Annapurna Chalisa (अन्नपूर्णा चालीसा) Hindi PDF

0 People Like This
❴SHARE THIS PDF❵ FacebookX (Twitter)Whatsapp

Annapurna Chalisa (अन्नपूर्णा चालीसा) in Hindi

अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- ‘धान्य’ (अन्न) की अधिष्ठात्री।

मां अन्नपूर्णा, देवी पार्वती का अवतार है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। इस दिन देवी अन्नपूर्णा की पूजा करने से परिवार में कभी भी धन- धान्य की कमी नहीं होती है। देवी अन्नपूर्णा का आशीर्वाद सदैव उस परिवार पर बना रहता है।

अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa Lyrics in Hindi)

॥ दोहा ॥

विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।

॥ चौपाई ॥

नित्य आनंद करिणी माता, वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी, अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ।

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।
काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग त्राता ।

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ।
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ।

पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा ।
देह तजत शिव चरण सनेहू, राखेहु जात हिमगिरि गेहू ।

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो ।
नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ।

ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये, देवराज आदिक कहि गाये ।
सब देवन को सुजस बखानी, मति पलटन की मन मँह ठानी ।

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ।
निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ।

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।
गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रहां तब तुव पास पधारे ।

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ।

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों ।
करत वेद विद ब्रहमा जानहु, वचन मोर यह सांचा मानहु ।

तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी, मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ।

बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों ।

दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ।

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशयो गयऊ ।
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा ।

माला पुस्तक अंकुश सोहै, कर मँह अपर पाश मन मोहै ।
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे, अज अनवघ अनंत पूर्णे ।

कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ, भव विभूति आनंद भरी माँ ।
कमल विलोचन विलसित भाले, देवि कालिके चण्डि कराले ।

तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी, मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ।

विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ।

प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ।
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत, परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ।

राज विमुख को राज दिवावै, जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।
पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनोवांछित निधि पाता ।

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।
तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ ॥

।। इति माँ अन्नपूर्णा चालीसा समाप्त ।।

अन्नपूर्णा चालीसा पढ़ने के लाभ

आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके (अन्नपूर्णा चालीसा) Annapurna Chalisa PDF में प्राप्त कर सकते हैं। 

PDF's Related to Annapurna Chalisa (अन्नपूर्णा चालीसा)

Annapurna Chalisa (अन्नपूर्णा चालीसा) PDF Download Free

SEE PDF PREVIEW ❏

REPORT THISIf the download link of Annapurna Chalisa (अन्नपूर्णा चालीसा) PDF is not working or you feel any other problem with it, please REPORT IT on the download page by selecting the appropriate action such as copyright material / promotion content / link is broken etc. If Annapurna Chalisa (अन्नपूर्णा चालीसा) is a copyright material we will not be providing its PDF or any source for downloading at any cost.

RELATED PDF FILES

Exit mobile version