Kriya Yoga Book (क्रिया योग) Hindi
भारतीय संस्कृति साधना और तपस्या की पवित्र भूमि है। इस माटी में अनेक ऐसे महान् साधक हुए हैं, जिन्होंने अपनी साधना से संपूर्ण मानवता को लाभान्वत किया है। भारतीय आध्यात्मिक संतपुरुष,चिंतक और साधक भी ऐसे ही जीवंत पुरुष होते हैं और जहाँ-जहाँ उनके चरणकमल पड़ते हैं, वहाँजड़़ भी जीवित होकर जीवन की साँस लेने लगते हैं। अमिट चरण कमल ही तो साक्षत् ब्रह्म हैं,जिसे वे मिल जाएँ, फिर उनकी इच्छाएँ शेष नहीं रहती हैं। ऐसे ही एक विलक्ष, अद्भुत और साधक संतपुरुष हैं वीरेन्द्र योगानंदजी, जिन्होंने कुंडलिनी और क्रिया योग की महान् और सिद्धमय साधना ने न केवल भारत बल्कि समग्र विश्व में एक अलग पहचान दी है। स्वामी योगानंदजी का जन्म जन् 9 सितंबर, 1955 को केदारखंड हिमालय में हुआ। इनके पिता का नाम स्व. बलबीर सिंह रावत व माता का नाम श्रीमती कलावती देवी है। बाल्यावस्था से ही इनकी प्रवृत्ति अन्य सामान्य बालकों की तरह खेलकूद में न होकर ईश्वर की भक्ति-विश्वास-आस्था व ध्यनावस्था में घंटों तक बैठे रहने में थी।
स्वामी योगानंदजी को परमपिता परमेश्वर भगवान् शिव, भगवान् कृष्ण, प्रभु ईसा मसीह से कृपा व आशीर्वाद प्राप्त है। स्वामीजी को अनेक धर्मों का गूढ़़ ज्ञान है और उनका मानना है कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की शक्ति हैं। ईश्वर एक है, परंतु उसे प्राप्त करने के मार्ग अलग-अलग हैं। स्वामी योगानंदजी ने अपनी कठोर साधना से अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की हैं, लेकिन उनका अहंकार उनमें अंशमात्र भी नहीं है। वे प्राप्त सिद्धियों को मानवता के कल्याण के लिए ही उपयोग करते हैं। गुरुजी के पास मथीमा सिद्धि, गरिमा सिद्धि, अतींद्रिय दृष्टि और परा श्रवण की शक्ति है। वे अपने ध्यान के दौरान किसी भी भाषा को समझ सकते हैं वे वर्तमान, और भूत तथा भविष्य के बारे में भी बता सकते हैं। टेलीपैथी के द्वारा दूसरों के मन के विचारों को भी सरलता से जान सकते हैं। उनके पास हीलिंग पावर/ चंगाई की शक्ति भी है, जिसके द्वारा उन्होंने अनेक असाध्य रोगों का निदान किया है।