कुछ नहीं निकलता है। और पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बांट दिया गया है। इन जातियों के विभाजन से इंसान अलग-अलग बंट जाता है और अंत में इंसान भी खत्म हो जाते हैं, लेकिन ये जातियां खत्म नहीं होती हैं। इसलिए रविदास जी कहते हैं कि जब तक ये जातियां खत्म नहीं होंगी तब तक इंसान एक दूसरे से जुड़ नहीं सकते हैं।
3- हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
अर्थात, हीरे से बहुमूल्य हरी यानी भगवान को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करने वालों को अवश्य ही नर्क जाना पड़ता है। अर्थात, प्रभु की भक्ति को छोड़कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।
4- करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
इसका अर्थ है कि हमें हमेशा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म के फल की आशा नहीं छोड़नी चाहिए। क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है, तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।
5- कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
अर्थात, राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सभी एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
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