ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र hindi PDF

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र in hindi PDF download free from the direct link below.

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र - Summary

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र, आर्थिक संकटों से मुक्ति का एक महत्वपूर्ण उपाय है। जब घर में वास्तु नियमों का पालन किया जाता है, तो वहां सुख और समृद्धि बनी रहती है। लेकिन लापरवाही से आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। आर्थिक मुश्किलों से जूझते समय परिवार में विवाद भी पैदा हो सकते हैं। इसके चलते धन की देवी मां लक्ष्मी भी घर से चली जा सकती हैं। आप इस उपयोगी सामग्री को PDF में डाउनलोड कर सकते हैं।

आर्थिक शांति के लिए पूजा

कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव या पितृ दोष भी आर्थिक परेशानियों का कारण बन सकता है। यदि आप भी कर्ज में दबे हुए हैं, तो प्रतिदिन आरती के समय ऋणहर्ता गणेश और ऋण मोचन मंगल स्तुति का पाठ करें। ऋणहर्ता गणेश स्तुति का पाठ करने से आप आर्थिक तंगी से मुक्त हो सकते हैं। इस पाठ को नियमित रूप से पढ़कर, आप अपनी वित्तीय स्थिति को सुधार सकते हैं।

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र इन हिन्दी

॥ ध्यान ॥
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥

॥ मूल-पाठ ॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥

इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित: ।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत् ॥
॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥

RELATED PDF FILES

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र hindi PDF Download