मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा (Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha & Pooja Vidhi) Hindi

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मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा (Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha & Pooja Vidhi) in Hindi

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा (Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha)

श्री माह लक्ष्मी की व्रत कथा (गुरुवार की कथा)* आइये भक्तजनों, धयान से सुने श्री महालक्ष्मी की व्रत कथा, गुरुवार की व्रतकथा, इसे श्रावण और पठन करने से दुःख दारिद्र्य दूर हो जाता है, श्री महालक्ष्मी माता की कृपा से सुख, संपत्ति,ऐश्वर्य प्राप्त होता है, मन की इच्छा पुरी होती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल यह व्रत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ हो जाते हैं और 16 दिनों तक व्रत रखे जाते हैं। पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि में व्रत का समापन होता है। व्रत का फल जातक को तभी प्राप्त होता है जब वह व्रत में गज लक्ष्मी व्रत कथा को सुनता है।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा (Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha in Hindi)

श्री महालक्ष्मी की व्रत कथा गुरुवार की कथा आइये भक्तजनों, धयान से सुने श्री महालक्ष्मी की व्रत कथा, गुरुवार की व्रतकथा, इसे श्रावण और पठन करने से दुःख दारिद्र्य दूर हो जाता है, श्री महालक्ष्मी माता की कृपा से सुख, संपत्ति,ऐश्वर्य प्राप्त होता है, मन की इच्छा पुरी होती है। श्री महालक्ष्मी माता के अनेक रूप तथा नाम हैं। भूतल में वे छाया, शक्ति, तृष्णा, शांति, जाती, लज्जा, श्राद्धा, कान्ति, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, माता, अधिष्ठात्री, एवं लक्ष्मी के रूप में स्थित है। उन्हें प्रणाम करते हैं। कैलाश पर्वत पर पार्वती, क्षीरसागर में सिन्धुकन्या, स्वर्गलोक में महालक्ष्मी, भूलोक में लक्ष्मी, ब्रह्मलोक में सावित्री, ग्वालों में राधिका, वृन्दावन में रासेश्वरी, चंदनवन में चन्द्रा, चम्पकवैन में गिरजा, पद्मवन में पद्मा, मल्टीवं में मालती, कुन्दनवन में कुंददंती, केतकी वन में सुशीला, कदंबवन में कदंबमाला, राजप्रसाद में राजलक्ष्मी और घर घर में गृहलक्ष्मी इन विभन्न नामों से पहचानी जाती है। ……………………………. पूरी कथा पढ़ने के लिए PDF को डाउनलोड करे, लिंक नीचे दिया गया हैं।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी दूसरी कथा

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रुप से जगत के पालनहार विष्णु भगवान की अराधना करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्रीविष्णु ने दर्शन दिए और ब्राह्मण से वर मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने लक्ष्मीजी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की। तब श्रीविष्णु ने लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वही देवी लक्ष्मी हैं।

विष्णु जी ने ब्राह्मण से कहा, जब धन की देवी मां लक्ष्मी के तुम्हारे घर पधारेंगी तो तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्रीविष्णु जी चले गए। अगले दिन वह सुबह ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मीजी समझ गईं, कि यह सब विष्णुजी के कहने से हुआ है।

लक्ष्मीजी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं चलूंगी तुम्हारे घर लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि (Margashirsha Mahalaxmi Vrat Pooja Vidhi)

  1. यह व्रत पूजा करने से माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती है, तथा सुख शान्ति एवं धन संपत्ति प्राप्त होती है। यह व्रत करने वाले स्त्री तथा पुरुष दोनों मन से स्वस्थ एवं आनंदमय होने चाहिये।इस व्रत को किसी भी महीने के प्रथम गुरुवार ( बृहस्पति वार) से शुरु कर सकते हैं। विधि नियम अनुसार हर गुरुवार को महालक्ष्मी व्रत करे। श्री महालक्ष्मी की व्रतकथा को पढ़ें लगातार आठ गुरुवार को व्रत पालन करने पर अंतिम गुरुवार को समापन करे, वैसे यह व्रत पूजा पूरे वर्षभर भी कर सकते हैं। पुरे वर्ष भर हर गुरुवार के देवी की प्रतिमा या फ़ोटो के सामने बैठकर व्रत कथा को पढ़ें।
  2.  शेष गुरुवार के दिन आठ सुहागनों या कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें संमंके साथ पीढा या आसान पर बिठाकर श्री महालक्ष्मी का रूप समझ कर हल्दी कुमकुम लगायें। पूजा की समाप्ति पर फल प्रसाद वितरण करें तथा इस कथा की एक प्रति उन्हें देकर नमस्कार करें। केवल नारी ही नहीं अपितु पुरष भी यह पूजा कर सकते हैं। वे सुहागन या कुमारिका को आमंत्रित कर उन्हें हाथ में हल्दीकुंकुं प्रदान करें तथा व्रत कथा की एक प्रति देकर उन्हें प्रणाम करे। पुरुषो को भी इस व्रत कथा को पढ़ना चाहिये। जिस दिन व्रत हो, उपवास करे , दूध, फलाहार करें। खाली पेट न रहे, रात को भोजन से पहले देवी को भोग लगायें एवं परिवार के साथ भोजन करें।
  3. पदमपुराण में यह व्रत गृहस्तजनों के लिये बताया गया है। इस पूजा को पति पत्नी मिलकर कर सकते हैं। अगर किसी कारण पूजा में बाधा आये तो औरों से पूजा करवा लेनी चाहिये। पर खुद उपवास अवश्य करें। उस गुरुवार को गिनती में न लें।
  4. अगर किसी दूसरी पूजा का उपवास गुरुवार को आये तो भी यह पूजा की जा सकती है। दिन / रात में भी पूजा की जा सकती है। दिन में उपवास करें तथा रात में पूजा के बाद भोजन करलें। इस व्रत कथा को सुनने के लिये अपने आसपड़ोस के लोगों को, रिश्तेदारो को तथा घर के लोगो को बुलायें व्रत कथा को पढ़ते समय शान्ति तथा एकाग्रता बरतें।
  5. अगहन (मार्गशीष) के पहले गुरुवार को व्रत शुरू करें तथा अंतिम गुरुवार को उसका समापन करे। अगर माह में पाँच गुरुवार आये तो पांचों गुरुवार को (उस दिन अमावस्या /या पूर्णिमा) तो भी पूजा करें।

मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा के लिए पूजन सामग्री लिस्ट

॥अथ श्रीमहालक्ष्म्यष्टकम॥

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥१॥

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥२॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥३॥

सिद्धिबुद्धिप्रदे भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥४॥

आद्यन्तरहिते आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥५॥

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे महाशक्तिमहोदरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥६॥

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥७॥

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥८॥

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥१०॥

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥

॥इति श्रीमहालक्ष्मी स्त्रोत्र समाप्त।।

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